कांग्रेस नेता विक्रमादित्य सिंह ने हिमाचल प्रदेश में चल रहे राज्यसभा चुनाव के बाद सियासी संकट को टालने के लिए समन्वय समिति का फार्मूला निकालने की कोशिश की है। उनके लिए काफी मददगार फार्मूला है, जिसके मुताबिक उन्हें कोई नई पार्टी बनाने की आवश्यकता नहीं है।
सूत्रों के मुताबिक, विक्रमादित्य सिंह अनगिनत समर्थकों के साथ साथ हिमाचल प्रदेश के खेमा सीएम सुक्खू को बदलने को लेकर आर-पार के मूड में हैं। उनकी दुविधा इस बात पर निर्भर करेगी कि वे बीजेपी में शामिल होकर वीरभद्र सिंह की सियासी विरासत को खत्म करें या इसके बजाय एक नई पार्टी की स्थापना करें।
यदि विक्रमादित्य सिंह के साथ तीन और विधायक टूट गए, तो सुक्खू सरकार की गिरावट को आसानी से जन्म दे सकती है। सीएम सुक्खू भी विक्रमादित्य सिंह के करीबी विधायकों को अपने पाले में करने के लिए प्रयासरत हैं।
विक्रमादित्य सिंह ने हाल ही में राज्यसभा चुनाव के बाद हिमाचल प्रदेश के मंत्री पद से इस्तीफा देने का फैसला किया था और कांग्रेस पर आरोप लगाया था। उनके कदम से कांग्रेस पार्टी में हलचल मच गई है और कुछ विधायक नेतृत्व की ओर मुंह कर रहे हैं।
इस बड़े सियासी विकार के बीच, हिमाचल प्रदेश की राजनीति में गहरी गहरी डाकर बनी हुई है और सुक्खू सरकार के लिए खतरा भी बढ़ चुका है। अगले कुछ हफ्तों में होने वाले घटनाक्रम को देखते हुए हिमाचल की राजनीति में नए मोड़ आने की संभावना है।
राजनीतिक उठापटक को लेकर वक्त भविष्य बदल सकता है। इस घरसेली युद्ध में किस ओर मीडियातंत्र की सत्ता होगी, यह देखने के लिए हमें थोड़ा और प्रतीक्षा करनी पड़ेगी।
(Rajneeti Guru)
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