लखनऊ – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती के अवसर पर मध्यकालीन दलित शासक महाराजा बिजली पासी को श्रद्धांजलि देकर उत्तर प्रदेश की सामाजिक और राजनीतिक विमर्श में एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक संदर्भ को पुनः केंद्र में ला दिया है। यह श्रद्धांजलि न केवल अतीत के एक उपेक्षित शासक को सम्मान देने का प्रयास मानी जा रही है, बल्कि बदलते सामाजिक समीकरणों के संदर्भ में भी इसे अहम माना जा रहा है।
अपने संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने महाराजा बिजली पासी को साहस, स्वाभिमान और सामाजिक समावेशन का प्रतीक बताते हुए कहा कि भारतीय इतिहास में ऐसे अनेक नायक रहे हैं जिनका योगदान लंबे समय तक मुख्यधारा की चर्चा से बाहर रहा। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने कार्यकाल में महाराजा बिजली पासी के सम्मान में डाक टिकट जारी कर उनके ऐतिहासिक महत्व को राष्ट्रीय पहचान दी थी।
महाराजा बिजली पासी को उत्तर भारत के मध्यकालीन इतिहास में एक शक्तिशाली और न्यायप्रिय शासक के रूप में देखा जाता है। ऐतिहासिक मान्यताओं के अनुसार उन्होंने बारहवीं शताब्दी में शासन किया और वर्तमान उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में मजबूत प्रशासनिक ढांचा स्थापित किया। कहा जाता है कि उन्होंने किलों का निर्माण कराया और अपने शासन में सामाजिक भेदभाव के बिना प्रशासन चलाया, जिससे वे विशेष रूप से पासी समुदाय में आज भी सम्मान के पात्र हैं।
उत्तर प्रदेश में पासी समुदाय अनुसूचित जातियों के अंतर्गत आता है और राज्य की दलित आबादी का एक बड़ा हिस्सा है। जनसंख्या के लिहाज से इस समुदाय की राजनीतिक भूमिका महत्वपूर्ण मानी जाती है। बीते वर्षों में इस वर्ग का राजनीतिक झुकाव अलग-अलग दलों की ओर रहा है। 2024 के लोकसभा चुनावों में भी कुछ क्षेत्रों में इस समुदाय का समर्थन भाजपा से हटकर अन्य दलों की ओर गया, जिसे राजनीतिक विश्लेषक एक अहम संकेत के रूप में देखते हैं।
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि महाराजा बिजली पासी को सार्वजनिक मंच पर सम्मान देना केवल ऐतिहासिक स्मरण नहीं है, बल्कि सामाजिक प्रतिनिधित्व की भावना को मजबूत करने का प्रयास भी है। एक वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक के अनुसार,
“जब किसी समाज के ऐतिहासिक नायकों को मान्यता मिलती है, तो उस समुदाय में सम्मान और भागीदारी की भावना गहरी होती है। यह लोकतंत्र के लिए सकारात्मक संकेत है।”
अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती पर इस तरह की श्रद्धांजलि को उनके विचारों से भी जोड़ा जा रहा है। वाजपेयी को समावेशी राजनीति और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का समर्थक माना जाता रहा है। ऐसे में महाराजा बिजली पासी जैसे ऐतिहासिक व्यक्तित्व का स्मरण वाजपेयी की वैचारिक परंपरा के अनुरूप माना जा रहा है।
हाल के वर्षों में उत्तर प्रदेश सरकार ने भी महाराजा बिजली पासी से जुड़े स्थलों के संरक्षण और विकास की दिशा में कदम उठाए हैं। इन्हें सांस्कृतिक और पर्यटन केंद्रों के रूप में विकसित करने की योजनाएं सामाजिक स्मृति को संरक्षित करने की दिशा में देखी जा रही हैं। इससे न केवल स्थानीय इतिहास को पहचान मिलती है, बल्कि नई पीढ़ी को भी अपने अतीत से जुड़ने का अवसर मिलता है।
उत्तर प्रदेश की राजनीति में जाति और समुदाय की भूमिका ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण रही है। ऐसे में किसी दलित शासक को राष्ट्रीय मंच पर सम्मान दिया जाना सामाजिक संतुलन और राजनीतिक संवाद दोनों के लिए अहम माना जा रहा है। यह घटनाक्रम उस व्यापक प्रयास का हिस्सा भी माना जा सकता है, जिसमें भारतीय इतिहास के विविध और बहुस्तरीय स्वरूप को सामने लाने पर जोर दिया जा रहा है।
महाराजा बिजली पासी को दी गई यह श्रद्धांजलि आने वाले समय में सामाजिक विमर्श और राजनीतिक रणनीतियों को किस तरह प्रभावित करती है, यह देखना दिलचस्प होगा। फिलहाल, इस पहल ने एक बार फिर यह प्रश्न खड़ा कर दिया है कि इतिहास में जिन नायकों को लंबे समय तक नजरअंदाज किया गया, उन्हें किस तरह सम्मान और पहचान दी जानी चाहिए।
