नई दिल्ली: कांग्रेस सांसद इमरान मसूद के एक बयान ने राष्ट्रीय राजनीति में एक नई बहस को जन्म दे दिया है। मसूद ने कहा कि यदि प्रियंका गांधी वाड्रा प्रधानमंत्री होतीं, तो बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो रही घटनाओं पर भारत की प्रतिक्रिया कहीं अधिक निर्णायक होती। हालांकि, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उनकी यह टिप्पणी राहुल गांधी के नेतृत्व से जुड़ी नहीं थी और इसका उद्देश्य किसी तरह की आंतरिक तुलना करना नहीं था।
इमरान मसूद का यह बयान ऐसे समय आया है जब बांग्लादेश में धार्मिक अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से हिंदुओं पर हमलों की खबरों को लेकर भारत में राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ तेज हो रही हैं। विपक्षी दल लगातार केंद्र सरकार से इस मुद्दे पर कड़ा रुख अपनाने की मांग कर रहे हैं। इसी पृष्ठभूमि में मसूद ने प्रियंका गांधी के नेतृत्व को लेकर अपनी राय रखी।
अपने बयान में मसूद ने कहा,
“अगर प्रियंका गांधी प्रधानमंत्री होतीं, तो बांग्लादेश जैसे मुद्दों पर भारत की प्रतिक्रिया बेहद सख्त और स्पष्ट होती। यह बात किसी व्यक्ति विशेष के खिलाफ नहीं है, बल्कि नेतृत्व की शैली से जुड़ी है।”
उन्होंने आगे यह भी जोड़ा कि उनके बयान को राहुल गांधी से जोड़कर देखना गलत है। मसूद के अनुसार, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी दोनों का उद्देश्य एक ही है और दोनों कांग्रेस की विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पार्टी के भीतर किसी तरह का मतभेद नहीं है और नेतृत्व को लेकर अनावश्यक अटकलें लगाई जा रही हैं।
मसूद के बयान के बाद राजनीतिक हलकों में प्रतिक्रियाओं का दौर शुरू हो गया। भारतीय जनता पार्टी ने इस टिप्पणी को कांग्रेस के अंदर नेतृत्व संकट से जोड़ते हुए निशाना साधा। भाजपा नेताओं का कहना है कि इस तरह के बयान यह दर्शाते हैं कि कांग्रेस के भीतर नेतृत्व को लेकर स्पष्टता की कमी है।
वहीं कांग्रेस की ओर से इस विवाद को तूल न देने की कोशिश की गई। पार्टी नेताओं ने कहा कि यह एक व्यक्तिगत राय थी, न कि पार्टी की आधिकारिक स्थिति। कांग्रेस का दावा है कि पार्टी पूरी तरह एकजुट है और आगामी राजनीतिक चुनौतियों पर उसका फोकस स्पष्ट है।
पिछले कुछ वर्षों में प्रियंका गांधी की राजनीतिक सक्रियता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। वे सामाजिक मुद्दों, महिला अधिकारों और मानवाधिकार से जुड़े मामलों पर मुखर रही हैं। हाल के समय में उन्होंने पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यकों की स्थिति पर भी सार्वजनिक रूप से चिंता व्यक्त की है, जिससे उनकी छवि एक संवेदनशील और आक्रामक वक्ता के रूप में उभरी है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि प्रियंका गांधी का नाम नेतृत्व की चर्चाओं में आना कांग्रेस के लिए नया नहीं है। हालांकि पार्टी ने अब तक आधिकारिक तौर पर प्रधानमंत्री पद को लेकर कोई चेहरा घोषित नहीं किया है, लेकिन समय-समय पर ऐसे बयान पार्टी के भीतर चल रही वैचारिक चर्चाओं की ओर इशारा करते हैं।
राहुल गांधी कांग्रेस के प्रमुख राष्ट्रीय नेता बने हुए हैं और उन्होंने भारत जोड़ो यात्रा जैसे अभियानों के जरिए पार्टी को नए सिरे से जोड़ने की कोशिश की है। इमरान मसूद ने अपने बयान में यह स्पष्ट किया कि राहुल गांधी पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व में हैं और उनके योगदान पर कोई सवाल नहीं उठाया जाना चाहिए।
मसूद ने कहा,
“राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को आमने-सामने रखकर देखना सही नहीं है। दोनों का लक्ष्य एक है और दोनों कांग्रेस को मजबूत करना चाहते हैं।”
विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के बयान आगामी चुनावों से पहले राजनीतिक विमर्श को और तेज करेंगे। जहां विपक्षी दल इसे कांग्रेस के भीतर असमंजस के रूप में पेश कर सकते हैं, वहीं कांग्रेस इसे लोकतांत्रिक विचार-विमर्श का हिस्सा बता रही है।
कुल मिलाकर, इमरान मसूद का बयान केवल एक टिप्पणी नहीं, बल्कि उस व्यापक राजनीतिक चर्चा का हिस्सा बन गया है, जिसमें नेतृत्व, विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दे आपस में जुड़ते नजर आ रहे हैं। आने वाले समय में यह देखना अहम होगा कि कांग्रेस इस बहस को किस दिशा में ले जाती है।
