पटना:
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राज्य की राजनीति में वित्तीय गतिविधियां तेज होती दिख रही हैं। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के दो प्रमुख घटक दल — जनता दल (यूनाइटेड) [JD(U)] और लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) [LJP(RV)] — को वित्तीय वर्ष 2024-25 में मिलने वाले राजनीतिक चंदे में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, इन दोनों दलों की फंडिंग में बीते वर्ष की तुलना में कई गुना इजाफा हुआ है, जिससे चुनावी तैयारियों की गंभीरता साफ झलकती है।
JD(U) को वर्ष 2024-25 में कुल ₹18.69 करोड़ का चंदा प्राप्त हुआ, जबकि इससे पहले 2023-24 में यह राशि केवल ₹1.81 करोड़ थी। वहीं, LJP(RV) के लिए यह उछाल और भी चौंकाने वाला रहा। पार्टी को 2024-25 में ₹11.09 करोड़ का दान मिला, जो पिछले वित्तीय वर्ष में मिले ₹11.67 लाख की तुलना में असाधारण वृद्धि मानी जा रही है।
राजनीतिक वित्त से जुड़े विशेषज्ञों के अनुसार, यह वृद्धि केवल संयोग नहीं है, बल्कि आगामी बिहार विधानसभा चुनावों की रणनीतिक तैयारियों से जुड़ी हुई है। इस बार दोनों दलों ने बड़े पैमाने पर चुनावी ट्रस्टों के माध्यम से चंदा प्राप्त किया है। चुनावी ट्रस्ट ऐसे संगठित माध्यम होते हैं, जिनके जरिए कंपनियां और संस्थागत दानदाता राजनीतिक दलों को पारदर्शी ढंग से योगदान देते हैं।
JD(U) को प्राप्त कुल राशि का बड़ा हिस्सा कुछ प्रमुख चुनावी ट्रस्टों से आया है, जबकि LJP(RV) के मामले में भी लगभग पूरा चंदा इन्हीं ट्रस्टों के जरिए प्राप्त हुआ। यह रुझान दर्शाता है कि राजनीतिक दल अब संगठित और औपचारिक फंडिंग चैनलों पर अधिक भरोसा कर रहे हैं।
JD(U) के एक वरिष्ठ नेता ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा,
“दान में हुई यह वृद्धि निश्चित रूप से चुनावी तैयारियों को मजबूत करेगी, लेकिन इसे असाधारण नहीं कहा जाना चाहिए। कई राष्ट्रीय दलों की तुलना में हमारी फंडिंग अब भी सीमित है।”
यह बयान इस बात की ओर इशारा करता है कि क्षेत्रीय दलों के लिए संसाधन जुटाना अब भी एक चुनौती बना हुआ है।
पृष्ठभूमि की बात करें तो, बिहार की राजनीति लंबे समय से गठबंधन आधारित रही है। JD(U) राज्य की प्रमुख क्षेत्रीय पार्टी रही है और कई बार सत्ता में रह चुकी है, जबकि LJP(RV) स्वर्गीय राम विलास पासवान की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने वाली पार्टी है। दोनों ही दलों का सामाजिक आधार और वोट बैंक अलग-अलग वर्गों में फैला हुआ है, जिससे उनकी चुनावी भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है।
हाल के वर्षों में भारत में राजनीतिक फंडिंग के तरीकों में बड़ा बदलाव देखा गया है। पारंपरिक व्यक्तिगत चंदे की तुलना में अब संस्थागत दान और चुनावी ट्रस्टों की भूमिका बढ़ी है। चुनाव आयोग द्वारा दान की रिपोर्टिंग को लेकर नियम सख्त किए गए हैं, जिसके चलते पार्टियों को अपने आय-व्यय का विस्तृत विवरण सार्वजनिक करना पड़ता है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चुनावी ट्रस्टों पर बढ़ती निर्भरता एक ओर जहां पारदर्शिता बढ़ाती है, वहीं यह सवाल भी उठाती है कि क्या इससे बड़े दानदाताओं का राजनीतिक प्रभाव भी बढ़ रहा है। हालांकि, समर्थकों का तर्क है कि यह व्यवस्था पहले की तुलना में अधिक जवाबदेह है।
LJP(RV) के एक प्रवक्ता ने दान में हुई वृद्धि को लेकर कहा,
“चुनावी राजनीति में खर्च लगातार बढ़ रहा है। ऐसे में चंदे के आंकड़ों को अलग-थलग देखकर निष्कर्ष निकालना सही नहीं होगा।”
बिहार विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आते जा रहे हैं, राजनीतिक दलों की फंडिंग, खर्च और प्रचार रणनीतियां लगातार चर्चा का विषय बन रही हैं। JD(U) और LJP(RV) के चंदे में आई यह तेज वृद्धि न केवल उनकी चुनावी तैयारियों को दर्शाती है, बल्कि राज्य की बदलती राजनीतिक अर्थव्यवस्था की भी एक झलक पेश करती है।
आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह वित्तीय मजबूती मतदाताओं के समर्थन में भी उसी अनुपात में बदल पाती है या नहीं।
