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महाराष्ट्र में महायुति वंशवाद हावी

In Politics
November 29, 2025
rajneetiguru.com - महाराष्ट्र स्थानीय निकाय चुनावों में महायुति वंशवाद हावी – The Indian Express

महाराष्ट्र के 2 दिसंबर को होने वाले स्थानीय निकाय चुनावों में इस बार चर्चाओं का केंद्र विकास से अधिक वंशवाद बना हुआ है। महायुति गठबंधन में शामिल दलों — भाजपा, शिंदे-शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी — के कई प्रभावशाली नेताओं के रिश्तेदार बड़ी संख्या में चुनाव मैदान में हैं। केवल भाजपा के ही कम से कम 29 उम्मीदवार ऐसे हैं, जिनका सीधा संबंध किसी बड़े नेता से है, जबकि शिवसेना (शिंदे) और एनसीपी में भी दर्जनों वंशवादी चेहरे टिकट पा चुके हैं।

इस घटनाक्रम ने एक बार फिर यह बहस तेज कर दी है कि क्या राजनीतिक अवसर आम कार्यकर्ताओं की बजाय चुनिंदा परिवारों तक सीमित होते जा रहे हैं। पत्नी, पुत्र, बहनोई, भतीजे, cousins और अन्य रिश्तेदारों को टिकट मिलने से संगठन के भीतर नाराजगी की आवाज़ें भी उठने लगी हैं।

सबसे अधिक चर्चा उस मामले की रही, जिसमें एक ही परिवार के छह सदस्य एक स्थानीय परिषद से चुनाव लड़ रहे हैं। इसने न सिर्फ स्थानीय स्तर पर असंतोष को जन्म दिया, बल्कि गठबंधन की अंदरूनी राजनीति में भी सवाल खड़े किए कि क्या मेहनती और योग्य कार्यकर्ताओं को दरकिनार किया जा रहा है।

विपक्षी दलों ने इस प्रवृत्ति को लोकतांत्रिक मूल्यों के ख़िलाफ बताया है। एक वरिष्ठ विपक्षी नेता ने कहा, “जब टिकट रिश्तों के आधार पर दिए जाते हैं, तो स्थानीय लोकतांत्रिक संस्थाओं की विश्वसनीयता कमजोर होती है।” उनका कहना है कि यह प्रवृत्ति युवा और समर्पित कार्यकर्ताओं का उत्साह घटाती है।

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार महाराष्ट्र की राजनीति में परिवार-आधारित प्रभाव कोई नई बात नहीं है। स्थानीय निकाय चुनाव, भले ही छोटे स्तर पर हों, लेकिन भविष्य के राजनीतिक नेतृत्व को तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यही कारण है कि कई नेता संगठनात्मक पकड़ मजबूत करने के लिए अपने रिश्तेदारों को आगे लाते हैं।

हालाँकि विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि वंशवादी उम्मीदवारों के लिए चुनाव आसान नहीं होता। कई क्षेत्रों में मतदाता नए और स्वतंत्र-दृष्टिकोण वाले चेहरों को प्राथमिकता देते हैं, जो स्थानीय समस्याओं के समाधान का वादा करते हैं।

कई मतदाताओं की राय भी बंटी हुई है। कुछ लोगों का मानना है कि अनुभवी राजनीतिक परिवार प्रशासनिक प्रक्रियाओं को बेहतर समझते हैं, जबकि अनेक लोग परिवर्तन की उम्मीद में नए उम्मीदवारों का समर्थन करते हैं।

एक सामाजिक शोधकर्ता ने टिप्पणी की, “वंशवाद किसी एक पार्टी तक सीमित नहीं है। अंततः मतदाता उसी को चुनते हैं जो उनकी समस्याओं का समाधान कर सके — चाहे वह वंशवादी हो या ना हो।” उनका कहना है कि स्थानीय निकाय चुनाव भविष्य के नेताओं की पहचान तय करते हैं, इसलिए इनके नतीजे अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

2 दिसंबर के चुनावों में कई नगर परिषदों और नगर पंचायतों में कड़ा मुकाबला रहने की संभावना है। उम्मीदवार स्थानीय विकास, सड़कें, पानी, सफाई और नागरिक सुविधाओं को अपना मुख्य मुद्दा बनाकर जनता के बीच पहुंच रहे हैं।

फिर भी टिकट वितरण में परिवारों की प्रमुखता चुनावी माहौल का महत्वपूर्ण पहलू बनी हुई है। अब देखना यह है कि मतदाता स्थापित राजनीतिक परिवारों का समर्थन करेंगे या नए चेहरों को मौका देंगे।

लेकिन एक बात स्पष्ट है — महाराष्ट्र की राजनीति में वंशवाद अभी भी गहराई से स्थापित है और यह चुनावी राजनीति तथा लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व की चर्चा को लंबे समय तक प्रभावित करता रहेगा।

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  • नमस्ते, मैं सब्यसाची बिस्वास हूँ — आप मुझे सबी भी कह सकते हैं!
    दिल से एक कहानीकार, मैं हर क्लिक, हर स्क्रॉल और हर नए विचार में रचनात्मकता खोजता हूँ। चाहे दिल से लिखे गए शब्दों से जुड़ाव बनाना हो, कॉफी के साथ नए विचारों पर काम करना हो, या बस आसपास की दुनिया को महसूस करना — मैं हमेशा उन कहानियों की तलाश में रहता हूँ जो असर छोड़ जाएँ।

    मुझे शब्दों, कला और विचारों के मेल से नई दुनिया बनाना पसंद है। जब मैं लिख नहीं रहा होता या कुछ नया सोच नहीं रहा होता, तब मुझे नई कैफ़े जगहों की खोज करना, अनायास पलों को कैमरे में कैद करना या अपने अगले प्रोजेक्ट के लिए नोट्स लिखना अच्छा लगता है।
    हमेशा सीखते रहना और आगे बढ़ना — यही मेरा जीवन और लेखन का मंत्र है।

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नमस्ते, मैं सब्यसाची बिस्वास हूँ — आप मुझे सबी भी कह सकते हैं!
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