बिहार विधानसभा चुनाव के ताज़ा नतीजों में सीमांचल सबसे दिलचस्प इलाकों में से एक बनकर उभरा, जहाँ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने पृष्ठभूमि में रहकर NDA को महत्वपूर्ण बढ़त दिलाने में भूमिका निभाई। मुस्लिम आबादी और जटिल जातीय समीकरणों वाले इस क्षेत्र में इस बार मतदाताओं का रुझान कई मायनों में बदला हुआ दिखाई दिया।
RSS और NDA के सूत्रों के अनुसार, संघ ने इस चुनाव में बेहद शांत लेकिन संगठित तरीके से काम किया। उनका पूरा फोकस “सुशासन” और “विकास” जैसे मुद्दों पर था — ऐसे मुद्दे जिन्हें हाल के वर्षों में बिहार के आम मतदाता प्राथमिकता देते दिखे हैं।
पृष्ठभूमि: वर्षों की जमीनी तैयारी
RSS पिछले कई वर्षों से सीमांचल में सामाजिक कार्य, सहायता कार्यक्रम और स्वयंसेवी गतिविधियों के माध्यम से अपनी उपस्थिति मजबूत करता रहा है। यही लगातार तैयार की गई बुनियाद इस चुनाव में NDA के लिए बेहद फायदेमंद साबित हुई।
क्षेत्र में BJP और RSS के बीच करीबी समन्वय देखने को मिला। बड़े जनसभाओं के बजाय छोटे समूहों, स्थानीय बैठकों और सीधे संवाद पर जोर दिया गया। स्वयंसेवकों ने अभियान को जमीनी स्तर पर व्यवस्थित किया — मतदाता संपर्क, स्थानीय मुद्दों की पहचान और बूथ प्रबंधन पर विशेष काम किया गया।
एक वरिष्ठ संघ पदाधिकारी ने कहा:
“इस बार लोगों ने पहचान की राजनीति से ऊपर उठकर विकास को प्राथमिकता दी। हमने सिर्फ मतदाताओं को सुशासन पर विचार करने के लिए प्रेरित किया — फैसला उन्होंने खुद किया।”
सीमांचल में बदला मतदान पैटर्न
किशनगंज, अररिया, पूर्णिया और कटिहार जैसे जिलों का यह इलाका लंबे समय से जातीय और धार्मिक आधार पर विभाजित मतदान के लिए जाना जाता रहा है। लेकिन इस बार इसमें बदलाव देखने को मिला।
NDA ने यहाँ अपेक्षा से अधिक सीटें हासिल कीं। विशेष रूप से हिंदू मतों का जाति-पार एकीकरण और सरकारी कल्याणकारी योजनाओं का संदेश मतदाताओं पर असरदार रहा।
स्थानीय पर्यवेक्षकों ने यह भी बताया कि सीमांचल के कुछ मुस्लिम युवा मतदाता पारंपरिक राजनीति से हटकर विकास आधारित राजनीति की ओर आकर्षित हुए। यह रुझान भले ही पूरे क्षेत्र में समान न रहा हो, लेकिन कई सीटों पर यह निर्णायक कारक बना।
विपक्ष की आलोचना
विपक्षी दल RJD ने RSS की बढ़ती भूमिका पर आपत्ति जताई। तेजस्वी यादव ने इसे “गहरी दखलअंदाज़ी” बताया। हालांकि, NDA के नेताओं ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया।
एक जेडीयू मंत्री ने कहा:
“नीतीश कुमार अपने फैसले खुद लेते हैं। कोई भी संगठन उन्हें प्रभावित नहीं कर सकता।”
विशेषज्ञों की राय
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि संघ ने इस चुनाव में “मौन रणनीतिकार” की भूमिका निभाई। सार्वजनिक मंचों पर दिखने के बजाय उसने जमीनी स्तर पर मतदाताओं के बीच विकास और सुशासन का मजबूत नरेटिव तैयार किया।
विशेषज्ञ यह भी कहते हैं कि सीमांचल के नतीजे बताते हैं कि अगर वैचारिक संदेश और कल्याणकारी योजनाएँ एकसाथ प्रस्तुत की जाएँ, तो कठिन माने जाने वाले क्षेत्रों में भी राजनीतिक समीकरण बदल सकते हैं।
भविष्य की दिशा
सीमांचल में मिली कामयाबी NDA की आगामी चुनाव रणनीतियों के लिए एक संकेत है। संघ अपने शताब्दी वर्ष के दौर में है और उसके काम करने के तरीके बिहार की भविष्य की राजनीति पर गहरा असर डाल सकते हैं — भले ही वह औपचारिक रूप से चुनावी राजनीति में हिस्सा न ले।
