2026 के विधानसभा चुनावों से पहले असम की राजनीति में एक बार फिर हलचल तेज हो गई है। राज्य के प्रमुख विपक्षी दलों — कांग्रेस, रायज़ोर दल, असम जातीय परिषद (AJP), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) — ने एक साझा मंच बनाने की दिशा में बातचीत शुरू की है, ताकि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को चुनौती दी जा सके।
हालांकि किसी औपचारिक गठबंधन की घोषणा नहीं की गई है, लेकिन यह बैठक विपक्षी एकता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है। 2024 के लोकसभा चुनावों में ये दल एक साथ लड़े थे, परंतु उपचुनावों के दौरान सीट बंटवारे और रणनीति को लेकर मतभेदों के चलते गठबंधन टूट गया था।
बैठक में यह चर्चा हुई कि बिखरा हुआ विपक्ष केवल सत्ता पक्ष को लाभ पहुंचाता है। नेताओं का मत था कि जनता की आवाज को मज़बूती देने के लिए एकजुटता जरूरी है। कांग्रेस ने फिलहाल इस बैठक पर औपचारिक बयान देने से परहेज़ किया है, परंतु पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा,
“अगर असम की जनता एक विकल्प चाहती है, तो हमें वह विकल्प बनना होगा — और यह तभी संभव है जब सभी दल एकजुट होकर नेतृत्व में विश्वास दिखाएँ।”
2024 के आम चुनावों के दौरान विपक्षी एकता का प्रयास सीमित सफलता ही हासिल कर सका था। सीट बंटवारे और चुनावी प्राथमिकताओं को लेकर मतभेदों ने गठबंधन को कमजोर कर दिया। क्षेत्रीय दलों जैसे AJP और रायज़ोर दल को आशंका थी कि कांग्रेस के साथ गठबंधन से उनका क्षेत्रीय चरित्र कमजोर हो सकता है, जबकि वामपंथी दल रोजगार, सुशासन और सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों पर आधारित गठबंधन चाहते थे।
इस बार की बैठक में कांग्रेस ने नेतृत्व या सीट बंटवारे को लेकर कोई स्पष्ट घोषणा नहीं की। पार्टी नेताओं का कहना है कि चर्चाएँ शुरुआती दौर में हैं और किसी भी निर्णय से पहले राजनीतिक माहौल का आकलन किया जाएगा।
यह चुप्पी विपक्ष के भीतर अलग-अलग प्रतिक्रियाएँ पैदा कर रही है। कुछ का मानना है कि स्पष्ट दिशा के अभाव में फिर असहमति उभर सकती है, जबकि अन्य इसे कांग्रेस की सावधानीपूर्ण रणनीति मानते हैं।
भाजपा ने विपक्ष के इस नए प्रयास को “राजनीतिक नाटक” बताया है। भाजपा के अनुसार, विपक्षी दलों के आंतरिक मतभेद इतने गहरे हैं कि वे लंबे समय तक साथ नहीं रह पाएंगे।
हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर विपक्षी दल प्रतीकात्मक स्तर पर भी एकजुट होते हैं, तो इसका असर कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में जरूर दिख सकता है। आने वाले महीनों में कई दौर की बैठकें और एक समन्वय समिति के गठन की उम्मीद जताई जा रही है।
एक वामपंथी नेता ने कहा,
“असम की जनता एक मजबूत विकल्प चाहती है। अगर हम विभाजित रहे, तो यह जनता के साथ अन्याय होगा। इस बार हमें धैर्य और भरोसे के साथ आगे बढ़ना होगा।”
अब देखना यह है कि यह नई पहल एक ठोस गठबंधन में बदलती है या असम की राजनीति में विपक्षी असंगति का एक और अध्याय बन जाती है।
