महाराष्ट्र की राजनीतिक फिज़ा में एक नया विवादास्पद शब्द गूंज रहा है — ‘वोट जिहाद’। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने INDIA गठबंधन के ‘वोट चोरी’ के आरोपों का जवाब देते हुए इस शब्द को अपने राजनीतिक अभियान का केंद्र बना दिया है। पार्टी का कहना है कि विपक्ष योजनाबद्ध तरीके से “धार्मिक पहचान के आधार पर मतदान को प्रभावित” करने की कोशिश कर रहा है।
भाजपा नेताओं ने दावा किया है कि कुछ सीटों पर अल्पसंख्यक समुदाय के वोट एकतरफा तरीके से विपक्षी उम्मीदवारों को दिए जा रहे हैं, जिससे लोकतांत्रिक संतुलन प्रभावित हो रहा है। पार्टी के अनुसार, यह “राजनीतिक जिहाद” का नया रूप है, जो सामाजिक सौहार्द्र के लिए चुनौती बन सकता है।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि भाजपा इस बयानबाज़ी के ज़रिए आगामी विधानसभा चुनावों से पहले बहुसंख्यक मतदाताओं को एकजुट करने की रणनीति अपना रही है। वहीं, विपक्ष इसे “ध्रुवीकरण की राजनीति” बताकर भाजपा पर निशाना साध रहा है।
कांग्रेस और राकांपा (शरद पवार गुट) जैसे विपक्षी दलों का कहना है कि भाजपा मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए “धार्मिक शब्दावली” का प्रयोग कर रही है। एक विपक्षी प्रवक्ता ने कहा, “जब विकास, रोजगार और किसान जैसे असली मुद्दे गायब हो जाते हैं, तब ऐसे शब्द राजनीतिक हथियार बन जाते हैं।”
वहीं भाजपा की राज्य इकाई का कहना है कि विपक्ष लगातार “वोट बैंक की राजनीति” कर रहा है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “हम किसी समुदाय के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन जब वोटिंग धार्मिक आधार पर निर्देशित की जाती है, तो यह लोकतंत्र की भावना के विपरीत है। यह ‘वोट जिहाद’ है, जिसे उजागर करना जरूरी है।”
‘वोट जिहाद’ शब्द पहले भी कई चुनावों में उभरा था, लेकिन महाराष्ट्र की सियासत में यह पहली बार इतना प्रमुखता से सामने आया है। राज्य में अगले वर्ष विधानसभा चुनाव होने हैं और इस दौर में हर पार्टी अपनी रणनीति तेज़ कर रही है। INDIA गठबंधन भाजपा पर “वोट चोरी” का आरोप लगा चुका है — यह आरोप मुख्य रूप से ईवीएम, प्रशासनिक दखल और मतगणना प्रक्रिया को लेकर लगाए गए थे।
अब भाजपा ने उसी बयानबाज़ी का पलटवार करते हुए “वोट जिहाद” को राजनीतिक विमर्श के केंद्र में ला दिया है। राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार, दोनों ओर से दिए जा रहे बयानों ने चुनावी माहौल को और अधिक तीखा बना दिया है।
महाराष्ट्र के कई शहरी और ग्रामीण इलाकों में इस शब्द ने बहस को जन्म दिया है। सोशल मीडिया पर ‘#VoteJihad’ और ‘#VoteChori’ जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं। कुछ लोग इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा मानते हैं, तो कुछ इसे समाज में विभाजन बढ़ाने वाला बयान करार दे रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि आने वाले महीनों में यह शब्दावली चुनावी रणनीति का अहम हिस्सा बन सकती है। अगर भाजपा इस मुद्दे को बड़े पैमाने पर प्रचार में शामिल करती है, तो विपक्ष के लिए भी इसे नज़रअंदाज़ करना आसान नहीं होगा।
राजनीति विज्ञान के विशेषज्ञ डॉ. अजय देशमुख का कहना है, “चुनावी विमर्श में जब धार्मिक या सांस्कृतिक पहचान को केंद्र में रखा जाता है, तो उसका असर मतदान व्यवहार पर पड़ता है। लेकिन इसका दीर्घकालिक प्रभाव सामाजिक सौहार्द्र पर नकारात्मक हो सकता है।”
महाराष्ट्र की सियासत में ‘वोट चोरी’ और ‘वोट जिहाद’ जैसे शब्द अब केवल बयानबाज़ी नहीं रहे — वे चुनावी समीकरणों को आकार देने वाले नए प्रतीक बन गए हैं। आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि मतदाता इस विमर्श को कैसे देखते हैं और क्या यह चुनावी रुझानों को बदलने में सक्षम साबित होगा या नहीं।
