बिहार का मिथिलांचल क्षेत्र—जिसमें दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर और सुपौल जैसे जिले आते हैं—आज भी अपनी सांस्कृतिक पहचान और राजनीतिक प्रभाव के लिए जाना जाता है। यहाँ की धरती से उठने वाली आवाज़ें विकास की कमी पर नाराज़गी जताती हैं, लेकिन मतदान केंद्रों पर यही जनता एनडीए के पक्ष में बटन दबाती नज़र आती है। यह विरोधाभास बिहार की राजनीति का दिलचस्प अध्याय बन चुका है।
पिछले कुछ वर्षों में केंद्र सरकार ने मिथिला की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए कई प्रयास किए—मधुबनी कला को वैश्विक पहचान देना, मखाना को जीआई टैग दिलाना, मछलीपालन को प्रोत्साहन देना और क्षेत्रीय पहचान को सशक्त बनाना। प्रधानमंत्री के भाषणों में अक्सर ‘जनक-सीता की भूमि मिथिला’ का उल्लेख होता है। लेकिन जब धरातल की बात आती है, तो सड़कें टूटी हैं, रोजगार सीमित है और युवाओं का पलायन अब भी जारी है।
मिथिलांचल के ग्रामीण इलाकों में लोग स्वीकार करते हैं कि योजनाएँ आईं, पर उनका असर सीमित रहा। युवाओं को स्थानीय स्तर पर अवसर नहीं मिल पा रहे हैं। खेती और मछलीपालन जैसे पारंपरिक व्यवसाय अब भी पुराने ढर्रे पर चलते हैं। फिर भी, वोट के समय वही लोग एनडीए को समर्थन देते दिखते हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, इसके पीछे दो मुख्य कारण हैं—पहला, कल्याणकारी योजनाओं का सीधा लाभ; और दूसरा, सांस्कृतिक भावनाओं से जुड़ाव। महिलाओं को मिलने वाली आर्थिक सहायता, मुफ्त राशन, और आवास योजनाओं ने एक भरोसे का रिश्ता बनाया है।
दरभंगा के एक शिक्षक का कहना है, “लोग नाराज़ हैं, लेकिन यह नाराज़गी वोट तक नहीं पहुँचती। सरकार की योजनाएँ किसी न किसी रूप में हर घर तक पहुँची हैं, जिससे गुस्सा ठंडा पड़ जाता है।”
मिथिलांचल की राजनीति हमेशा से जातीय और सांस्कृतिक पहचान से प्रभावित रही है। यादव, ब्राह्मण, दलित और मछुआरा समुदाय जैसे समूह अपने-अपने हितों के आधार पर वोट तय करते हैं। एनडीए ने इस समीकरण को साधने के लिए मिथिला संस्कृति को राजनीतिक विमर्श का हिस्सा बना दिया है।
मिथिला के लोक त्योहार, लोक कलाकार और धार्मिक प्रतीक अब राजनीतिक प्रचार का अहम हिस्सा हैं। इससे लोगों में क्षेत्रीय गर्व तो बढ़ा है, लेकिन विकास का मुद्दा पीछे छूट गया है।
आज मिथिलांचल का मतदाता पहले से अधिक जागरूक है। इंटरनेट और सोशल मीडिया के दौर में यहाँ के युवाओं को अब सिर्फ भावनात्मक जुड़ाव नहीं, बल्कि ठोस विकास और रोजगार चाहिए। कई युवाओं का कहना है कि उन्हें अपने क्षेत्र में उद्योग, शिक्षा और डिजिटल अवसरों की जरूरत है, न कि केवल चुनावी वादों की।
दरभंगा के युवा इंजीनियर अभिषेक झा का कहना है, “हम मिथिला के गौरव पर गर्व करते हैं, पर हमें अब सड़क, नौकरी और शिक्षा भी चाहिए। संस्कृति हमारे खून में है, लेकिन भविष्य पेट में है।”
आगामी विधानसभा चुनावों में मिथिलांचल का रुख एक बार फिर निर्णायक रहेगा। यह क्षेत्र लगभग 80 विधानसभा सीटों को प्रभावित करता है। एनडीए के लिए चुनौती यह है कि वह भावनात्मक जुड़ाव से आगे बढ़कर वास्तविक विकास के संकेत दे।
राजनीति के जानकार मानते हैं कि अगर जमीनी हकीकत में बदलाव नहीं हुआ, तो यही सांस्कृतिक प्रेम आने वाले वर्षों में थकान में बदल सकता है। मिथिलांचल के लोगों का स्नेह अब भी कायम है, पर असंतोष की रेखा धीरे-धीरे गहरी होती जा रही है।
