महाराष्ट्र की राजनीति में आगामी चुनावों से पहले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) एक नई चुनौती का सामना कर रही है। राज्य में पारंपरिक रूप से भाजपा के समर्थक माने जाने वाले जैन समुदाय ने हाल ही में पुणे के एक भूमि सौदे को लेकर तीखी आपत्ति जताई है। समुदाय का आरोप है कि यह सौदा धार्मिक स्थलों की पवित्रता को ठेस पहुंचाता है।
यह विवाद तब शुरू हुआ जब जैन समाज ने पुणे में सरकार समर्थित एक भूमि लेनदेन का विरोध किया, जो कथित तौर पर एक पवित्र जैन स्थल की भूमि से जुड़ा हुआ था। देखते ही देखते यह आंदोलन मुंबई, नासिक और ठाणे जैसे शहरों में फैल गया। जैन संगठनों ने इस भूमि सौदे को रद्द करने और धार्मिक स्थलों की सुरक्षा को लेकर सरकार से ठोस आश्वासन देने की मांग की है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह विवाद ऐसे समय में सामने आया है जब भाजपा राज्य में गठबंधन की राजनीति और विभिन्न समुदायों की अपेक्षाओं के बीच संतुलन साधने में लगी हुई है।
एक वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक के अनुसार, “भाजपा को लंबे समय से जैन और व्यापारी समुदाय का समर्थन मिलता रहा है, लेकिन धार्मिक संरचनाओं और पारंपरिक गतिविधियों पर कार्रवाई से यह संबंध तनावपूर्ण होता जा रहा है। अगर इसे जल्द सुलझाया नहीं गया तो इसका चुनावी असर भी पड़ सकता है।”
गौरतलब है कि भाजपा और जैन समुदाय के बीच यह तनाव नया नहीं है। इस वर्ष की शुरुआत में मीरा रोड पर एक छोटे जैन मंदिर के विध्वंस के बाद समुदाय ने राज्यव्यापी प्रदर्शन किए थे। इसी तरह, मुंबई में कबूतरखानों पर कार्रवाई को लेकर भी जैन संगठनों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी थी, इसे उन्होंने अपनी धार्मिक परंपरा पर हमला बताया था।
इस विवाद के बाद भाजपा नेतृत्व ने समुदाय के प्रतिनिधियों से संवाद शुरू किया है। पूर्व सांसद रंजीत निंबालकर ने पुणे में जैन नेताओं से मुलाकात कर यह स्पष्ट किया कि सरकार का इरादा कभी भी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का नहीं था।
वहीं विपक्षी दलों ने इस मुद्दे पर भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा है कि सरकार की नीतियां धार्मिक अल्पसंख्यकों और छोटे व्यापारियों के हितों के विपरीत जा रही हैं। इंडिया गठबंधन के नेताओं का कहना है कि भाजपा का शहरी विकास मॉडल कई बार समुदायों की सांस्कृतिक भावनाओं से टकराता रहा है।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि यह विवाद भले ही राज्य की राजनीति को पूरी तरह न बदल दे, लेकिन यह भाजपा के लिए यह संदेश जरूर देता है कि विकास और परंपरा के बीच संतुलन बनाए रखना अब पहले से कहीं अधिक जरूरी है। आने वाले हफ्तों में यह देखना दिलचस्प होगा कि पार्टी जैन समुदाय का भरोसा कितनी जल्दी वापस जीत पाती है।
