उत्तर प्रदेश की राजनीति एक बार फिर चर्चा में है। समाजवादी पार्टी (सपा) के वरिष्ठ नेता मोहम्मद आजम खान ने अपने हालिया साक्षात्कार में कहा है कि वे सिर्फ अखिलेश यादव से ही मुलाकात करेंगे। उनके अनुसार, “तीसरे व्यक्ति के लिए कोई जगह नहीं है।” इस बयान ने प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर हलचल मचा दी है, खासकर सपा के भीतर नेतृत्व और विश्वास के समीकरणों को लेकर।
आजम खान ने कहा कि लंबे समय तक कठिनाइयों और कानूनी लड़ाइयों का सामना करने के बावजूद, पार्टी के कई नेताओं ने उनसे दूरी बना ली। उन्होंने भावुक होकर कहा,
“ईद के दिन मेरी पत्नी अकेली बैठी रो रही थी। क्या किसी ने हाल पूछा? क्या किसी ने फ़ोन तक किया?”
उनका यह बयान सपा के भीतर उपेक्षा और अकेलेपन की झलक दिखाता है। उन्होंने कहा कि अब वे किसी बिचौलिए या तीसरे व्यक्ति के ज़रिए नहीं, बल्कि सीधे अखिलेश यादव से ही बात करेंगे।
“मेरे और अखिलेश के बीच किसी तीसरे के लिए कोई जगह नहीं है। जो बात होगी, आमने-सामने होगी।”
आजम खान ने 2022 के रामपुर उपचुनाव का ज़िक्र करते हुए कहा कि अगर विपक्षी दलों ने उस समय अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाई होती, तो आज स्थिति अलग होती।
“अगर उन्होंने उस समय लड़ाई लड़ी होती, तो शायद आज जो माहौल है, वह न बनता। वह दहशत आज भी कायम है,”
उन्होंने कहा।
रामपुर उपचुनाव उनके अयोग्य ठहराए जाने के बाद हुआ था। इस दौरान उनके समर्थकों का आरोप था कि मतदान प्रक्रिया में पक्षपात और भय का माहौल था। आजम खान का मानना है कि विपक्ष ने इस मुद्दे को बड़ा राजनीतिक प्रश्न नहीं बनाया, जिससे प्रशासनिक दबाव और बढ़ा।
साक्षात्कार में आजम खान ने यह भी कहा कि वे अब पार्टी की मुख्य पंक्ति में न रहकर भी योगदान देंगे।
“जो सबसे पीछे खड़ा होता है, वही सबसे साफ दिखाई देता है। मैं पीछे रहूंगा, लेकिन दिखूंगा जरूर,”
उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह बयान आजम खान की सक्रिय राजनीति में वापसी के संकेत देता है। पार्टी से दूरी और व्यक्तिगत कठिनाइयों के बावजूद वे यह बताना चाहते हैं कि उनकी राजनीतिक पहचान और असर अब भी बरकरार है।
आजम खान सपा के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं और रामपुर सदर सीट से दस बार विधायक रह चुके हैं। पिछले कुछ वर्षों में उन पर कई आपराधिक मामले दर्ज हुए, जिनमें ज़मीन हड़पने, अतिक्रमण और धोखाधड़ी जैसे आरोप शामिल हैं। लंबी जेल यात्रा के बाद वे जमानत पर रिहा हुए। उनकी अनुपस्थिति में रामपुर में सपा की स्थिति कमजोर पड़ी और भाजपा ने वहां अपना आधार मजबूत किया।
सपा प्रमुख अखिलेश यादव और आजम खान के रिश्ते पिछले कुछ वर्षों में उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं। हालांकि, दोनों नेताओं ने सार्वजनिक रूप से एक-दूसरे के प्रति सम्मान बनाए रखा है। आजम खान का यह बयान इस बात का संकेत है कि वे पार्टी नेतृत्व के साथ अपने संबंधों को फिर से स्थापित करना चाहते हैं, लेकिन अपनी शर्तों पर।
राजनीतिक जानकारों के अनुसार, आजम खान का यह साक्षात्कार न केवल भावनात्मक अपील है, बल्कि सपा के भीतर आंतरिक संदेश भी है — कि वे अभी भी पार्टी के पुराने मूल्यों और वफादारी का प्रतीक हैं। उनका “सिर्फ अखिलेश से मिलने” वाला बयान यह दर्शाता है कि वे किसी मध्यस्थ की राजनीति नहीं चाहते, बल्कि सीधी बातचीत के ज़रिए अपनी भूमिका तय करना चाहते हैं।
यह बयान आने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनावों से पहले सपा के लिए अहम साबित हो सकता है। आजम खान का समर्थन सपा के मुस्लिम वोट बैंक को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
उत्तर प्रदेश की राजनीति में यह साक्षात्कार एक भावनात्मक लेकिन सशक्त संदेश के रूप में देखा जा रहा है — एक वरिष्ठ नेता की नाराज़गी, उम्मीद और अपनी जगह फिर से पाने की कोशिश।
