लद्दाख की राजनीति में एक बार फिर उथल-पुथल देखने को मिली है। एपेक्स बॉडी लेह (ABL) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) जैसी प्रमुख स्थानीय संगठनों ने केंद्र सरकार के साथ चल रही वार्ताओं से खुद को अलग कर लिया है। इन संगठनों का कहना है कि केंद्र ने उनके लंबे समय से लंबित मांगों पर ठोस कदम नहीं उठाए हैं। इसी बीच, केंद्र सरकार अब अनुच्छेद 371 के तहत सीमित संवैधानिक सुरक्षा प्रदान करने के विकल्प पर विचार कर रही है।
यह अनुच्छेद भारत के कई राज्यों — जैसे नागालैंड, मिज़ोरम और हिमाचल प्रदेश — को भूमि, रोजगार और सांस्कृतिक संरक्षण से जुड़े विशेष अधिकार देता है। यदि इसे लद्दाख पर लागू किया जाता है, तो इसका उद्देश्य स्थानीय भूमि, नौकरियों और सांस्कृतिक पहचान की रक्षा करना होगा, लेकिन यह छठी अनुसूची जैसी पूर्ण स्वायत्तता नहीं देगा।
एपेक्स बॉडी लेह के एक वरिष्ठ सदस्य ने कहा, “हमने वर्षों से इंतजार किया है, लेकिन केंद्र के आश्वासन अब तक हकीकत में नहीं बदले हैं। लद्दाख की जनता प्रतीकात्मक नहीं, वास्तविक सशक्तिकरण चाहती है।”
लद्दाख में संवैधानिक सुरक्षा की मांग अगस्त 2019 से लगातार उठ रही है, जब जम्मू-कश्मीर को विभाजित कर दो केंद्रशासित प्रदेशों — जम्मू-कश्मीर और लद्दाख — में बांटा गया था। उस समय लागू अनुच्छेद 370 हटने के बाद लद्दाख की जनता ने राजनीतिक प्रतिनिधित्व और भूमि अधिकारों को लेकर चिंता जताई थी।
वर्तमान में लद्दाख में लेह और कारगिल के स्वायत्त हिल डेवलपमेंट काउंसिल (LAHDCs) स्थानीय शासन का संचालन करते हैं, लेकिन इनके अधिकार सीमित हैं। इससे स्थानीय नागरिकों में असंतोष बढ़ा है, क्योंकि उन्हें भूमि, रोजगार और पर्यावरण से जुड़े निर्णयों में भागीदारी कम महसूस होती है।
संवैधानिक विशेषज्ञ डॉ. राजीव भट्टाचार्य के अनुसार, “अनुच्छेद 371 जैसे प्रावधान लद्दाख के लिए एक संतुलित समाधान हो सकते हैं। इससे केंद्र सरकार जनसंख्या परिवर्तन की आशंका को नियंत्रित कर सकती है, बिना नया राज्य बनाए या छठी अनुसूची लागू किए।”
हालांकि, लद्दाख के संगठन इस प्रस्ताव को स्वीकार करेंगे या नहीं, यह देखना बाकी है। दोनों प्रमुख संगठनों ने घोषणा की है कि वे तब तक किसी भी वार्ता में भाग नहीं लेंगे जब तक उनकी प्रमुख मांगें — राज्य का दर्जा, संवैधानिक सुरक्षा और अलग लोक सेवा आयोग — पूरी नहीं की जातीं।
केंद्र के सूत्रों के अनुसार, गृह मंत्रालय के नेतृत्व में एक उच्चस्तरीय समिति इस मुद्दे पर कानूनी और संवैधानिक विकल्पों की समीक्षा कर रही है।
लद्दाख के युवाओं और नागरिक समाज के बीच भी यह भावना मजबूत हो रही है कि क्षेत्र को वास्तविक स्वायत्तता की जरूरत है। लेह के एक युवा कार्यकर्ता, त्सेरिंग दोरजे, ने कहा, “हमें ऐसा ढांचा चाहिए जो लद्दाख की आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करे। हमारी संस्कृति और पर्यावरण बेहद संवेदनशील हैं, इसलिए सुरक्षा में देरी गंभीर परिणाम ला सकती है।”
अब यह देखना बाकी है कि केंद्र का यह कदम लद्दाख को अधिक अधिकार दिलाने की दिशा में आगे बढ़ेगा या फिर यह क्षेत्र केंद्र के प्रत्यक्ष नियंत्रण में ही रहेगा।
