
बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा जल्द होने की उम्मीद है, क्योंकि चुनाव आयोग इस सप्ताह राज्य के दौरे पर जाने वाला है। इसी के मद्देनजर कांग्रेस पार्टी ने अपने उम्मीदवारों की अंतिम सूची को लेकर आंतरिक चर्चा तेज कर दी है। सूत्रों के अनुसार, पार्टी की मुख्य रणनीति अधिकांश मौजूदा विधायकों (सिटिंग एमएलए) को बनाए रखना है, जिसे वरिष्ठ नेता अंदरूनी असहमति और बागी उम्मीदवारों के उदय को रोकने के प्राथमिक उद्देश्य के रूप में पुष्टि कर रहे हैं।
पृष्ठभूमि और गठबंधन की गतिशीलता
बिहार विधानसभा चुनाव मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल २२ नवंबर को समाप्त होने से पहले होने की उम्मीद है। कांग्रेस, जो महागठबंधन (इंडिया ब्लॉक) का एक प्रमुख घटक है, वर्तमान में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और वाम दलों जैसे सहयोगियों के साथ जटिल सीट-साझाकरण वार्ता कर रही है।
२०२० के विधानसभा चुनावों में, कांग्रेस ने ७० सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन केवल १९ सीटें ही जीत पाई थी, जिस प्रदर्शन पर पार्टी के भीतर काफी आलोचना हुई थी। इससे सबक लेते हुए, पार्टी इस बार कम सीटों पर (लगभग ६०-६५) चुनाव लड़ने की उम्मीद कर रही है ताकि विस्तारित गठबंधन, जिसमें अब विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) जैसे दल भी शामिल हैं, को समायोजित किया जा सके। सीपीआई (एमएल), जो २०२० में १९ में से १२ सीटें जीतकर एक सफल सहयोगी रही थी, ने भी बड़े हिस्से का दावा किया है, जिससे राजद और कांग्रेस दोनों पर “यथार्थवादी” होने का दबाव बढ़ रहा है।
विद्रोह रोकने के लिए मौजूदा विधायकों को प्राथमिकता
पार्टी नेतृत्व प्रदर्शन की समीक्षाओं के बावजूद, अपने सभी मौजूदा १९ विधायकों को टिकट देने को उच्च प्राथमिकता दे रहा है। सूत्रों का संकेत है कि आंतरिक सर्वेक्षणों ने कुछ खराब प्रदर्शन करने वालों की पहचान की होगी, जिससे कुछ राज्य नेताओं ने प्रमुख निर्वाचन क्षेत्रों में नए चेहरों की वकालत की है। हालाँकि, शीर्ष नेतृत्व कथित तौर पर आंतरिक विद्रोह का जोखिम लेने को तैयार नहीं है।
एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने पत्रकारों से कहा, “हम हरियाणा की पुनरावृत्ति नहीं चाहते हैं,” उन उदाहरणों का हवाला देते हुए जहाँ टिकट से इनकार करने पर प्रमुख हस्तियों ने निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ा, जिससे अंततः पार्टी की चुनावी संभावनाओं को नुकसान पहुँचा। यह रणनीति एक महत्वपूर्ण मोड़ पर एकता बनाए रखने पर केंद्रित, सतर्क और जोखिम से बचने वाले दृष्टिकोण को दर्शाती है।
अभियान का एजेंडा और राजनीतिक विश्लेषण
एकजुटता को प्राथमिकता देने का यह आंतरिक निर्णय, राज्य में पार्टी के राष्ट्रीय एजेंडे का लाभ उठाने के प्रयास से भी जुड़ा है। कांग्रेस राहुल गांधी के ‘वोट चोरी’ के खिलाफ अभियान को भुनाने के लिए उत्सुक है, जो एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दा है, जहाँ उन्होंने चुनावी अनियमितताओं का आरोप लगाया है, खासकर बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन संशोधन (एसआईआर) के संबंध में।
चुनाव आयोग के एसआईआर अभ्यास, जिसके कारण मतदाता सूची के मसौदे से बड़ी संख्या में नाम हटाए गए, ने विपक्ष से तीखी आलोचना प्राप्त की है, जो दावा करते हैं कि यह गरीब और अल्पसंख्यक मतदाताओं को लक्षित करता है। राहुल गांधी ने खुद राज्य में “वोट अधिकार यात्रा” का नेतृत्व किया, संशोधन को “वोट चोरी” का प्रयास बताया।
एक वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक ने कहा कि कांग्रेस की सतर्क रणनीति एक खंडित राजनीतिक माहौल की सीधी प्रतिक्रिया है। पटना विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर डॉ. रतन प्रकाश ने कहा, “प्रदर्शन संबंधी चिंताओं के बावजूद, कांग्रेस का मौजूदा विधायकों को बनाए रखने का निर्णय महत्वाकांक्षी विस्तार के बजाय उनके तत्काल लक्ष्य को दर्शाता है: अस्तित्व और स्थिरता।” उन्होंने कहा, “वे अपने ही कुछ विधायकों के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर की तुलना में आंतरिक विद्रोह से खतरे को अधिक हानिकारक मानते हैं, खासकर ऐसे समय में जब पूरे इंडिया ब्लॉक को एक एकजुट मोर्चा पेश करने की आवश्यकता है।”
सीट-साझाकरण वार्ता जल्द ही समाप्त होने की उम्मीद है, और चुनाव आयोग इस सप्ताह बिहार में चुनाव तैयारियों की समीक्षा करने वाला है, कांग्रेस का यह संतुलित दृष्टिकोण आंतरिक स्थिरता को प्राथमिकता देते हुए इंडिया ब्लॉक के साझा मंच पर प्रभावी ढंग से प्रचार करने के लिए उच्च दांव को रेखांकित करता है।