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पूर्व विधायक को माफी देने की कोशिश पर विवाद

In Politics
September 29, 2025
rajneetiguru.com - पूर्व विधायक को माफी देने की कोशिश पर सियासी विवाद। Image Credit – The Indian Express

जयपुर — राजस्थान की राजनीति में इन दिनों एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। मामला है भारतीय जनता पार्टी (BJP) के पूर्व विधायक कंवरलाल मीणा को लेकर, जिन्होंने राज्यपाल के समक्ष दया याचिका दाखिल कर सजा माफ़ करने की गुहार लगाई है। यह याचिका राजनीतिक गलियारों में गर्म चर्चा का विषय बनी हुई है क्योंकि इससे न केवल संवैधानिक अधिकारों के इस्तेमाल पर सवाल उठे हैं, बल्कि भविष्य में राजनीति और कानून के बीच संतुलन की चुनौती भी सामने आई है।

कंवरलाल मीणा को कई साल पुराने एक प्रकरण में दोषी ठहराया गया था। आरोप था कि चुनावी विवाद के दौरान उन्होंने एक प्रशासनिक अधिकारी को धमकाया। निचली अदालत ने तीन साल की सजा सुनाई, जिसे उच्च न्यायालय और बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने भी बरकरार रखा। सजा दो वर्ष से अधिक होने के कारण उनकी विधानसभा सदस्यता स्वतः समाप्त कर दी गई।

मीणा ने अब राज्यपाल से दया याचिका दायर कर राहत की मांग की है। उनके समर्थक तर्क दे रहे हैं कि जेल में रहते हुए उन्होंने शांति बनाए रखी, अनुशासित व्यवहार दिखाया और सामाजिक कार्यों में योगदान दिया। समर्थक यह भी कहते हैं कि उनका जनाधार मज़बूत है और उन्होंने समाज के कमजोर तबकों के लिए कई पहल की हैं। इसलिए उन्हें दूसरा मौका मिलना चाहिए।

विधानसभा में विपक्ष के नेता टीका राम जुल्लि ने इस याचिका का कड़ा विरोध किया है। उनका कहना है कि यदि राज्यपाल द्वारा माफी दी जाती है, तो यह “गलत मिसाल” होगी और आम जनता के बीच यह संदेश जाएगा कि राजनीतिक ताकतवर नेताओं को विशेष छूट मिल सकती है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार Article 161 का दुरुपयोग कर रही है, जिसके तहत राज्यपाल को माफी, सजा कम करने या दंड बदलने का अधिकार है।

जुल्लि ने सवाल उठाया कि क्या ऐसी छूट किसी आम व्यक्ति को मिल सकती थी? उन्होंने कहा, “कानून सबके लिए समान होना चाहिए। यदि गंभीर अपराधों में दोषी पाए गए नेताओं को माफ़ किया जाता है, तो यह न्याय और लोकतंत्र दोनों पर चोट होगी।”

संविधान का Article 161 राज्यपाल को यह शक्ति देता है कि वे किसी भी अपराधी की सजा माफ़ कर सकते हैं या कम कर सकते हैं। हालांकि, यह अधिकार निरंकुश नहीं है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इस शक्ति का उपयोग राजनीतिक दबाव या अनुचित कारणों से किया गया, तो अदालतें हस्तक्षेप कर सकती हैं। न्यायालय यह जांच सकती हैं कि क्या माफी का निर्णय उचित आधार पर लिया गया या नहीं।

यदि राज्यपाल याचिका खारिज कर देते हैं, तो मीणा को पूरी सजा भुगतनी होगी और उनकी राजनीतिक वापसी की संभावना लगभग खत्म हो जाएगी। दूसरी ओर, यदि माफी मिलती है, तो यह मामला अदालत तक जा सकता है और कानूनी लड़ाई लंबे समय तक चल सकती है।

विश्लेषकों का मानना है कि इस प्रकरण का असर केवल एक व्यक्ति तक सीमित नहीं रहेगा। यह आने वाले समय में ऐसे सभी मामलों के लिए नज़ीर बन सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि संवैधानिक प्रावधान और राजनीतिक हितों के बीच किसका पलड़ा भारी पड़ता है।

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