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किशोर के आरोपों पर भाजपा की चुप्पी पर आरके सिंह का वार

In Politics
September 24, 2025
rajneetiguru.com - किशोर के आरोपों पर आरके सिंह का भाजपा नेताओं पर हमला। Image Credit – The Indian Express

बिहार भाजपा में अंदरूनी तनाव उस समय खुलकर सामने आया जब साइडलाइन किए गए पूर्व सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री आर. के. सिंह ने पार्टी के दो शीर्ष नेताओं की चुप्पी पर सीधा हमला बोला। सिंह का कहना है कि उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दिलीप जायसवाल प्रशांत किशोर द्वारा लगाए गए आरोपों पर अब तक कोई जवाब नहीं दे पाए हैं, जिससे जनता के बीच पार्टी की छवि को गहरा नुकसान हो रहा है।

आरके सिंह ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “नेताओं की चुप्पी सवाल खड़े करती है। यदि उनके पास इन आरोपों का कोई ठोस जवाब नहीं है, तो उन्हें पद पर बने रहने का नैतिक अधिकार नहीं है।”

उनके इस बयान ने न केवल भाजपा के भीतर हलचल पैदा की है बल्कि विपक्ष को भी मुद्दा थमा दिया है।

प्रशांत किशोर ने हाल ही में अपने सार्वजनिक बयानों में भाजपा और सहयोगी दलों के कई नेताओं पर गंभीर आरोप लगाए थे। इनमें नाम बदलने और शैक्षणिक योग्यता को लेकर सवाल, हत्या मामले में संलिप्तता, और आर्थिक अनियमितताओं जैसे मुद्दे शामिल हैं। किशोर ने इन आरोपों को बार-बार मंचों और सभाओं में दोहराया, जिससे राजनीतिक माहौल गरमाता जा रहा है।

इन आरोपों के बाद से अब तक सम्राट चौधरी और दिलीप जायसवाल ने सार्वजनिक मंच पर कोई ठोस जवाब नहीं दिया है। यही कारण है कि आरके सिंह जैसे वरिष्ठ नेता भी इसे पार्टी के लिए गंभीर चुनौती मान रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आरोप चाहे सही हों या गलत, चुप्पी जनता के बीच संदेह पैदा करती है।

बिहार में 2025 के विधानसभा चुनाव नज़दीक हैं और इस समय भाजपा अपनी चुनावी रणनीति को मजबूत करने में लगी हुई है। ऐसे में पार्टी के शीर्ष नेताओं पर लगे आरोप और उन पर कायम चुप्पी विपक्षी दलों को हमला बोलने का मौका दे रही है। आरके सिंह का यह बयान ऐसे वक्त में आया है, जब भाजपा को एकजुटता दिखाने की ज़रूरत है।

हालांकि विपक्षी दलों ने आरके सिंह के इस बयान का स्वागत किया है और इसे भाजपा की आंतरिक कमजोरी का प्रमाण बताया है। एक विपक्षी नेता ने कहा, “जब भाजपा के अपने ही वरिष्ठ नेता सवाल उठा रहे हैं, तो यह साफ है कि पार्टी के भीतर भी असंतोष गहराता जा रहा है।”

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि भाजपा को इस मुद्दे पर जल्द ही स्पष्ट रुख अपनाना होगा। राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर डॉ. अरुण मिश्रा के अनुसार, “राजनीतिक दलों की साख जनता की नजर में पारदर्शिता पर टिकी होती है। अगर शीर्ष नेता गंभीर आरोपों पर चुप रहते हैं, तो इससे पार्टी की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े होते हैं और इसका सीधा असर चुनावी परिणामों पर पड़ सकता है।”

अब निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या सम्राट चौधरी और दिलीप जायसवाल आने वाले दिनों में इन आरोपों पर कोई सार्वजनिक सफाई देंगे या चुप्पी बनाए रखेंगे। भाजपा के लिए यह केवल छवि का नहीं बल्कि चुनावी रणनीति का भी सवाल बन चुका है।

आरके सिंह का यह बयान स्पष्ट संकेत देता है कि पार्टी के भीतर असहमति की आवाजें उठ रही हैं और अगर इन्हें समय रहते नहीं सुलझाया गया, तो आने वाले चुनावों में इसका खामियाजा उठाना पड़ सकता है।

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