
राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के भीतर एक नई दरार उभरकर सामने आई है। यह विवाद विचारधारा या चुनावी रणनीति को लेकर नहीं, बल्कि एक व्यक्ति — संजय यादव — के बढ़ते प्रभाव को लेकर है। तेजस्वी यादव के करीबी और रणनीतिकार संजय यादव अब सिर्फ सलाहकार नहीं रहे, बल्कि पार्टी के भीतर एक निर्णायक शक्ति केंद्र के रूप में देखे जा रहे हैं।
संजय यादव करीब एक दशक पहले तेजस्वी यादव के राजनीतिक सफर की शुरुआत के समय उनके साथ जुड़े थे। शुरुआत में वे चुनावी रणनीति, सोशल मीडिया प्रबंधन और संगठनात्मक कामकाज देखते थे। धीरे-धीरे वे ऐसे व्यक्ति बन गए, जिनसे गुज़रकर ही कई लोग तेजस्वी तक पहुँच पाते थे।
राज्यसभा में उनकी नियुक्ति ने उनकी भूमिका को और स्पष्ट कर दिया। अब वे केवल रणनीतिकार नहीं, बल्कि टिकट वितरण, बैठकों और निर्णय-प्रक्रियाओं में अहम आवाज़ बन चुके हैं।
लालू प्रसाद यादव के परिवार के भीतर यह स्थिति सहज नहीं रही। कई सदस्यों ने संकेत दिए हैं कि एक “बाहरी” व्यक्ति के पास परिवार की परंपरागत शक्ति से भी अधिक प्रभाव है। हाल ही में एक सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान संजय यादव को तेजस्वी यादव के साथ प्रमुख स्थान पर बैठा देखा गया। इसे उनके बढ़ते कद का प्रतीक माना गया और परिवार के भीतर असंतोष के स्वर मुखर हुए।
यह विवाद ऐसे समय में उभरा है जब बिहार विधानसभा चुनाव नज़दीक हैं। RJD तेजस्वी के नेतृत्व में सत्ता की चुनौती देने की तैयारी में है। परिवार और पार्टी के भीतर मतभेद विपक्ष के लिए बड़ा हथियार साबित हो सकते हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि संजय यादव का आधुनिक और डेटा-आधारित दृष्टिकोण पार्टी को मज़बूत करता है, लेकिन यदि उनकी भूमिका परिवार और वरिष्ठ नेताओं पर हावी दिखे तो इससे परंपरागत समर्थक नाराज़ हो सकते हैं।
वरिष्ठ नेता भले ही सार्वजनिक रूप से चुप हैं, लेकिन कई लोगों का कहना है कि परिवार की अनदेखी का संदेश पार्टी की छवि को नुकसान पहुँचा सकता है। वहीं युवा कार्यकर्ताओं का मानना है कि संजय यादव की रणनीति ही RJD को आधुनिक राजनीति में आगे ले जा सकती है।
फिलहाल यह विवाद केवल संकेतों और बयानों तक सीमित है। तेजस्वी यादव अपने रणनीतिकार के साथ मज़बूती से खड़े हैं, जबकि परिवार के कुछ सदस्य नाराज़गी जता चुके हैं। आने वाले समय में यह देखना होगा कि यह असहमति बढ़ती है या सीमित रह जाती है।
आरजेडी के लिए असली चुनौती यह होगी कि संजय यादव की भूमिका चुनावों में वरदान साबित होती है या यह विवाद पार्टी की एकता पर सवाल खड़े करता है।