
कर्नाटक में सामाजिक-आर्थिक एवं शैक्षणिक सर्वेक्षण (जिसे आम भाषा में जातिगत सर्वे कहा जा रहा है) आज से शुरू हो गया है, जहाँ कांग्रेस सरकार इस योजना को अपनी ही पार्टी के कुछ नेताओं और बीजेपी की तीव्र आपत्तियों के बावजूद आगे बढ़ा रही है। यह सर्वे राज्य के लगभग दो करोड़ घरों को शामिल करते हुए अक्टूबर की शुरुआत तक चलेगा, और अनुमानित लागत ₹420 करोड़ होगी।
इस अभियान के लिए लगभग 1.75 लाख गणक तैनात किए गए हैं। प्रत्येक गणक को लगभग 140-150 घरों से डेटा इकट्ठा करने का काम सौंपा गया है। पिछली रिपोर्ट (2015) की सूची से-dropdown मेनू बनाए गए हैं और सर्वेक्षण में लगभग 60 प्रश्न होंगे, जो जाति, सामाजिक-आर्थिक स्थिति, शिक्षा आदि का पता लगाएंगे।
भाजपा ने सर्वेक्षण की कई विशेषताओं पर आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि “Christian उप-जातियाँ” जैसे “Kuruba Christian”, “Vokkaliga Christian” आदि को शामिल किया गया है जिससे आरक्षण व्यवस्था में हेरफेर का प्रयास हो सकता है। साथ ही वे सर्वेक्षण की समय सीमा और त्योहारी सीज़न के बीच इसे चलाने को चुनौती दे रहे हैं।
कांग्रेस और राज्य आयोग के अधिकारी कहते हैं कि ये विधाएँ नई नहीं हैं, बल्कि 2015 के सर्वेक्षण में लोगों ने खुद ऐसी उप-जातियों के रूप में अपनी पहचान बताई थी। ऐसी 33 जातियों के नामDropdown सूची से हटा दिए गए हैं, लेकिन यदि कोई व्यक्ति चाहें, तो “Others” विकल्प के माध्यम से अपनी इच्छित उप-जाति के अनुसार पहचान दर्ज करवा सकता है।
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने स्पष्ट किया है कि इस सर्वे का उद्देश्य धर्म निर्धारित करना या बदलना नहीं है, बल्कि सामाजिक एवं शैक्षणिक असमानताओं को मापना है। उन्होंने कहा, “अगर समानता और समान अवसर हों, तो क्या धर्म परिवर्तन होंगे?” एवं इस तरह की आरोपों को नकारा।
2015 में हुआ कर्नाटक सामाजिक-आर्थिक एवं शिक्षा सर्वेक्षण (कंठराज आयोग) भी बड़े पैमाने पर किया गया था, जिसमें दस मिलियन से ज्यादा घरों को शामिल किया गया था। उस समय भी प्रमुख जातियों ने अपनी आबादी के कम दर्ज होने की शिकायत की थी। वर्तमान सर्वे का उद्देश्य और अधिक सूक्ष्म डेटा जुटाना है, ताकि योजनाएँ बेहतर तरीके से तैयार हो सकें।
बेंगलुरु में सर्वेक्षण में लगभग एक सप्ताह की देरी हो सकती है। कुछ क्षेत्रों में गणकों की सहायता लिए शिक्षकों का उपयोग होगा। घरो–घर जाना,- स्वयं-घोषणा, और समय स्लॉट बुकिंग जैसे विकल्प दिए गए हैं ताकि लोग सुविधानुसार अपने समय पर डेटा भर सकें।
धर्म से जुड़ी प्रश्नावली में हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी आदि के साथ “Others”, “Atheist”, “Refused to Disclose” जैसे विकल्प भी शामिल हैं। जिन जातियों के साथ धार्मिक उपसर्ग (“Christian उप-जाति”) जोड़ी गई थी और जोDropdown सूची से हटा दी गई है, वे “Others” विकल्प से अपनी पहचान दर्ज करा सकेंगे।
यह सर्वे कर्नाटक में धार्मिक और जातिगत समीकरणों को पुनर्स्थापित कर सकता है, विशेष रूप से उन समुदायों के बीच जहाँ पहले से ही पहचान और आरक्षण की बहस चल रही है। यह आरक्षण नीति, सामाजिक कल्याण और संसाधन विभाजन पर महत्वपूर्ण असर डाल सकता है।
दूसरी ओर, आलोचक चेतावनी दे रहे हैं कि जल्दीबाजी, पहचान संबंधी भ्रम और राजनीतिक हस्तक्षेप से इस सर्वेक्षण की विश्वसनीयता कम हो सकती है। कई लोगों ने सर्वेक्षण की अवधि बढ़ाने या समय-सीमा में लचीलापन देने की मांग की है।
जैसे-जैसे डेटा संग्रह शुरू होगा, सरकार की भूमिका पारदर्शिता सुनिश्चित करने में और प्रक्रिया की वैज्ञानिकता बनाए रखने में महत्वपूर्ण होगी। जनता और राजनीतिक दल दोनों इस बात पर नजर रखेंगे कि सर्वेक्षण कितना विश्वसनीय और निष्पक्ष हो।