अमेरिका द्वारा H-1B वीजा शुल्क में अचानक की गई भारी वृद्धि को लेकर भारत में राजनीतिक और औद्योगिक हलकों में नाराज़गी बढ़ती जा रही है। कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) [सीपीएम] ने इस फैसले की कड़ी आलोचना की है और इसे भारतीय पेशेवरों के हितों पर प्रतिकूल असर डालने वाला कदम बताया है। पार्टी ने केंद्र सरकार से आग्रह किया है कि वह इस विषय पर अमेरिका के सामने सख्त रुख अपनाए और दबाव की राजनीति को स्वीकार न करे।
सीपीएम के अनुसार, यह निर्णय अमेरिका के व्यापारिक हितों को साधने का एकतरफा प्रयास है, जिसका खामियाजा भारतीय आईटी उद्योग और पेशेवरों को भुगतना पड़ेगा। पार्टी ने कहा कि भारत को अमेरिकी दबाव के आगे नहीं झुकना चाहिए और अपने नागरिकों के हितों की रक्षा करनी चाहिए।
H-1B वीजा कार्यक्रम अमेरिका में विशेष तकनीकी और पेशेवर क्षेत्रों में विदेशी कर्मचारियों को काम करने की अनुमति देता है। विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) क्षेत्रों में भारतीय पेशेवर इस वीजा का सबसे अधिक उपयोग करते हैं। अनुमान है कि हर साल जारी होने वाले H-1B वीज़ा में से लगभग दो-तिहाई भारतीयों के हिस्से आते हैं।
अब अमेरिका द्वारा शुल्क में की गई अचानक वृद्धि से भारत के हजारों पेशेवर प्रभावित होंगे। पहले जहाँ आवेदन शुल्क कुछ हजार डॉलर था, वहीं अब इसे लाखों रुपये के बराबर कर दिया गया है। इससे न केवल कंपनियों की लागत बढ़ेगी बल्कि नौकरी और करियर योजनाओं पर भी गहरा असर पड़ेगा।
सीपीएम ने बयान जारी कर कहा कि यह निर्णय “अन्यायपूर्ण और प्रतिशोधात्मक” है और भारत सरकार को इसे सीधे चुनौती देनी चाहिए। पार्टी ने मांग की कि केंद्र सरकार कूटनीतिक स्तर पर अमेरिका के साथ बातचीत करे और भारतीय आईटी पेशेवरों के हितों को प्राथमिकता दे।
उधर, आईटी उद्योग से जुड़े संगठनों का कहना है कि इस शुल्क वृद्धि से अमेरिका में चल रहे कई प्रोजेक्ट प्रभावित हो सकते हैं। कंपनियों को नए सिरे से स्टाफिंग रणनीति बनानी पड़ सकती है और कई परियोजनाएँ आर्थिक रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकती हैं।
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भारतीय पेशेवरों पर असर – जिन युवाओं ने अमेरिका में करियर की योजना बनाई थी, उनके लिए यह निर्णय नई चुनौतियाँ खड़ी करेगा। नौकरी और वीज़ा प्रक्रिया पहले से ही कठिन थी, अब लागत और अधिक बढ़ जाएगी।
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आईटी उद्योग की चिंता – अमेरिका में बड़े पैमाने पर काम कर रही भारतीय आईटी कंपनियों को अब अतिरिक्त आर्थिक बोझ उठाना होगा। इससे आउटसोर्सिंग मॉडल पर भी असर पड़ सकता है।
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परिवारों पर असर – जिन पेशेवरों के परिवार भारत और अमेरिका में बँटे हुए हैं, उनके लिए यह नई नीति अस्थिरता और असुरक्षा की स्थिति पैदा करेगी।
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भारत-अमेरिका संबंध – यह फैसला कूटनीतिक तनाव का कारण भी बन सकता है। भारत सरकार को अब संतुलित लेकिन मज़बूत रुख अपनाना होगा।
राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत को इस मुद्दे को बहुपक्षीय मंचों पर भी उठाना चाहिए। आईटी क्षेत्र भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है और इस पर प्रतिकूल प्रभाव देश की विकास गति को धीमा कर सकता है।
सीपीएम का स्पष्ट कहना है कि सरकार को अमेरिकी नीतियों के आगे झुकने के बजाय अपने नागरिकों और उद्योगों की सुरक्षा करनी होगी। आने वाले दिनों में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि केंद्र सरकार कूटनीतिक स्तर पर कितना सक्रिय कदम उठाती है।
