
पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सरकार को फिर से दबाव का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि कुर्मी समुदाय ने अनुसूचि जनजाति (ST) दर्जा की माँगों को पुनर्जीवित किया है और तीन राज्यों में रेल-और सड़क अवरोध की धमकी दी है। कुर्मियों का कहना है कि उन्हें 1931 की जनगणना में आदिवासी श्रेणियों में दर्ज किया गया था लेकिन 1950 में ST सूची से हटा दिया गया, और पिछले आंदोलन कुछ भी हासिल नहीं कर पाए।
कुर्मी या कुछ क्षेत्रों में कुड़मी/महोतो नाम से जाना जाने वाला यह समुदाय मुख्यतः झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा के छोटा नागपुर पठार क्षेत्र में रहता है। ब्रिटिश शासन के समय 1931 की जनगणना में इन्हें आदिवासी/ट्राइबल समूहों में शामिल किया गया था, लेकिन स्वतंत्र भारत में 1950 में बनी पहली ST सूची में स्थान नहीं मिला। उस के बाद कई राज्यों में इन्हें OBC की श्रेणी में शामिल कर दिया गया। वर्षों से कुर्मी संगठन अपने ST दर्जा की पुनर्स्थापना, अपने बोली-भाषा कुर्माली की संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की माँग, 2026 की राष्ट्रीय जनगणना में धर्म स्तंभ में आदिवासी पहचान, PESA कानूनों और चतु¬-नागपुर टैनेन्सी एक्ट के दायरे को उनके क्षेत्रों तक बढ़ाने की मांग कर रहे हैं।
आदिवासी कुर्मी समाज (AKS) ने झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में 20 सितंबर से “रेल रोको” आंदोलन शुरू करने की घोषणा की है, जिसमें ST दर्जा, कुर्माली भाषा की मान्यता, पारंपरिक पंचायती व्यवस्था और ज़मीन-टहसील कानूनों में सुरक्षा शामिल है। आंदोलनकारियों का कहना है कि इतिहास के साक्ष्य जैसे कि 1937 का विल्किंसन रूल यह दर्शाते हैं कि कुर्मियों के प्राचीन समय से स्वशासन की व्यवस्था थी। 2022-23 के दौरान हुए अवरोधों ने यातायात और रेलवे सेवाओं को प्रभावित किया तथा बड़े आर्थिक नुकसान हुए।
कोलकाता उच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल सरकार और रेलवे प्रशासन को यह निर्देश दिया है कि प्रस्तावित आंदोलन के दौरान सार्वजनिक यातायात बाधित न हो, और कानून व्यवस्था बनाए रखी जाए। वहीं राज्य के DGP ने पुलिस बलों को सतर्क रहने को कहा है।
AKS के जिला युवा अध्यक्ष कल्याण महतो ने कहा, “हम शांतिपूर्ण आंदोलन करेंगे … हमारी लड़ाई तब तक जारी रहेगी जब तक कुर्मी आदिवासी के रूप में चिन्हित नहीं हो जाते।” उन्होंने यह भी कहा कि पिछले अवरोधों के दौरान सरकार से बैठने-बठक हुई लेकिन कुछ भी ठोस नहीं हुआ।
वहीं कुछ आदिवासी संगठनों ने इस मांग का विरोध करते हुए कहा है कि ST दर्जा मिलने से मौजूदा जनजातियों के संवैधानिक अधिकार, नौकरी- आरक्षण और भूमि-मंत्री हितों पर प्रभाव पड़ेगा। केंद्रीय सरना कमेटी की निशा भगत ने कहा, “यदि उन्हें जनजाति दर्जा मिल गया, तो देश भर के आदिवासियों का अस्तित्व ही खतरे में पड़ेगा।”
कुर्मी समुदाय पश्चिम बंगाल में राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है, विशेषकर पुरुलिया, बांकुरा, झारग्राम और बिरभूम के जिलों में, जहां उनका वोट प्रतिशत कई विधानसभा क्षेत्रों को प्रभावित करता है। दूसरी ओर, अधिसूचित जनजाति समूहों (Santhals, Bhumijs आदि) का विरोध हो रहा है क्योंकि वे आरक्षण और संसाधन हिस्सेदारी के मामलों में प्रभाव के ह्रास से डरते हैं।
राज्य सरकार ने कई जिलों को अलर्ट पर रखा है, आंदोलनकारियों को चेतावनी दी है कि राष्ट्रीय राजमार्ग, रेलवे स्टेशनों या ट्रैक को अवरुद्ध करना स्वीकार्य नहीं होगा। TMC नेता यह कहते रहे हैं कि ST सूची में बदलाव केवल केंद्र सरकार कर सकती है और पश्चिम बंगाल ने केंद्र को अपनी प्रस्तावित सिफारिशें भेजी हैं। आलोचक कहते हैं कि राज्य सरकार प्रक्रिया एवं औपचारिकताओं को स्थगित कर अपने कदमों को टाल रही है।
आने वाले कुछ सप्ताह इस हादसे की दिशा तय करेंगे। कुछ प्रमुख बिंदु होंगे कि केंद्र सरकार इस मांग पर क्या प्रतिक्रिया देगी, आदिवासी संगठन कितना मजबूत विरोध करेंगें, TMC किस तरह से कुर्मी और अन्य जनजातियों के बीच संतुलन बनाए रखेगा, और यदि रोड-रेल ब्लॉकेड हुए तो जनता की प्रतिक्रिया कैसी होगी।
फिलहाल, टीएमसी सरकार सतर्क रणनीति अपनाए हुए है: कुर्मी शिकायतों को मान्यता देना, औपचारिक प्रस्ताव केंद्र को भेजना, लेकिन ऐसी कोई स्पष्ट प्रतिबद्धता न देना जिससे अन्य समुदायों से प्रतिरोध खड़ा हो जाए।