
कर्नाटक के अलंद निर्वाचन क्षेत्र में बड़े पैमाने पर वोट विलोपन का मामला सामने आने के बाद राजनीतिक और प्रशासनिक हलचल तेज हो गई है। एक बूथ स्तर अधिकारी (BLO) की सतर्कता और कांग्रेस विधायक बी.आर. पाटिल की पहल से यह उजागर हुआ कि हजारों मतदाताओं के नाम हटाने के लिए झूठे आवेदन किए गए थ
दिसंबर 2022 से फरवरी 2023 के बीच, अलंद क्षेत्र से 6,000 से अधिक मतदाता नाम विलोपन आवेदन ऑनलाइन किए गए। जांच के बाद पता चला कि इनमें से केवल कुछ ही सही थे, जबकि लगभग 6,000 आवेदन गलत पाए गए। जिन मतदाताओं के नाम हटाए जाने की कोशिश हुई, वे अभी भी क्षेत्र में रह रहे थे और मतदान के पात्र थे।
पहला संकेत तब मिला जब एक BLO ने पाया कि उसके जीवित रिश्तेदार के नाम से विलोपन आवेदन दर्ज किया गया था। इसके बाद विधायक पाटिल और कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने गहराई से जांच की और लगभग हर बूथ पर दर्जनों संदिग्ध आवेदन पाए।
जांच से संकेत मिले हैं कि कर्नाटक के बाहर पंजीकृत मोबाइल नंबरों का इस्तेमाल कर OTP के माध्यम से लॉगिन किया गया। इन प्रमाणों का उपयोग कर निर्वाचन आयोग की ऐप्स पर विलोपन आवेदन दर्ज किए गए। आवेदन का पैमाना और समानता यह दिखाता है कि यह एक केंद्रीकृत ऑपरेशन था, न कि कुछ व्यक्तियों की अलग-थलग कोशिश।
राज्य की अपराध जांच शाखा (CID) ने निर्वाचन आयोग से तकनीकी डेटा मांगा है, जिसमें इंटरनेट प्रोटोकॉल (IP) पते, डिवाइस पोर्ट और OTP ट्रेल शामिल हैं, ताकि फर्जी आवेदनों की असली उत्पत्ति का पता लगाया जा सके। अधिकारियों का कहना है कि कुछ जानकारी मिली है, लेकिन महत्वपूर्ण तकनीकी विवरण अब भी लंबित हैं, जिससे जांच की गति धीमी है।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में आरोप लगाया कि अलंद क्षेत्र में व्यवस्थित तरीके से हजारों मतदाताओं के नाम हटाने की कोशिश की गई। उन्होंने कहा, “यह सिर्फ एक क्षेत्र की बात नहीं है, बल्कि हमारे लोकतंत्र की विश्वसनीयता का सवाल है। यदि मतदाता सूची से छेड़छाड़ की जा सकती है तो स्वतंत्र चुनाव की नींव हिल जाती है।”
निर्वाचन आयोग ने, हालांकि, आरोपों से इंकार किया और कहा कि किसी भी नाम को केवल ऑनलाइन हटाना संभव नहीं है, इसके लिए भौतिक सत्यापन जरूरी है।
यह विवाद राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन गया है क्योंकि अलंद क्षेत्र सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील है। यहाँ पिछड़े वर्गों और अल्पसंख्यकों की बड़ी संख्या है, और मतदाता सूची में मामूली बदलाव भी चुनाव परिणामों को प्रभावित कर सकता है।
इस घटना ने BLO की भूमिका को भी रेखांकित किया है, जो चुनावी सूची की सटीकता बनाए रखने की पहली कड़ी होते हैं। उनकी सतर्कता से बड़े पैमाने पर गड़बड़ियों को रोका जा सकता है।
राज्य की जांच एजेंसियों और निर्वाचन आयोग के बीच टकराव ने पारदर्शिता और जवाबदेही पर सवाल खड़े किए हैं। यदि समय पर तकनीकी जानकारी साझा नहीं की गई तो जांच बाधित हो सकती है, जिससे आम जनता का चुनावी प्रक्रिया पर भरोसा कम हो सकता है।
आगामी चुनावों के मद्देनज़र यह मामला तय करेगा कि मतदाता सूचियों की सुरक्षा और निगरानी किस तरह से मजबूत की जाएगी। यह याद दिलाता है कि डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म सुविधाजनक तो हैं, लेकिन इनके दुरुपयोग को रोकने के लिए कठोर सुरक्षा उपाय आवश्यक हैं।