
राजस्थान में 2020 के बहुचर्चित राजनीतिक संकट से जुड़े विधायकों की खरीद-फरोख्त के आरोपों पर दर्ज मामले को राजस्थान उच्च न्यायालय ने बंद कर दिया है, जिससे एक बार फिर राज्य की राजनीति में हलचल मच गई है। उच्च न्यायालय ने भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) की क्लोजर रिपोर्ट को स्वीकार करते हुए कहा कि विधायकों की खरीद-फरोख्त का कोई सबूत नहीं मिला। यह फैसला उस राजनीतिक खींचतान पर एक निर्णायक मुहर लगाता है, जिसने तत्कालीन अशोक गहलोत सरकार को संकट में डाल दिया था।
राजनीतिक पृष्ठभूमि और संकट की शुरुआत
यह पूरा मामला जुलाई 2020 का है जब तत्कालीन उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायकों ने अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली सरकार के खिलाफ बगावत कर दी थी। इस दौरान, कांग्रेस ने आरोप लगाया था कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) उनकी सरकार को अस्थिर करने के लिए विधायकों की खरीद-फरोख्त की कोशिश कर रही है। इसी आरोप के आधार पर स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (SOG) और एसीबी में कई मामले दर्ज किए गए। इन मामलों में निर्दलीय विधायक रमीला खड़िया और अन्य को प्रभावित करने की कोशिश के आरोप में अशोक सिंह और भरत मलानी जैसे कुछ लोगों को आरोपी बनाया गया था।
जांच का मुख्य आधार कुछ फोन रिकॉर्डिंग थीं, जिनके माध्यम से कथित तौर पर राजनीतिक षड्यंत्र का खुलासा होने का दावा किया गया था। इस संकट ने राज्य को “रिसॉर्ट पॉलिटिक्स” के दौर में धकेल दिया, जहां कांग्रेस अपने विधायकों को जयपुर और जैसलमेर के होटलों में ठहराने के लिए मजबूर हो गई थी। आखिरकार, पार्टी आलाकमान के हस्तक्षेप और गहलोत सरकार के विश्वास मत जीतने के बाद यह संकट खत्म हुआ।
क्लोजर रिपोर्ट और कानूनी परिणाम
उच्च न्यायालय का यह फैसला एसीबी की क्लोजर रिपोर्ट पर आधारित है, जिसमें कहा गया है कि जांच के दौरान विधायकों की खरीद-फरोख्त, रिश्वतखोरी, या किसी भी तरह के राजनीतिक षड्यंत्र का कोई प्रमाण नहीं मिला। रिपोर्ट में फोन रिकॉर्डिंग की फॉरेंसिक जांच का भी जिक्र है, जिसमें केवल सामान्य राजनीतिक चर्चा, आईपीएल और व्यक्तिगत बातचीत पाई गई। इसके अलावा, बैंक खातों के लेनदेन की जांच में भी किसी तरह के वित्तीय हेरफेर के सबूत नहीं मिले। एसीबी ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट किया कि किसी भी विधायक ने यह शिकायत नहीं की कि उनसे संपर्क किया गया या उन्हें कोई प्रलोभन दिया गया था।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं और आरोप-प्रत्यारोप
हाईकोर्ट के इस फैसले पर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं अपेक्षित रूप से सामने आईं। वर्तमान भजनलाल सरकार में मंत्री सुरेश रावत ने इस फैसले को कांग्रेस की “आपसी लड़ाई” का परिणाम बताया। उन्होंने कहा, “सांच को आंच नहीं। उस समय भी यह उनकी आपसी लड़ाई थी। आपसी लड़ाई में राजस्थान की सरकार होटलों में बैठी रही। जनता का शोषण करने का काम इन्होंने किया। अब कोर्ट ने भी माना कि वह इनका ड्रामा और आपसी लड़ाई थी।” उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि इस झगड़े के कारण राजस्थान का विकास कई साल पीछे चला गया।
वहीं, इस मामले में एक प्रमुख व्यक्ति रहे पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने सीधे तौर पर कोई टिप्पणी करने से परहेज किया। जब उनसे पूछा गया कि क्या यह एक “फर्जी मामला” था, तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “जब आप कह रहे हो और कोर्ट का निर्णय आ चुका है तो मुझसे क्या कहलवाना चाहते हो।” पायलट के इस बयान को इस बात की पुष्टि के तौर पर देखा जा रहा है कि वे इस मामले को एक राजनीतिक साजिश मानते थे, जिसे उनके और उनके समर्थकों को बदनाम करने के लिए रचा गया था।
भविष्य की दिशा
इस फैसले के बाद, यह स्पष्ट हो गया है कि गहलोत सरकार द्वारा लगाए गए आरोप कानूनी रूप से साबित नहीं हो पाए। यह घटनाक्रम न सिर्फ आरोपियों को राहत देता है बल्कि यह भी दर्शाता है कि भारतीय राजनीति में “ऑपरेशन लोटस” जैसे आरोप अक्सर ठोस सबूतों की कमी के कारण कानूनी कसौटी पर टिक नहीं पाते हैं। इस फैसले के बाद, यह संभव है कि राजस्थान में कांग्रेस के भीतर की आंतरिक राजनीति और 2020 के घटनाक्रम को लेकर नए सिरे से बहस छिड़ जाए, जिससे राज्य की राजनीतिक गतिशीलता पर असर पड़ सकता है।