
महाराष्ट्र में आरक्षण को लेकर विवाद एक बार फिर तेज़ हो गया है। हाल ही में जारी एक सरकारी प्रस्ताव (जीआर) ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदायों में असंतोष बढ़ा दिया है। इन समुदायों का कहना है कि मराठा आरक्षण को हैदराबाद गजट के आधार पर लागू करने से उनके मौजूदा आरक्षण अधिकार प्रभावित हो सकते हैं।
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने शनिवार को इस मुद्दे पर बयान देते हुए कहा कि सभी पक्षों को “अत्यधिक राजनीति” से बचना चाहिए और सामाजिक संतुलन बनाए रखना चाहिए। उन्होंने कहा, “हमें सभी समुदायों के अधिकारों की रक्षा करनी होगी, लेकिन समाज में विभाजन पैदा किए बिना। आरक्षण सामाजिक सौहार्द को कमजोर करने का माध्यम नहीं बनना चाहिए।”
ओबीसी नेताओं का तर्क है कि हालिया जीआर के ज़रिए मराठाओं को अप्रत्यक्ष रूप से ओबीसी श्रेणी के लाभ मिल सकते हैं। इससे ऐतिहासिक रूप से वंचित समुदायों के लिए शिक्षा और नौकरियों में अवसर कम हो सकते हैं। राज्यभर में कई ओबीसी, एससी और एसटी संगठनों ने विरोध प्रदर्शन की घोषणा की है और सरकार से स्पष्टता मांगी है।
राकांपा प्रमुख शरद पवार ने इस मुद्दे पर सरकार की आलोचना की। उन्होंने कहा, “आरक्षण संतुलन से छेड़छाड़ करने वाली नीतियाँ समुदायों में अशांति ही फैलाएँगी। सरकार को बहुत सतर्क होकर कदम उठाना चाहिए।”
मराठा आरक्षण का मुद्दा महाराष्ट्र की राजनीति में हमेशा संवेदनशील रहा है। वर्ष 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने मराठाओं को शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण देने वाला कानून रद्द कर दिया था, क्योंकि इससे 50% की सीमा का उल्लंघन होता था। तब से लगातार सरकारें मराठाओं की मांग पूरी करने के प्रयास कर रही हैं, लेकिन इससे अन्य समुदायों के अधिकार प्रभावित न हों, इसकी चुनौती बनी हुई है।
मौजूदा जीआर का मकसद ऐतिहासिक दस्तावेज़ों के आधार पर मराठा समुदाय के दावों को मान्यता देना है। लेकिन ओबीसी समूहों का मानना है कि यह उनके कोटे में सेंध लगाने जैसा है।
महाराष्ट्र में आरक्षण राजनीति ने अक्सर चुनावी समीकरणों को प्रभावित किया है। अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए, यह मुद्दा सत्तारूढ़ भाजपा सरकार और विपक्ष दोनों के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मराठा और ओबीसी दोनों ही बड़ी मतदाता संख्या रखते हैं। राजनीतिक विश्लेषक डॉ. रमेश देशमुख के अनुसार, “मराठाओं की आकांक्षाओं और ओबीसी की चिंताओं में संतुलन बनाना सरकार के लिए बड़ी चुनौती है। यह मुद्दा चुनाव में अहम विवाद का कारण बन सकता है।”
विभिन्न समुदायों के संगठन बीड, जालना और नांदेड़ समेत कई ज़िलों में रैलियाँ और धरना-प्रदर्शन करने की योजना बना रहे हैं। वहीं, सरकार ने संवाद की पेशकश तो की है लेकिन जीआर वापस लेने से इनकार किया है।
अब नज़र इस बात पर है कि सरकार तनाव को कैसे संभालती है और क्या सभी समुदायों के संवैधानिक अधिकारों को सुरक्षित रखते हुए समाधान खोजा जा सकता है।