21 views 0 secs 0 comments

वक्फ संशोधन कानून पर आज सुप्रीम कोर्ट का फैसला

In Politics
September 15, 2025
rajneetiguru.com - वक्फ संशोधन कानून पर सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला आज। Image Credit – The Indian Express

भारत का सुप्रीम कोर्ट आज वक्फ संशोधन कानून की संवैधानिक वैधता पर अपना फैसला सुनाने जा रहा है। यह निर्णय अल्पसंख्यक अधिकारों, संपत्ति प्रबंधन और शासन से जुड़े कई पहलुओं पर दूरगामी असर डाल सकता है।

वक्फ एक्ट की शुरुआत 1995 में हुई थी, जो मुस्लिम समुदाय द्वारा धार्मिक और सामाजिक उद्देश्यों के लिए की गई वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन को नियंत्रित करता है। वर्ष 2024 में एनडीए सरकार ने इसमें बड़े संशोधन किए। सरकार का कहना था कि इन बदलावों का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही लाना है।

संशोधित कानून में केंद्र सरकार को वक्फ बोर्डों पर अधिक नियंत्रण की शक्ति दी गई, साथ ही ऑडिट और रिपोर्टिंग की सख्त व्यवस्थाएँ लागू की गईं। सरकार का तर्क था कि यह कदम वक्फ संपत्तियों के दुरुपयोग और कुप्रबंधन को रोकने के लिए ज़रूरी है।

विपक्षी दलों और कई मुस्लिम संगठनों ने इस संशोधन को चुनौती दी है। उनका कहना है कि यह बदलाव संविधान द्वारा अल्पसंख्यकों को दिए गए अधिकारों (अनुच्छेद 25, 26 और 30) का उल्लंघन करते हैं। उनका आरोप है कि वक्फ बोर्डों की स्वायत्तता को कमज़ोर कर यह कानून केंद्र सरकार के नियंत्रण को बढ़ावा देता है।

एक वरिष्ठ विपक्षी नेता ने कहा,
“सरकार पारदर्शिता के नाम पर नियंत्रण थोप रही है। वक्फ का मामला समुदाय और धार्मिक ट्रस्ट का है, न कि केंद्रीय नौकरशाही का।”

सरकार का कहना है कि यह संशोधन पूरी तरह से कानूनी और ज़रूरी है। उनका दावा है कि वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में लंबे समय से गड़बड़ियाँ होती रही हैं और यह कानून उन्हीं पर रोक लगाने का उपाय है।

संसद में बहस के दौरान एक केंद्रीय मंत्री ने कहा,
“यह अधिकारों को घटाने का नहीं, बल्कि यह सुनिश्चित करने का कदम है कि वक्फ संपत्तियाँ अपने वास्तविक उद्देश्य — सामुदायिक विकास और कल्याण — में काम आएं।”

वक्फ संशोधन एक्ट को सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाओं के माध्यम से चुनौती दी गई। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह संशोधन धार्मिक संपत्तियों का अप्रत्यक्ष राष्ट्रीयकरण है और यह धर्मनिरपेक्षता व अल्पसंख्यक अधिकारों के मूल सिद्धांत को कमजोर करता है।

वहीं सरकार की ओर से पेश वकीलों ने दलील दी कि संसद को यह संशोधन करने का पूरा अधिकार है और यह कानून सार्वजनिक जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है।

कानूनी विशेषज्ञ मानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला आने वाले समय के लिए एक अहम मिसाल बनेगा। यदि यह कानून कायम रहता है, तो संभव है कि धार्मिक ट्रस्टों और संपत्तियों पर सरकारी निगरानी और सख्त हो। अगर इसे असंवैधानिक ठहराया जाता है, तो अल्पसंख्यक संस्थाओं की स्वायत्तता और मज़बूत होगी।

देशभर की निगाहें सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिकी हुई हैं। सरकार इसे सुधार और जवाबदेही का कदम बता रही है, जबकि विपक्ष और मुस्लिम संगठन इसे पहचान, स्वायत्तता और संवैधानिक अधिकारों का मुद्दा मान रहे हैं।

किसी भी परिणाम के साथ, यह फैसला भारत में अल्पसंख्यक अधिकारों और शासन व्यवस्था की दिशा को लंबे समय तक प्रभावित करेगा।

Author

/ Published posts: 118

Rajneeti Guru Author