
भारत और पाकिस्तान के बीच प्रस्तावित क्रिकेट मैच को लेकर राजनीति गरमा गई है। AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने केंद्र सरकार और विशेष रूप से बीजेपी को निशाने पर लेते हुए पूछा है कि क्या 26 नागरिकों की जान से ज्यादा कीमती इस मैच से होने वाली कमाई है।
तेलंगाना से सांसद ओवैसी ने पहलगाम आतंकी हमले का ज़िक्र करते हुए कहा कि सरकार एक ओर आतंकवाद के खिलाफ सख्त नीति की बात करती है, वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान से क्रिकेट खेलने को तैयार दिख रही है। उन्होंने कहा,
“क्या इन 26 निर्दोष नागरिकों की जान की कोई कीमत नहीं? क्या क्रिकेट की कमाई हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा से ज्यादा अहम है?”
भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मैच हमेशा से ही राजनीति और भावनाओं से जुड़ा रहा है। दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण रिश्तों के कारण अक्सर क्रिकेट श्रृंखलाएँ रद्द की जाती रही हैं। पिछले वर्षों में दोनों टीमें केवल अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंटों में ही आमने-सामने आई हैं।
हाल ही में पहलगाम आतंकी हमले में 26 नागरिकों की मौत ने इस विवाद को और गहरा दिया है। विपक्षी दलों और कुछ संगठनों का कहना है कि ऐसे समय में पाकिस्तान के साथ खेल संबंध बनाए रखना शहीदों और उनके परिवारों के साथ अन्याय है।
कांग्रेस नेता अभिषेक दत्त ने भी इस मामले में केंद्र पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि सरकार का “नो टॉक्स विद टेरर” यानी “आतंकवाद से बातचीत नहीं” का दावा इस फैसले से विरोधाभासी लगता है।
उन्होंने कहा,
“अगर सरकार आतंकवाद के खिलाफ सख्त है, तो फिर पाकिस्तान के साथ क्रिकेट खेलने की इजाज़त कैसे दी जा सकती है?”
बीजेपी ने अब तक इस विवाद पर औपचारिक बयान नहीं दिया है। पार्टी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि खेल और राजनीति को अलग रखने की नीति पर विचार किया जा रहा है। लेकिन विरोधियों का आरोप है कि ऐसा रुख केवल आर्थिक हितों को ध्यान में रखकर अपनाया जा रहा है।
खेल विश्लेषकों का मानना है कि भारत-पाक क्रिकेट से न केवल करोड़ों की कमाई होती है, बल्कि दर्शकों का उत्साह भी चरम पर रहता है। हालांकि सुरक्षा विशेषज्ञों का तर्क है कि ऐसे समय में मैच खेलना आतंकवाद से पीड़ित परिवारों के प्रति असंवेदनशीलता दिखाता है।
पूर्व राजनयिक और रणनीतिक विशेषज्ञों का भी कहना है कि भारत को अपनी नीति में स्थिरता दिखानी चाहिए। एक ओर कठोर बयान और दूसरी ओर खेल संबंध, जनता के बीच भ्रम पैदा करते हैं।
सोशल मीडिया पर इस मुद्दे ने बड़ी बहस छेड़ दी है। कुछ लोग मानते हैं कि खेल को राजनीति से जोड़ना सही नहीं है और खिलाड़ियों को खेलने का मौका मिलना चाहिए। वहीं कई अन्य लोगों का कहना है कि जब तक सीमा पर खून बह रहा है, तब तक क्रिकेट जैसी गतिविधियाँ रोक दी जानी चाहिए।
यह विवाद केवल खेल तक सीमित नहीं है, बल्कि चुनावी राजनीति में भी असर डाल सकता है। विपक्ष इसे सरकार की “दोहरे रवैये” की मिसाल बता रहा है, जबकि समर्थक मानते हैं कि ऐसे आयोजनों से दोनों देशों के बीच बातचीत और शांति का रास्ता खुल सकता है।
अब सबकी नज़र सरकार के अगले फैसले पर है। क्या मैच तय समय पर होगा या जनता और विपक्ष के दबाव के चलते इसे स्थगित किया जाएगा — इस पर सस्पेंस बना हुआ है।
ओवैसी के बयान और कांग्रेस की प्रतिक्रिया ने इस मुद्दे को और संवेदनशील बना दिया है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार किस रास्ते पर चलती है — आर्थिक लाभ और खेल को प्राथमिकता देती है या फिर सुरक्षा और भावनाओं को ध्यान में रखकर मैच पर रोक लगाती है।