
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने पार्टी में आंतरिक बदलाव की दिशा में एक स्पष्ट और कठोर संदेश दिया है। उन्होंने गुजरात के पार्टी नेताओं से कहा है कि वे उन “काम न करने वाले” और “समझौता करने वाले” नेताओं को तुरंत हटा दें, जिनकी वजह से पार्टी का प्रदर्शन खराब हो रहा है। उन्होंने इन नेताओं की तुलना “सड़े हुए आमों” से की, जिन्हें समय रहते न हटाया जाए तो वे पूरे बक्से को खराब कर सकते हैं।
खड़गे जूनागढ़ में आयोजित जिला कांग्रेस अध्यक्षों के प्रशिक्षण शिविर के उद्घाटन के मौके पर बोल रहे थे। उन्होंने एक आंतरिक रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें पाया गया है कि गुजरात में पार्टी की 41 शहर और जिला इकाइयों में से 19 का प्रदर्शन संतोषजनक नहीं है। उन्होंने कहा, “41 (शहर और जिला अध्यक्षों में से), नौ इकाइयां पिछड़ रही हैं, जिनमें गांधीनगर और आनंद शामिल हैं… यदि हम (अध्यक्षों के प्रदर्शन की) रैंकिंग देखें, तो नौ फर्स्ट क्लास में हैं, 11 दूसरे स्थान पर हैं और 19 को सुधार की आवश्यकता है।” यह टिप्पणी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के बीच बढ़ती चिंता को दर्शाती है, जो चुनावी हार के बाद संगठनात्मक पुनर्गठन पर जोर दे रहा है।
संगठनात्मक जवाबदेही पर जोर
कांग्रेस पार्टी, विशेष रूप से 2014 के बाद से, कई चुनावी असफलताओं का सामना कर रही है। इन हारों के बाद, पार्टी में संगठनात्मक सुधार और जवाबदेही तय करने की मांग लगातार बढ़ रही है। राहुल गांधी और अन्य वरिष्ठ नेताओं ने भी विभिन्न अवसरों पर पार्टी के भीतर कमजोर कड़ियों को पहचानने और उन्हें दूर करने पर जोर दिया है। पार्टी के भीतर यह आम धारणा है कि कई नेता और कार्यकर्ता जमीनी स्तर पर काम नहीं कर रहे हैं और मतदाताओं को दोष देकर अपनी निष्क्रियता को छिपाने का प्रयास करते हैं।
खड़गे का यह संदेश इसी पृष्ठभूमि में आया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि केवल मतदाताओं को दोष देना पर्याप्त नहीं होगा। उन्होंने कहा, “जो लोग काम नहीं करना चाहते और इसका दोष मतदाताओं पर डालते हैं, यह नहीं चलेगा… ऐसे नेताओं को तुरंत हटा देना चाहिए… एक सड़ा हुआ आम पूरे बक्से को खराब कर देता है… जो आखिरकार दूसरी तरफ जाने वाले हैं, उन्हें अभी भेज देना चाहिए।” यह टिप्पणी पार्टी के उन नेताओं पर एक सीधा प्रहार मानी जा रही है, जो राजनीतिक लाभ के लिए पाला बदलने की संभावना रखते हैं।
समाजवादी पार्टी (सपा) के नेता फखरुल हसन चांद ने खड़गे की बात का समर्थन करते हुए कहा, “हर पार्टी उन कार्यकर्ताओं को निकालती है जो काम नहीं करते; इस बयान में कुछ भी नया नहीं है।” राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की नेता इज्या यादव ने भी इस विचार का समर्थन किया, “काम करने वालों को हर कोई पसंद करता है और जो काम नहीं करते, वे चले जाते हैं।” यह प्रतिक्रिया दर्शाती है कि इंडिया गठबंधन के भीतर भी ऐसे संगठनात्मक सुधारों को आवश्यक माना जाता है।
आंतरिक रिपोर्ट और भविष्य की रणनीति
खड़गे द्वारा उल्लेखित आंतरिक रिपोर्ट पिछले तीन महीनों में पार्टी इकाइयों द्वारा आयोजित कार्यक्रमों के डेटा पर आधारित है। यह रिपोर्ट अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) या गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी (जीपीसीसी) के निर्देशों के आधार पर तैयार की गई थी। यह पहला मौका नहीं है जब पार्टी ने इस तरह की कठोर रिपोर्ट का सहारा लिया है। खड़गे ने अध्यक्ष बनने के बाद से संगठनात्मक जवाबदेही पर लगातार जोर दिया है, और यह कदम उनकी इसी रणनीति का हिस्सा है।
संगठनात्मक पुनर्गठन के अलावा, खड़गे ने पार्टी के लिए अनुशासन, समर्पण और वैचारिक प्रतिबद्धता पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि देश के लोकतंत्र को बचाने के लिए “बदलते समय के साथ पुनः संगठित होना” आवश्यक है। यह बयान ऐसे समय में आया है जब कांग्रेस और उसके सहयोगी दल भाजपा पर देश के संस्थानों को कमजोर करने का आरोप लगा रहे हैं। खड़गे ने पार्टी कार्यकर्ताओं से आग्रह किया कि वे बूथ स्तर तक पार्टी को मजबूत करें, क्योंकि उनका मानना है कि यही एकमात्र तरीका है जिससे कांग्रेस अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन वापस पा सकती है।
राहुल गांधी ने भी कई मौकों पर इसी तरह की संगठनात्मक कमजोरी की बात की है। उन्होंने जिला कांग्रेस समितियों (डीसीसी) को मजबूत करने की आवश्यकता पर जोर दिया है, और कहा है कि पार्टी की सफलता के लिए जमीनी स्तर पर नेतृत्व का निर्माण करना महत्वपूर्ण है। खड़गे का ‘सड़े हुए आम’ वाला बयान इस बात का संकेत है कि पार्टी अब केवल शब्दों से परे जाकर ठोस कदम उठाने के लिए तैयार है। यह एक जोखिम भरा लेकिन आवश्यक कदम माना जा रहा है, क्योंकि यह पार्टी के भीतर असंतोष को भी बढ़ा सकता है, लेकिन यह लंबे समय में एक अधिक कुशल और प्रतिबद्ध संगठन का निर्माण कर सकता है।
कांग्रेस की यह नई रणनीति, जिसमें शीर्ष नेतृत्व अपनी जवाबदेही की मांग करता है, यह दर्शाती है कि पार्टी अब अपनी कमजोरियों को स्वीकार कर रही है और उन्हें दूर करने के लिए तैयार है। हालांकि, यह देखना बाकी है कि क्या यह दृष्टिकोण पार्टी को उन राज्यों में वापसी करने में मदद कर पाएगा, जहां वह दशकों से सत्ता से बाहर है, और जहां भाजपा का प्रभुत्व बढ़ता जा रहा है।