मराठी दैनिक सामना के संपादकीय ने भारत को चेतावनी दी है कि वह नेपाल के हालिया युवा-नेतृत्व वाले प्रदर्शनों से सबक ले। अख़बार ने लिखा कि बेरोजगारी, लोकतांत्रिक संस्थाओं पर घटता विश्वास और सामाजिक ध्रुवीकरण जैसे मुद्दे यदि समय रहते नहीं सुलझाए गए तो भारत भी अस्थिरता का सामना कर सकता है।
“नेपाल में आग भूख और बेरोजगारी की चिंगारी है। भारत को इससे सबक लेना चाहिए,” संपादकीय में कहा गया। इसमें भारत की स्थितियों की तुलना नेपाल से करते हुए बढ़ती बेरोजगारी, सब्सिडी पर निर्भरता और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं पर कम होते भरोसे को गंभीर खतरे बताया गया। पहचान आधारित राजनीति को अख़बार ने “देश के लिए खतरनाक” कहा।
संपादकीय ने नेपाल के विरोध को दक्षिण एशिया में फैली अस्थिरता से जोड़ा, जहाँ श्रीलंका, बांग्लादेश, पाकिस्तान और म्यांमार में भी भ्रष्टाचार और आर्थिक संकट ने बड़े पैमाने पर अशांति पैदा की। इसमें दावा किया गया कि भारत की विदेश नीति की कमजोरियों ने चीन जैसे देशों को क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत करने का अवसर दिया है।
नेपाल का धीरे-धीरे भारत से दूरी बनाना और चीन की ओर झुकना, संपादकीय के अनुसार, “कूटनीतिक झटका” है। शिक्षा सहित कई क्षेत्रों में चीनी प्रभाव को भारत के लिए चिंता का विषय बताया गया।
नेपाल में हालिया विरोध अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पाबंदियों से शुरू हुआ, लेकिन जल्द ही यह बेरोजगारी और भ्रष्टाचार को लेकर व्यापक जनाक्रोश में बदल गया। प्रदर्शनों में हिंसा हुई, कई लोगों की मौत हुई और राजनीतिक हलचल ने देश की स्थिरता को हिला दिया।
संपादकीय ने चेतावनी दी कि भारत भी ऐसी परिस्थितियों से अछूता नहीं है। बड़ी युवा आबादी, सीमित रोजगार अवसर और सामाजिक विभाजन भारत में भी गुस्से का कारण बन सकते है
दिल्ली की राजनीतिक विश्लेषक डॉ. मीनाक्षी गुप्ता का कहना है: “नेपाल में युवाओं की नाराज़गी बेरोजगारी और शासन की नाकामी से थी। भारत को भी इन कमियों को दूर करना होगा, वरना असंतोष भड़क सकता है।”
संपादकीय ने भारतीय नेताओं से आह्वान किया है कि वे लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करें, युवाओं के लिए रोजगार सृजन पर ध्यान दें और शासन को अधिक पारदर्शी बनाएं।
भारत भले ही पड़ोसियों की तुलना में स्थिर हो, लेकिन चुनौतियाँ स्पष्ट हैं। बेरोजगारी, महंगाई और असमानता की खाई बढ़ रही है। लोकतांत्रिक संस्थाओं पर भरोसा घट रहा है और पहचान आधारित राजनीति का असर बढ़ रहा है।
सामना का संदेश सीधा है: भारत को अपने पड़ोसियों की गलतियों से सीखना चाहिए और समय रहते कदम उठाना चाहिए। वरना असंतोष की चिंगारी यहाँ भी भड़क सकती है।
