
संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने हाल ही में सम्पन्न हुए उपराष्ट्रपति चुनाव में एनडीए प्रत्याशी सी.पी. राधाकृष्णन का समर्थन करने वाले कुछ इंडिय एलायंस सांसदों का “विशेष धन्यवाद” किया है। परिणाम घोषित होने के तुरंत बाद दिए गए इस बयान ने विपक्ष की एकता और क्रॉस-वोटिंग को लेकर नई बहस छेड़ दी है।
राधाकृष्णन ने 452 वोट हासिल कर आरामदायक जीत दर्ज की, जबकि इंडिय गठबंधन के उम्मीदवार, सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी को 300 वोट मिले। संसद के दोनों सदनों से लगभग पूरी उपस्थिति दर्ज होने के बावजूद यह अंतर दिखाता है कि सभी सांसदों ने गठबंधन की अपेक्षा के अनुरूप वोट नहीं किया।
परिणाम के बाद रिजिजू ने राधाकृष्णन को बधाई देते हुए उन्हें “विनम्र और सच्चे देशभक्त” बताया। उन्होंने कहा कि कुछ विपक्षी सांसदों का यह समर्थन उनकी “अंतरात्मा की आवाज” का प्रतीक है, जो लोकतंत्र की भावना को और मजबूत करता है।
यह परिणाम विशेष महत्व रखता है क्योंकि यह दशकों में पहली बार हुआ जब उपराष्ट्रपति का चुनाव समय से पहले कराया गया। इस वर्ष की शुरुआत में जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद चुनाव की आवश्यकता हुई थी।
राधाकृष्णन, जो लंबे समय से भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े रहे हैं, महाराष्ट्र और झारखंड के राज्यपाल रह चुके हैं। वह कोयम्बटूर से सांसद भी रहे और अपनी साफ-सुथरी छवि तथा सर्वमान्य व्यक्तित्व के लिए जाने जाते हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राधाकृष्णन की जीत तो एनडीए की संख्या-बल के कारण लगभग तय थी, लेकिन उनके पक्ष में हुए क्रॉस-वोटिंग से यह संकेत भी मिला कि उनकी स्वीकार्यता विपक्षी खेमे में भी है। कुछ सांसदों ने उन्हें अपेक्षाकृत गैर-विवादित और सम्मानित नेता मानते हुए वोट दिया।
एक राजनीतिक विश्लेषक ने कहा, “कुछ इंडिय गठबंधन सांसदों द्वारा एनडीए उम्मीदवार का समर्थन करना अंतरात्मा की दुर्लभ अभिव्यक्ति है। यह राधाकृष्णन की व्यक्तिगत विश्वसनीयता और विपक्ष की एकजुटता की चुनौतियों दोनों को उजागर करता है।”
उपराष्ट्रपति के रूप में राधाकृष्णन अब राज्यसभा के सभापति का पदभार संभालेंगे। वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में सदन की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाना उनके लिए बड़ी जिम्मेदारी होगी।
जहां एनडीए इसे अपनी राजनीतिक ताकत का प्रमाण मान रहा है, वहीं इंडिय गठबंधन को अब अपनी रणनीति और समन्वय की पुनर्समीक्षा करनी होगी। यह चुनाव भले ही समाप्त हो गया हो, लेकिन इसने भारतीय राजनीति में विपक्ष की एकता और संसदीय समीकरणों पर नई बहस को जन्म दिया है।