तीन दशक पुराना मामला फिर चर्चा में
पृष्ठभूमि
बेंगलुरु: कर्नाटक की राजनीति में एक बार फिर पुराना किस्सा सुर्खियों में आ गया है। साल 1991 के लोकसभा चुनाव में कोप्पल सीट से बेहद करीबी मुकाबले में हार झेलने के बाद उस समय जनता दल के चेहरे रहे सिद्धारमैया ने वोट धांधली का आरोप लगाया था।
22,243 वोटों पर विवाद
सिद्धारमैया ने चुनाव आयोग और अदालत में याचिका दाखिल कर कहा था कि उनके खिलाफ कांग्रेस उम्मीदवार की जीत सिर्फ इसलिए हुई क्योंकि 22,243 वोटों को अमान्य कर दिया गया। उनका दावा था कि ये वोट अगर गिने जाते तो नतीजा पूरी तरह बदल सकता था।
अदालत का फैसला
हालांकि हाईकोर्ट ने सिद्धारमैया की यह याचिका खारिज कर दी थी। अदालत ने साफ कहा कि वोटों की अमान्यता चुनाव प्रक्रिया का हिस्सा है और इसमें धांधली साबित नहीं होती। इसके साथ ही मामला वहीं दफन हो गया।
फिर क्यों उठा मामला?
अब तीन दशक बाद यह मामला फिर चर्चा में है। कांग्रेस के भीतर चल रही राजनीतिक खींचतान और विपक्ष के हमलों के बीच 1991 की यह ‘वोट धांधली’ दलील एक बार फिर उठाई जा रही है। विरोधी दल कांग्रेस पर सवाल उठा रहे हैं कि अगर उस दौर में भी ऐसे आरोप लगे थे तो पार्टी की विश्वसनीयता आज किस आधार पर कायम है।
निष्कर्ष
सिद्धारमैया का 1991 का ‘वोट फ्रॉड’ दावा भले ही अदालत में टिक न पाया हो, लेकिन इसका राजनीतिक असर अब भी दिखाई दे रहा है। यह मामला दिखाता है कि भारतीय राजनीति में पुराने चुनावी विवाद अक्सर नई सियासी जमीन तैयार कर देते हैं।