पृष्ठभूमि में छिपा बड़ा संकेत, संघ के भीतर भी बहस तेज़
विविध खानपान पर संघ की स्थिति
नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत के हालिया बयान ने राजनीतिक गलियारों में नई चर्चा छेड़ दी है। भागवत ने मांसाहार और हिंदू त्योहारों के संदर्भ में जो टिप्पणी की, उसने सियासत को गरमा दिया है।
दरअसल, संघ के कार्यकर्ता विभिन्न क्षेत्रों से आते हैं और उनमें से कई मांस का सेवन भी करते हैं। ऐसे में संघ ने कभी भी शाकाहार या मांसाहार को लेकर कठोर नीति नहीं अपनाई। यही वजह है कि भागवत के बयान को लेकर अब इसे ‘संघ के भीतर लचीलापन’ और ‘स्थानीय परंपराओं के प्रति स्वीकार्यता’ का संकेत माना जा रहा है।
संघ के विस्तार में खानपान की भूमिका
संघ जिन इलाकों में अपना विस्तार कर रहा है, वहां खानपान की परंपराएं भी अलग-अलग हैं। दक्षिण और पूर्वोत्तर भारत जैसे राज्यों में मांसाहार आम जीवन का हिस्सा है। संघ के जानकार मानते हैं कि यदि संगठन को व्यापक स्वीकृति पानी है, तो उसे स्थानीय परंपराओं और खानपान की आदतों का सम्मान करना ही होगा।
राजनीतिक निहितार्थ
विश्लेषकों का मानना है कि मोहन भागवत का यह बयान महज़ खानपान की आदतों पर टिप्पणी नहीं, बल्कि एक बड़ा राजनीतिक संदेश भी है। यह संकेत है कि संघ बदलते समय और समाज के विविध स्वरूप को ध्यान में रखते हुए अपनी कार्यशैली में लचीलापन ला रहा है।
निष्कर्ष
आरएसएस प्रमुख का यह बयान जहां एक ओर सामाजिक विविधता को स्वीकारने का संकेत देता है, वहीं दूसरी ओर संघ की छवि को बदलते भारत के साथ कदम मिलाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में बीजेपी और संघ इस संदेश को किस तरह आगे बढ़ाते हैं।