दिल्ली और बंगाल में दर्ज मामलों का दबदबा, अधिकांश मामले PMLA के तहत, जहां जमानत मिलना बेहद मुश्किल
घटना की पृष्ठभूमि
विपक्षी दलों की चिंता इस बात को लेकर बढ़ गई है कि 2014 के बाद से अब तक उनके 12 मंत्री और वरिष्ठ नेता जेल की हवा खा चुके हैं। इनमें से ज्यादातर को 30 दिनों से ज्यादा समय तक हिरासत में रहना पड़ा। सबसे अधिक मामले दिल्ली और पश्चिम बंगाल से जुड़े हैं।
विपक्ष की नाराज़गी
विपक्षी दलों का आरोप है कि केंद्र सरकार नए विधेयकों के ज़रिए उनकी आवाज़ दबाना चाहती है। उनका कहना है कि PMLA (मनी लॉन्ड्रिंग कानून) के तहत दर्ज अधिकतर मामलों में ज़मानत की शर्तें इतनी कड़ी हैं कि महीनों तक जेल से बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है।
राजनीतिक उबाल
संसद से लेकर राज्यों की विधानसभाओं तक इस मुद्दे पर गर्माहट दिख रही है। कांग्रेस, तृणमूल और अन्य विपक्षी दल लगातार कह रहे हैं कि यह सब राजनीतिक प्रतिशोध के तहत किया जा रहा है। वहीं भाजपा का कहना है कि क़ानून सभी के लिए बराबर है और अगर किसी ने गड़बड़ी की है तो जांच एजेंसियों को कार्रवाई करने का अधिकार है।
प्रशासनिक पहलू
जांच एजेंसियों का तर्क है कि जिन मामलों में कार्रवाई हुई है, वे ठोस सबूतों पर आधारित हैं। एजेंसियों का कहना है कि PMLA जैसे क़ानून में सख्ती इसलिए है ताकि बड़े पैमाने पर होने वाले आर्थिक अपराधों पर अंकुश लगाया जा सके।
निष्कर्ष
नए विधेयकों को लेकर उठे सवाल अब राजनीतिक बहस का बड़ा मुद्दा बन चुके हैं। विपक्ष का आरोप है कि ये कानून लोकतांत्रिक ढांचे को कमजोर करेंगे, जबकि सरकार का दावा है कि भ्रष्टाचार रोकने और आर्थिक अपराधों पर नकेल कसने के लिए ये ज़रूरी हैं। आने वाले दिनों में यह टकराव और तेज़ होने की संभावना है।