दिल्ली दौरों से क्या हासिल? – बार-बार की मुलाकातों का असर पर सवाल
नई दिल्ली, 19 अगस्त: महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और शिवसेना (शिंदे गुट) प्रमुख एकनाथ शिंदे इन दिनों लगातार दिल्ली का दौरा कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के साथ उनकी तस्वीरें चर्चा में रहती हैं। माना जा रहा है कि शिंदे अपने दिल्ली दौरों के जरिए राजनीतिक दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन हाल के घटनाक्रमों से संकेत मिल रहे हैं कि उनकी यह रणनीति उतनी असरदार साबित नहीं हो रही है।
घटनाक्रम की पृष्ठभूमि
बीते कुछ महीनों में शिंदे ने कई बार दिल्ली का दौरा किया। हर बार उनकी मुलाकातें भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से होती रहीं। तस्वीरों और मीडिया कवरेज ने संदेश दिया कि दिल्ली में उनकी पकड़ मजबूत है। लेकिन राज्य की राजनीति में कुछ हालिया झटकों ने उनके बढ़ते कद पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
महाराष्ट्र की सियासत में हलचल
महाराष्ट्र विधानसभा और संगठनात्मक स्तर पर शिंदे गुट लगातार चुनौतियों का सामना कर रहा है। उद्धव ठाकरे खेमे की सक्रियता और कांग्रेस-एनसीपी के तालमेल ने शिंदे की रणनीति को कमजोर किया है। वहीं भाजपा का रुख भी अब पहले जैसा समर्थनकारी नहीं दिख रहा। सूत्रों के मुताबिक, भाजपा नेतृत्व आगामी चुनावों में अपने संगठनात्मक ढांचे और चेहरे को प्राथमिकता देना चाहता है।
भाजपा का रुख और संदेश
राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा तेज है कि भाजपा शिंदे गुट पर पूरी तरह निर्भर नहीं रहना चाहती। शिंदे को हाल ही में कुछ अहम फैसलों से दूर रखा गया, जिसे राजनीतिक संकेत माना जा रहा है। दिल्ली यात्राओं के बावजूद, उन्हें वह राजनीतिक बढ़त हासिल नहीं हो पाई जिसकी वे उम्मीद कर रहे थे।
निष्कर्ष
एकनाथ शिंदे की लगातार दिल्ली यात्राएँ इस बात का संकेत हैं कि वे खुद को भाजपा नेतृत्व के करीबी दिखाना चाहते हैं। लेकिन मौजूदा हालात बताते हैं कि यह रणनीति उम्मीद के मुताबिक सफल नहीं हो रही। राज्य की राजनीति में बढ़ती चुनौतियाँ और भाजपा की बदलती प्राथमिकताएँ शिंदे के लिए आगे का रास्ता कठिन बना सकती हैं।