अमेरिका और भारत के बीच आर्थिक तनातनी एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार निशाने पर है गुजरात के जामनगर की दो बड़ी रिफाइनरियां—एक मुकेश अंबानी के स्वामित्व वाली रिलायंस इंडस्ट्रीज़ और दूसरी, नायरा एनर्जी, जिसमें रूस की सरकारी तेल कंपनी रोसनेफ्ट की 49% हिस्सेदारी है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में रूसी तेल पर भारी टैरिफ लगाने का ऐलान किया है। इसका सीधा असर भारत में स्थित इन रिफाइनरियों पर पड़ सकता है, जो रूसी कच्चा तेल आयात करके प्रोसेस करती हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला न केवल भारत-रूस व्यापारिक रिश्तों को प्रभावित करेगा, बल्कि भारत-अमेरिका के कूटनीतिक समीकरण में भी हलचल पैदा कर सकता है।
जामनगर फिर चर्चा में
जामनगर, जो अरब सागर के किनारे स्थित है, दुनिया की सबसे बड़ी रिफाइनिंग हब में से एक है। आमतौर पर अंतरराष्ट्रीय मीडिया में इसकी चर्चा आर्थिक गतिविधियों के लिए होती है, लेकिन पिछली बार यह अमेरिकी सोशल मीडिया पर चर्चा में तब आया था, जब पॉप सिंगर रिहाना ने किसानों के आंदोलन को लेकर ट्वीट किया था।
अब एक बार फिर जामनगर वैश्विक सुर्खियों में है—इस बार वजह है तेल व्यापार पर बढ़ता अमेरिकी दबाव।
भू-राजनीति और आर्थिक असर
अमेरिका की नई टैरिफ पॉलिसी का उद्देश्य रूस के ऊर्जा निर्यात को कमजोर करना है, ताकि यूक्रेन युद्ध में उसकी वित्तीय क्षमता सीमित की जा सके। लेकिन भारत, जो दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता है, रूस से मिलने वाले सस्ते कच्चे तेल को छोड़ने के पक्ष में नहीं है।
यही वजह है कि अमेरिकी प्रशासन अब जामनगर की रिफाइनरियों को बारीकी से देख रहा है—क्योंकि ये रूस से कच्चा तेल मंगाकर, उसे रिफाइन कर, वैश्विक बाजार में बेच रही हैं।
आगे क्या?
भारतीय सरकार फिलहाल इस मसले पर सतर्क रुख अपनाए हुए है। विदेश मंत्रालय ने साफ कहा है कि भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा के लिए हर संभव कदम उठाएगा।
वहीं, आर्थिक विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर अमेरिका ने आयातित उत्पादों पर कोई अतिरिक्त प्रतिबंध लगाए, तो इसका असर भारत के तेल निर्यात, विदेशी निवेश और रोजगार पर भी पड़ सकता है।