हरियाणा की राजनीति में एक बार फिर भूचाल आ गया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और छह बार के विधायक संपत सिंह ने पार्टी से इस्तीफा देकर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने जानबूझकर पार्टी प्रत्याशियों की हार सुनिश्चित करने के लिए अंदरूनी साजिश रची और अपने करीबी लोगों को स्वतंत्र उम्मीदवारों के रूप में मैदान में उतारा।
पूर्व मंत्री संपत सिंह ने कहा कि कांग्रेस अब अपनी मूल विचारधारा से भटक चुकी है और पार्टी का संचालन कुछ लोगों के हितों तक सीमित हो गया है। उनके अनुसार, “पार्टी में निष्ठा और मेहनत का अब कोई मूल्य नहीं बचा है, निर्णय केवल व्यक्तिगत लाभ और गुटबाजी के आधार पर लिए जाते हैं।”
हरियाणा में लंबे समय से कांग्रेस गुटबाजी की समस्या से जूझ रही है। संपत सिंह, जो छह बार विधायक रह चुके हैं, का कहना है कि पिछले विधानसभा चुनावों में भी कई ऐसे हालात बने जब कांग्रेस के ही कार्यकर्ताओं ने निर्दलीय प्रत्याशियों को समर्थन देकर आधिकारिक उम्मीदवारों को कमजोर किया। उन्होंने आरोप लगाया कि इस तरह की रणनीति राज्य नेतृत्व के कुछ करीबी लोगों द्वारा अपनाई गई थी, ताकि संगठन में असहमति रखने वाले नेताओं को कमजोर किया जा सके।
संपत सिंह का कहना है कि उन्होंने इस मुद्दे को कई बार पार्टी नेतृत्व के समक्ष उठाया, लेकिन उनकी बातों को अनदेखा कर दिया गया। “पार्टी के भीतर संवाद की कमी और पारदर्शिता की अनुपस्थिति ने एक ऐसी स्थिति पैदा कर दी है जहाँ निष्ठावान कार्यकर्ता खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं,” उन्होंने कहा।
कांग्रेस पार्टी ने इन आरोपों को पूरी तरह से खारिज किया है। पार्टी प्रवक्ता ने कहा कि “संपत सिंह का इस्तीफा व्यक्तिगत निर्णय है और उनके आरोपों में कोई सच्चाई नहीं है।” प्रवक्ता के अनुसार, पार्टी हर चुनाव में संगठनात्मक एकजुटता के साथ काम करती है, और कोई भी मतभेद लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा है।
हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि संपत सिंह जैसे वरिष्ठ नेता का पार्टी छोड़ना कांग्रेस के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है, खासकर तब जब हरियाणा में आगामी चुनावों की तैयारी शुरू हो चुकी है।
संपत सिंह के इस्तीफे से कांग्रेस की छवि पर असर पड़ना तय माना जा रहा है। हरियाणा में पहले से ही कांग्रेस गुटों में बंटी हुई है — एक पक्ष पूर्व मुख्यमंत्री समर्थक खेमे के साथ, तो दूसरा संगठन के वर्तमान नेतृत्व के समर्थन में है। इस इस्तीफे से यह संदेश गया है कि पार्टी के भीतर असंतोष गहराता जा रहा है।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार, यह इस्तीफा केवल एक व्यक्ति की नाराज़गी नहीं बल्कि पार्टी संगठन के भीतर मौजूद खामियों का प्रतिबिंब है। कई कार्यकर्ताओं का कहना है कि टिकट वितरण, उम्मीदवार चयन और प्रचार रणनीतियों में पारदर्शिता की कमी ने基层 स्तर पर भरोसे को कमजोर किया है।
संपत सिंह ने स्पष्ट किया है कि वह जनता की सेवा जारी रखेंगे और हरियाणा की राजनीतिक व्यवस्था में सकारात्मक परिवर्तन लाने की दिशा में काम करेंगे। उन्होंने कहा कि “मेरा लक्ष्य हमेशा जनता के मुद्दों को प्राथमिकता देना रहा है। अगर पार्टी अपने सिद्धांतों से भटक जाए, तो कार्यकर्ताओं का मौन रहना गलत होगा।”
दूसरी ओर, कांग्रेस के लिए अब चुनौती यह होगी कि वह कैसे पार्टी के भीतर संवाद बहाल करे और संगठन को एकजुट रखे। आगामी चुनावों से पहले पार्टी को अपने असंतुष्ट नेताओं को साधने और जमीनी स्तर पर मजबूत करने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।
राजनीति में इस तरह के आरोप और इस्तीफे नई बात नहीं हैं, लेकिन हरियाणा जैसे राज्य में, जहाँ सत्ता का संतुलन अक्सर बहुत नाज़ुक होता है, ऐसे घटनाक्रम चुनावी समीकरणों को काफी हद तक प्रभावित कर सकते हैं।
