बिहार में छठ पूजा की आस्था भरी छवियाँ अब धीरे-धीरे राजनीतिक रंग लेने लगी हैं। जैसे ही चार दिवसीय पर्व संपन्न हुआ, वैसे ही राज्यभर में विधानसभा चुनाव 2025 की गहमागहमी ने गति पकड़ ली है। सियासी दलों के मंचों, नारों और रैलियों ने घाटों की जगह ले ली है।
राज्य में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) और विपक्षी इंडिया ब्लॉक (INDIA Bloc) अब आमने-सामने हैं। दोनों गठबंधन मतदाताओं तक पहुँचने के लिए गांव-गांव, मोहल्लों और कस्बों में प्रचार तेज कर चुके हैं।
छठ पूजा के दौरान बिहार में हर वर्ग और समुदाय एकजुट होकर त्योहार मनाता है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह एक ऐसा समय होता है जब जनसंपर्क का अवसर स्वाभाविक रूप से बढ़ जाता है। यही वजह है कि छठ पूजा के बाद सभी दल अपने-अपने अभियान को नई ऊर्जा के साथ शुरू करते हैं।
इस बार भी कुछ अलग नहीं है। मुख्यमंत्री से लेकर केंद्रीय मंत्री और विपक्षी नेताओं तक, हर कोई चुनावी सभाओं में भाग ले रहा है। शहरों से लेकर ग्रामीण इलाकों तक प्रचार का शोर सुनाई दे रहा है।
एनडीए की ओर से केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं – जैसे रोजगार, बुनियादी ढांचा, और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं – को मुख्य प्रचार बिंदु बनाया गया है। वहीं, इंडिया ब्लॉक बेरोजगारी, महंगाई और शिक्षा के मुद्दों को लेकर सरकार पर हमला बोल रहा है।
इस बार का चुनाव खास इसलिए भी है क्योंकि मतदाताओं में युवा वर्ग की हिस्सेदारी पहले से अधिक है। छठ पूजा के दौरान गांवों में लौटे प्रवासी मजदूर अब वोट डालने के मूड में दिख रहे हैं। स्थानीय मुद्दे – जैसे सड़कों की स्थिति, बिजली, स्वास्थ्य सेवाएँ और शिक्षा – फिर से चर्चा के केंद्र में हैं।
पटना, गया, मुजफ्फरपुर और दरभंगा जैसे जिलों में रैलियों का सिलसिला लगातार जारी है। राजनीतिक दल इस बात पर जोर दे रहे हैं कि “विकास की गाड़ी किस दिशा में जाएगी।”
भाजपा और जदयू मिलकर अपनी परंपरागत सामाजिक समीकरणों को मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का अनुभव और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता को मिलाकर एनडीए अपने अभियान को तेज करने की रणनीति पर काम कर रहा है।
दूसरी ओर, इंडिया ब्लॉक में राजद, कांग्रेस और वाम दलों की साझा ताकत इस बार समन्वयित दिखाई दे रही है। तेजस्वी यादव और कांग्रेस नेताओं ने संयुक्त रैलियों का ऐलान किया है। वे रोजगार, युवाओं की पलायन समस्या और किसानों की आय को मुख्य मुद्दा बना रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषक डॉ. अजय सिन्हा कहते हैं, “छठ पूजा के बाद का समय बिहार की राजनीति के लिए निर्णायक साबित होता है। यह केवल आस्था का नहीं, बल्कि जनसंपर्क और विश्वास का दौर भी होता है। जो दल इस भावना को समझेगा, वही जनमत को अपने पक्ष में मोड़ पाएगा।”
इस बार दोनों गठबंधन महिला मतदाताओं को लेकर भी सक्रिय हैं। एनडीए महिला सुरक्षा और स्वयं सहायता समूहों की योजनाओं का प्रचार कर रहा है, जबकि इंडिया ब्लॉक महिला शिक्षा और समान अवसरों को लेकर नीतियाँ पेश कर रहा है।
युवा मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए सोशल मीडिया अभियान भी तेज कर दिए गए हैं। फेसबुक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर दोनों पक्षों की डिजिटल टीमें सक्रिय हैं।
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि छठ पूजा जैसे त्योहार बिहार में केवल धार्मिक आयोजन नहीं हैं, बल्कि ये सामूहिक चेतना के प्रतीक हैं। ऐसे में, जो भी दल इस सामाजिक ऊर्जा को सही दिशा में बदलने में सफल रहेगा, वही चुनावी सफलता के करीब पहुंचेगा।
आने वाले हफ्तों में जब प्रचार अपने चरम पर पहुँचेगा, तब यह स्पष्ट होगा कि छठ पूजा की आस्था से निकली राजनीतिक ऊर्जा किसके पक्ष में जाती है – एनडीए के अनुभव के साथ या इंडिया ब्लॉक के बदलाव के वादे के साथ।
