पटना — Rabri Devi के 20 वर्षों से आवास रहे 10, सर्कुलर रोड बंगले को खाली कराने को लेकर जारी सरकारी आदेश को Bihar Government के खिलाफ Rashtriya Janata Dal (RJD) ने खारिज कर दिया है। RJD के बिहार अध्यक्ष Mangani Lal Mandal ने साफ कहा है कि “बंगला किसी भी हालत में खाली नहीं होगा”।
सरकारी भवन निर्माण विभाग द्वारा जारी नोटिस में राबड़ी देवी को 10, सर्कुलर रोड बंगला छोड़कर 39, हैरडिंग रोड पर नया सरकारी आवास स्वीकार करने का निर्देश दिया गया था। नई सरकार के गठन के बाद यह पुनः–आवंटन किया गया है।
लेकिन RJD इसे प्रशासनिक कदम नहीं, बल्कि राजनीतिक दुश्मनी का हिस्सा मान रही है। मंडल ने आरोप लगाया कि यह “राजनीतिक रूप से प्रेरित” निर्णय है, और सवाल उठाया कि अगर बंगला अवैध कब्जा था, तो 20 साल में यह कदम क्यों नहीं उठाया गया। उन्होंने कहा, “जो करना है, वह कर लेना — हम बंगला नहीं छोड़ेंगे।”
10, सर्कुलर रोड पटना में वह सरकारी बंगला है जिसे कई वर्षों से लालू प्रसाद यादव — राबड़ी देवी परिवार का राजनीतिक-परिवारिक आधार माना जाता रहा है। सालों से यह जगह न सिर्फ उनकी निजी आवास रही है, बल्कि राजनीतिक गतिविधियों का केन्द्र भी रही है।
नवीन आदेश के अनुसार राबड़ी देवी, जो अब विधान परिषद में विपक्ष की नेता हैं, उन्हें 39, हैरडिंग रोड पर नया आवास मिला है — जिसे विधिक रूप से उनका अधिकार प्राप्त सरकारी बंगला बताया गया है।
पूर्व में, 2019 की एक उच्च न्यायालय की तत्कालीन फैसला में, सभी पूर्व मुख्यमंत्री एवं उनके परिवार को बड़े स्तर पर सरकारी सुविधाओं (बंगला-वाहन-सुरक्षा आदि) से वंचित करने की दिशा में संशोधन हुआ था। उसी फैसले के क्रम में अब यह पुनः–आवंटन आगे बढ़ाया गया है।
सरकार के समर्थकों का कहना है कि यह कार्रवाई सिर्फ सरकारी प्रोटोकॉल और नियमों का पालन है — पद और अधिकार के अनुरूप बंगले का पुनर्रूपांतरण। नए आवंटन को इस आधार पर बताया गया है कि राबड़ी देवी की वर्तमान स्थिति के मुताबिक 39, हैरडिंग रोड बंगला उचित है।
उनके अनुसार, सरकारी आवास व्यक्तिगत नहीं, बल्कि पद के साथ जुड़ा अधिकार होता है। इस दृष्टिकोण से, 20 साल तक एक बंगले में रहना, अपने आप उस पर स्थायी अधिकार नहीं बनाता।
RJD का कहना है कि यह कदम केवल एक पारिवारिक बंगले को खाली करवाने तक सीमित नहीं — बल्कि पूर्व मुख्यमंत्री और उनके परिवार को अपमानित करने की मंशा है। पार्टी नेताओं और समर्थकों ने इसे सत्ता-संक्रमण के दौरान शक्ति प्रदर्शन और मनमानी के रूप में देखा है।
उनका तर्क है कि अगर यह बंगला अवैध या अनुचित था, तो सरकार पहले कभी कार्रवाई क्यों नहीं करती — 20 सालों में कई अवसर थे। इस प्रतीकात्मक बंगले को खाली कराने की मांग, RJD नेताओं के अनुसार, राजनीतिक दुश्मनी की अभिव्यक्ति है।
अब सवाल है कि RJD अदालत जाने का रास्ता अपनाएगी या सार्वजनिक प्रदर्शन व राजनीतिक मंचों पर दबाव बनाएगी। ऐसे मामलों में अक्सर लंबी कानूनी लड़ाई और मीडिया-सियासी हलचल देखी जाती है।
अगर यह विवाद गहराया, तो आने वाले दिनों में इसे विधानसभा सत्रों, मीडिया बहसों और चुनावी रणनीतियों से जोड़ा जा सकता है। लेकिन यह भी संभव है कि सरकार पुनःआवंटन को लागू कर दे और मामला समाप्त हो जाए — खासकर यदि कोई अदालती आदेश न आए।
वर्तमान संग्राम यह दिखाता है कि सरकारी आवास केवल पत्थर-ईंट का घर नहीं — बल्कि राजनीतिक पहचान, सम्मान और सत्ता-संबंधित प्रतीक है। और जब इसे लेकर विवाद हो, तो माइने सिर्फ भूखंड का नहीं — सत्ता, इतिहास और पहचान का होता है।
