18 views 3 secs 0 comments

सुप्रीम कोर्ट ने कंगना की मानहानि याचिका खारिज की

In National
September 13, 2025
RajneetiGuru.com - सुप्रीम कोर्ट ने कंगना की मानहानि याचिका खारिज की - Ref by The Statesman

अभिनेत्री और संसद सदस्य कंगना रनौत को शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा, क्योंकि अदालत ने 2021 के किसान आंदोलन के दौरान एक महिला प्रदर्शनकारी के बारे में उनके विवादित ट्वीट को लेकर मानहानि मामले को रद्द करने से इनकार कर दिया। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने रनौत की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, “आपने मसाला जोड़ा है। यह सिर्फ एक साधारण रीट्वीट नहीं था।” इस टिप्पणी के बाद, रनौत के वकील ने अपनी याचिका वापस ले ली। इस फैसले से संकेत मिलता है कि अदालतें सोशल मीडिया पर की गई टिप्पणियों को गंभीरता से लेती हैं, खासकर जब वे सार्वजनिक शख्सियतों द्वारा की जाती हैं।

यह मामला तब शुरू हुआ जब कंगना रनौत ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट किया, जिसमें उन्होंने दावा किया कि किसान आंदोलन में शामिल एक बुजुर्ग महिला, महिंदर कौर, को पैसे लेकर विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के लिए लाया गया था। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा था, “हा हा हा, यह वही दादी हैं जिन्हें टाइम मैगजीन ने सबसे शक्तिशाली भारतीय बताया था… और यह 100 रुपये में उपलब्ध हैं। पाकिस्तानी पत्रकारों ने शर्मनाक तरीके से भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय पीआर को हाईजैक कर लिया है। हमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने लोगों को बोलने की जरूरत है।” बाद में रनौत ने स्पष्ट किया कि उनका ट्वीट शाहीन बाग की बिल्किस बानो के बारे में था, न कि महिंदर कौर के बारे में, लेकिन इस स्पष्टीकरण को अदालतों ने खारिज कर दिया।

मानहानि कानून और ‘क्वेशिंग पिटीशन’ का संदर्भ

भारतीय कानून में मानहानि को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 499 और 500 के तहत परिभाषित किया गया है। धारा 499 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति शब्दों, संकेतों या दृश्य प्रतिनिधित्व के माध्यम से किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाने के इरादे से कोई आरोप लगाता या प्रकाशित करता है, तो उसे मानहानि माना जाता है। धारा 500 मानहानि के लिए दंड का प्रावधान करती है, जिसमें दो साल तक की साधारण कैद, जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।

एक ‘क्वेशिंग पिटीशन’ (याचिका रद्द करना) एक कानूनी प्रक्रिया है जिसके तहत एक आरोपी व्यक्ति आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के लिए उच्च न्यायालय या सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकता है। यह आमतौर पर तब किया जाता है जब शिकायत दुर्भावनापूर्ण, आधारहीन या कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने वाली लगती है। इस मामले में, कंगना रनौत ने तर्क दिया कि उनके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही कानूनी रूप से अस्थिर थी, क्योंकि उनका ट्वीट मानहानि का मामला नहीं बनाता था। हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने उनके तर्क को खारिज कर दिया, यह देखते हुए कि उनके ट्वीट का “मसालेदार” स्वभाव एक साधारण रीट्वीट से परे था और यह एक ट्रायल कोर्ट में ही तय किया जा सकता है।

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने भी अगस्त 2025 में रनौत की याचिका को खारिज कर दिया था। अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि मजिस्ट्रेट ने मामले पर विचार किया था और प्रथम दृष्टया मानहानि का मामला बनता है।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम मानहानि

यह मामला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार (संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a)) और दूसरों की प्रतिष्ठा की सुरक्षा के बीच के नाजुक संतुलन को दर्शाता है। भारतीय कानून में, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता निरपेक्ष नहीं है और अनुच्छेद 19(2) के तहत मानहानि सहित कई आधारों पर “उचित प्रतिबंध” लगाए जा सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में यह स्पष्ट कर दिया कि सोशल मीडिया पर सार्वजनिक हस्तियों द्वारा की गई टिप्पणियां, भले ही वे रीट्वीट के रूप में हों, उनके अपने शब्दों के प्रभाव से मुक्त नहीं हैं।

कानूनी विशेषज्ञ अमिताभ चतुर्वेदी ने इस फैसले पर टिप्पणी करते हुए कहा, “यह फैसला सोशल मीडिया के युग में मानहानि कानून की प्रासंगिकता को रेखांकित करता है। अदालत ने स्पष्ट कर दिया है कि एक सार्वजनिक शख्सियत के रूप में, आपके शब्दों का गहरा प्रभाव होता है, और केवल ‘स्पष्टीकरण’ देना मानहानि के आरोपों से बचने के लिए पर्याप्त नहीं है। यह उन लोगों के लिए एक चेतावनी है जो सोशल मीडिया पर निराधार आरोप लगाते हैं।”

यह फैसला इस बात पर भी प्रकाश डालता है कि अदालतों ने सार्वजनिक शख्सियतों पर अधिक जिम्मेदारी डाली है कि वे सोशल मीडिया पर अपनी टिप्पणियों में सतर्क रहें। पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि एक बड़ी सोशल मीडिया फॉलोइंग वाली सार्वजनिक शख्सियत होने के नाते, कंगना रनौत पर अपने बयानों की सत्यता को सत्यापित करने की “अतिरिक्त जिम्मेदारी” थी। सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस दृष्टिकोण को पुष्ट करता है, जिससे यह मामला भारतीय कानूनी इतिहास में एक महत्वपूर्ण मिसाल बन गया है।

कानूनी विशेषज्ञों का मानना ​​है कि यह फैसला सोशल मीडिया पर मानहानि के मामलों के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम करेगा, और यह सुनिश्चित करेगा कि सार्वजनिक हस्तियां अपने बयानों के लिए अधिक जवाबदेह हों।

Author

  • Anup Shukla

    निष्पक्ष विश्लेषण, समय पर अपडेट्स और समाधान-मुखी दृष्टिकोण के साथ राजनीति व समाज से जुड़े मुद्दों पर सारगर्भित और प्रेरणादायी विचार प्रस्तुत करता हूँ।

/ Published posts: 71

निष्पक्ष विश्लेषण, समय पर अपडेट्स और समाधान-मुखी दृष्टिकोण के साथ राजनीति व समाज से जुड़े मुद्दों पर सारगर्भित और प्रेरणादायी विचार प्रस्तुत करता हूँ।