असम में मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा और एक समय भाजपा सरकार के समर्थक माने जाने वाले संगठन वीर लचित सेना (VLS) के बीच टकराव खुलकर सामने आ गया है। मुख्यमंत्री ने इस संगठन पर “जबरी वसूली” (extortion) के आरोप लगाते हुए इसके खिलाफ सख्त कार्रवाई और प्रतिबंध की चेतावनी दी है।
यह घटनाक्रम ऐसे समय सामने आया है जब राज्य में स्थानीय बनाम बाहरी मुद्दा एक बार फिर राजनीतिक विमर्श के केंद्र में आ गया है। वीर लचित सेना, जो खुद को “मूल असमियों के अधिकारों की रक्षा” करने वाला संगठन बताती है, अब सरकार के निशाने पर है।
वीर लचित सेना की स्थापना लगभग एक दशक पहले असम के युवाओं द्वारा की गई थी। इस संगठन का नाम असम के ऐतिहासिक नायक लचित बोरफुकन के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने 1671 में मुगलों के खिलाफ सरायघाट की लड़ाई में निर्णायक जीत हासिल की थी।
संगठन का दावा है कि उसका मुख्य उद्देश्य “असम के मूल निवासियों की भूमि, भाषा और संस्कृति की रक्षा” है। वर्षों से यह संगठन बाहरी लोगों, खासकर बांग्लादेश मूल के प्रवासियों के खिलाफ अभियान चलाता रहा है।
अब तक, वीर लचित सेना को भाजपा सरकार के “असमिया हित” वाले एजेंडे के साथ चलता हुआ माना जाता रहा है। मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा खुद कई बार “असम की पहचान” और “मूल निवासियों की सुरक्षा” की बात कर चुके हैं।
मुख्यमंत्री सरमा ने हाल ही में कहा कि, “वीर लचित सेना के कुछ लोग असम के विभिन्न जिलों में ठेकेदारों और कारोबारियों से जबरन वसूली कर रहे हैं। राज्य सरकार इस तरह की गैरकानूनी गतिविधियों को बर्दाश्त नहीं करेगी। अगर यह संगठन कानून तोड़ेगा, तो हम इसे प्रतिबंधित करेंगे।”
मुख्यमंत्री की यह चेतावनी तब आई जब प्रशासन को शिकायतें मिलीं कि संगठन के कुछ सदस्यों ने सार्वजनिक परियोजनाओं से जुड़ी कंपनियों से धन की मांग की है।
वीर लचित सेना ने इन आरोपों को नकारते हुए कहा है कि वह “शांतिपूर्ण जन आंदोलन” चला रही है और उसका कोई भी सदस्य गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल नहीं है। संगठन के प्रमुख शंकरनाथ नायक ने कहा, “हम असम के हित में काम कर रहे हैं। अगर सरकार हमें रोकने की कोशिश करेगी, तो यह असमिया जनभावना के खिलाफ होगा।”
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा सरकार और वीर लचित सेना के बीच यह टकराव “स्थानीय असंतोष” को दर्शाता है। असम में भाजपा ने वर्षों तक “असमिया पहचान” के मुद्दे पर समर्थन हासिल किया, लेकिन अब वही समर्थक समूह सरकार से नाराज दिख रहा है।
विशेषज्ञों के अनुसार, संगठन के कुछ कार्यकर्ता स्थानीय रोजगार, भूमि अधिकार और प्रवासी नीति को लेकर सरकार से असंतुष्ट हैं। वहीं, मुख्यमंत्री सरमा के सख्त रुख से यह भी संकेत मिलता है कि सरकार “कानून-व्यवस्था” के नाम पर अपने राजनीतिक सहयोगियों को भी बख्शने के मूड में नहीं है।
राजनीतिक विश्लेषक डॉ. बिनोद बरुआ का कहना है, “सरकार यह दिखाना चाहती है कि वह किसी भी संगठन को कानून से ऊपर नहीं मानती, चाहे वह पहले सहयोगी ही क्यों न रहा हो। यह संदेश 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले बेहद अहम है।
असम में आगामी महीनों में जनगणना और भूमि अधिकारों से जुड़ी नीतियों पर चर्चा तेज़ होगी। ऐसे में वीर लचित सेना जैसे संगठनों की भूमिका फिर से उभर सकती है। अगर संगठन प्रतिबंधित होता है, तो असम की क्षेत्रीय राजनीति पर इसका व्यापक असर पड़ेगा।
सरकार का दावा है कि वह केवल “कानून और व्यवस्था बनाए रखने” के लिए कदम उठा रही है, जबकि विपक्ष इसे “जनआंदोलनों पर अंकुश” के रूप में देख रहा है।
राजनीति में जहां “असमिया अस्मिता” हमेशा एक बड़ा मुद्दा रही है, वहीं यह विवाद आने वाले चुनावों में भी गूंज सकता है।
वीर लचित सेना पर सरकार की सख्ती असम में बदलते राजनीतिक समीकरणों का संकेत है। कभी सरकार के साथ खड़ा रहने वाला संगठन अब प्रशासन के खिलाफ मोर्चा खोल रहा है। मुख्यमंत्री सरमा का यह कदम न केवल कानून-व्यवस्था के लिहाज से अहम है, बल्कि यह राजनीतिक संदेश भी देता है — कि सरकार किसी भी संगठन को राज्य की स्थिरता से ऊपर नहीं मानती।
