राज्यसभा सांसद और माकपा नेता जॉन ब्रिटास ने संसद में विपक्ष की भूमिका को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की है। उनका कहना है कि हाल के वर्षों में संसद के भीतर विपक्ष की भागीदारी और विमर्श का दायरा “अकल्पनीय रूप से सिमट गया है।” उनकी यह टिप्पणी मौजूदा शीतकालीन सत्र पर उठ रहे सवालों के बीच आई है, जिसे असामान्य रूप से छोटा और सरकारी विधायी कार्य से अत्यधिक भरा हुआ बताया जा रहा है।
पत्रकारों से बातचीत में ब्रिटास ने कहा कि संसद का मौजूदा ढांचा लोकतांत्रिक संवाद के लिए चुनौती खड़ा कर रहा है। उन्होंने स्पष्ट कहा, “विपक्ष के बिना संसद का कोई अर्थ नहीं।” उनके अनुसार असहमति, बहस और जवाबदेही की जो बुनियादी जगह होनी चाहिए, वह अब “लगभग गायब हो चुकी है।”
इस वर्ष का शीतकालीन सत्र भी अत्यधिक सीमित अवधि का रहा है, जिसकी कई वर्गों से आलोचना हुई है। ब्रिटास ने कहा, “यह 1952 के बाद का सबसे छोटा शीतकालीन सत्र है। पहले आप बैठकें कम कर देते हैं और फिर उसी सीमित समय में सरकार का भारी एजेंडा ठूंस देते हैं। उद्देश्य यही लगता है कि पूरे समय को सरकारी कामकाज से भर दिया जाए।”
उन्होंने कहा कि संसदीय बैठकों का मूल उद्देश्य बहस, चर्चा और समीक्षा है, लेकिन जब समय का विभाजन संतुलित न हो, तो यह प्रक्रिया कमजोर पड़ जाती है। उन्होंने कहा, “संसद का काम केवल बिल पास करना नहीं है। यह संवाद की संस्कृति है।”
पिछले कुछ सत्रों में बैठकों की संख्या घटने, प्रश्नकाल सीमित होने, शून्यकाल पर कम समय मिलने और महत्वपूर्ण विधेयकों पर जल्दबाज़ी में चर्चा कराने को लेकर लगातार आलोचना होती रही है। जानकारों का मानना है कि यदि यह प्रवृत्ति जारी रही तो संसद का संवाद मंच के रूप में महत्व प्रभावित हो सकता है।
ब्रिटास ने यह भी कहा कि संविधान विपक्ष को इसलिए जगह देता है ताकि वह सुधार, सुझाव और वैकल्पिक दृष्टिकोण प्रस्तुत कर सके। “जब विपक्ष की जगह कम होती है, तो विधायी गुणवत्ता भी प्रभावित होती है,” उन्होंने कहा।
एक वरिष्ठ संसदीय मामलों के विश्लेषक ने भी कहा, “मजबूत लोकतंत्र वही होते हैं जो समीक्षा का स्वागत करते हैं। संसद मुहर लगाने का स्थान नहीं, जवाबदेही का मंच है।”
ब्रिटास ने साफ किया कि यह मसला किसी दल विशेष का नहीं बल्कि संस्थागत ढांचे का है। उन्होंने कहा, “यह सभी निर्वाचित प्रतिनिधियों के अधिकारों और हमारी लोकतांत्रिक संस्थाओं की मजबूती का प्रश्न है।”
जैसे-जैसे शीतकालीन सत्र समाप्ति की ओर बढ़ रहा है, संसद के समय, विधायी परीक्षा और विपक्ष की भूमिका पर यह बहस और तेज होने की संभावना है।
