
हैदराबाद के सांसद और AIMIM अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने एक बार फिर ज़ोर देकर कहा है कि सुप्रीम कोर्ट को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 पर अंतिम और समग्र निर्णय देना चाहिए। ओवैसी, जो इस कानून को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं में से एक हैं, का कहना है कि संशोधित प्रावधान वक्फ संस्थाओं को कमजोर कर देंगे और धार्मिक न्यासों पर अतिक्रमण का रास्ता खोल देंगे।
15 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने नए अधिनियम के कुछ सबसे विवादित प्रावधानों पर अंतरिम रोक लगायी। अदालत ने सरकार को यह अधिकार लागू करने से रोका कि जिला कलेक्टर यह तय करें कि कोई संपत्ति वास्तव में सरकारी है या वक्फ। इसी तरह उस प्रावधान पर भी रोक लगाई गई जिसके तहत वक्फ बनाने के लिए किसी व्यक्ति को पाँच वर्ष तक इस्लाम का पालन करना अनिवार्य किया गया था। वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों की संख्या पर लगी सीमा को भी स्थगित कर दिया गया। हालांकि, अदालत ने पूरे अधिनियम पर रोक नहीं लगायी, जिसके कारण यह फिलहाल लागू है।
इस आदेश के बाद ओवैसी ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि आंशिक राहत पर्याप्त नहीं है। उन्होंने कहा, “मेरी राय में … यह अंतरिम आदेश वक्फ संपत्तियों को मोदी सरकार द्वारा बनाए गए कानून से सुरक्षित नहीं रखेगा। अतिक्रमणकर्ताओं को इनाम मिलेगा और वक्फ संपत्तियों में कोई विकास नहीं होगा। इसलिए हम उम्मीद करते हैं कि सुप्रीम कोर्ट जल्द से जल्द अंतिम निर्णय देगा।”
वर्ष 2025 में संसद द्वारा पारित इस संशोधन ने वक्फ संपत्तियों के प्रशासन में व्यापक बदलाव किए। इसमें सरकार की निगरानी बढ़ाने, वक्फ की परिभाषा बदलने और लंबे समय से चली आ रही “वक्फ बाय यूज़र” की अवधारणा को हटाने जैसे कदम शामिल हैं। इसी के साथ पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग को उन संरक्षित स्मारकों का नियंत्रण सौंपने का प्रावधान भी किया गया है जो पहले वक्फ की सूची में थे। ओवैसी का कहना है कि इससे ऐतिहासिक रूप से वक्फ मानी जाने वाली evacuee properties अब सरकार को हस्तांतरित हो सकती हैं, जिससे समुदाय की पारंपरिक संपत्तियाँ खो जाएँगी।
विवाद की जड़ वक्फ संपत्तियों का सामाजिक और धार्मिक महत्व है। वक्फ से जुड़ी संपत्तियाँ – जो इस्लामी कानून के अंतर्गत दान या न्यास होती हैं – अक्सर मस्जिदों, मदरसों, अस्पतालों और अनाथालयों का वित्तपोषण करती हैं। सरकारी अनुमानों के अनुसार भारत में 8 लाख से अधिक पंजीकृत वक्फ संपत्तियाँ हैं, जिनमें बड़ी मात्रा में भूमि और अचल संपत्ति शामिल है। आलोचकों का कहना है कि वक्फ बोर्डों की शक्तियों को सीमित कर और गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल कर यह संशोधन संविधान में निहित धर्मनिरपेक्ष संतुलन को कमजोर करता है।
केंद्र सरकार का तर्क है कि यह कानून पारदर्शिता लाने और वक्फ संपत्तियों के दुरुपयोग को रोकने के लिए आवश्यक है। कानून पेश करते समय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा था कि यह अधिनियम “शासन व्यवस्था को सुव्यवस्थित करेगा, अस्पष्टताओं को दूर करेगा और समुदाय की संपत्तियों को शोषण से बचाएगा।” लेकिन विपक्षी दलों, नागरिक संगठनों और मुस्लिम समूहों का आरोप है कि सरकार अल्पसंख्यक संस्थाओं को निशाना बना रही है।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष इस संशोधन को चुनौती देने वाली लगभग 65 याचिकाएँ लंबित हैं। अदालत ने स्पष्ट किया है कि उसका अंतरिम आदेश तब तक जारी रहेगा जब तक कि वह कानून की संवैधानिकता पर अंतिम निर्णय नहीं दे देती। फिलहाल “वक्फ बाय यूज़र” को हटाने का प्रावधान लागू है, हालांकि अधिनियम लागू होने से पहले पंजीकृत संपत्तियाँ सुरक्षित हैं।
जैसे-जैसे यह कानूनी संघर्ष आगे बढ़ रहा है, वक्फ संशोधन अधिनियम पर विवाद केवल संपत्ति प्रबंधन तक सीमित नहीं रह गया है बल्कि यह अल्पसंख्यक अधिकारों, धार्मिक स्वतंत्रता और राज्य की भूमिका को लेकर व्यापक राजनीतिक बहस का हिस्सा बन गया है। ओवैसी और अन्य याचिकाकर्ताओं के लिए अब केवल सुप्रीम कोर्ट का अंतिम निर्णय ही इस अनिश्चितता को खत्म कर सकता है और वक्फ संस्थाओं को संभावित खतरे से बचा सकता है।