
लद्दाख में हाल ही में हुई हिंसा, जिसमें कई लोगों की मौत हुई और कई घायल हुए, ने केंद्र सरकार की नीतियों और दावों पर नई बहस छेड़ दी है। कांग्रेस पार्टी ने इस अशांति को आधार बनाकर कहा है कि यह घटनाएँ 2019 में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद केंद्र द्वारा दिए गए वादों को खोखला साबित करती हैं।
अगस्त 2019 में भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त कर अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया था और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों — जम्मू-कश्मीर और लद्दाख — में विभाजित किया था। उस समय केंद्र ने लद्दाख के लोगों को बेहतर शासन, सुरक्षा और विकास का आश्वासन दिया था।
लेकिन हालिया हिंसक झड़पों ने इन दावों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। स्थानीय समूह और निवासी लंबे समय से प्रतिनिधित्व, रोजगार की सुरक्षा और भूमि अधिकारों की गारंटी की मांग कर रहे हैं, जिन्हें अभी तक पूरा नहीं किया गया है।
कांग्रेस ने हिंसा को सीधे केंद्र की नीतियों की विफलता बताया है। पार्टी के नेताओं का कहना है कि सरकार ने शांति और सुरक्षा का भरोसा दिया था, लेकिन ज़मीनी सच्चाई इसके बिल्कुल उलट है। एक कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा, “लद्दाख की हिंसा केंद्र के वादों और उपेक्षा की सीधी परिणति है। अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद लोगों को उम्मीदें दी गईं, लेकिन वे पूरी नहीं हुईं।”
कांग्रेस ने इस हिंसा की स्वतंत्र जांच की मांग की है और सरकार से स्थानीय समुदायों से गंभीर वार्ता करने का आग्रह किया है।
स्थानीय संगठनों और छात्र संघों ने भी चिंता जताई है कि लद्दाख की सांस्कृतिक और जनसांख्यिकीय पहचान खतरे में है। छठी अनुसूची के तहत लद्दाख को शामिल करने की मांग हालिया हिंसा के बाद और तेज़ हो गई है, ताकि भूमि और संसाधनों पर अधिकार सुरक्षित रह सके।
लेह के एक सामुदायिक नेता ने कहा, “2019 के बाद लोगों को सशक्तिकरण और विकास की उम्मीद थी, लेकिन वे खुद को हाशिये पर महसूस कर रहे हैं। हिंसा इसी गहरी निराशा का परिणाम है।”
सरकारी अधिकारियों ने माना है कि स्थिति गंभीर है, लेकिन उनका कहना है कि लद्दाख में कुल मिलाकर सुरक्षा नियंत्रण में है। उन्होंने यह भी दोहराया कि केंद्र वहाँ सड़क, ऊर्जा और कनेक्टिविटी जैसे कई बड़े विकास कार्य चला रहा है।
गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “लद्दाख के विकास के लिए केंद्र प्रतिबद्ध है। हिंसा दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन यह दीर्घकालिक लाभ और निवेश को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकती।”
फिर भी आलोचकों का कहना है कि विकास परियोजनाएँ राजनीतिक संवाद की जगह नहीं ले सकतीं। विश्लेषकों का मानना है कि लद्दाख की विशिष्ट भौगोलिक और सांस्कृतिक स्थिति को देखते हुए वहाँ अलग तरह की शासन व्यवस्था और संवेदनशीलता की आवश्यकता है।
लद्दाख की हिंसा ने अनुच्छेद 370 हटाने के बाद की परिस्थितियों को लेकर राष्ट्रीय बहस को फिर से जगा दिया है। विपक्षी दल हमलावर हैं और स्थानीय असंतोष बढ़ता दिख रहा है। ऐसे में केंद्र पर दबाव है कि वह अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करे।
विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को स्थानीय नेताओं के साथ औपचारिक संवाद शुरू करना होगा, संवैधानिक सुरक्षा की मांगों पर विचार करना होगा और सुरक्षा व समावेशिता में संतुलन बनाना होगा।
यह हिंसा यह याद दिलाती है कि शांति और सामान्य स्थिति के वादे केवल घोषणाओं से पूरे नहीं हो सकते, बल्कि उन्हें धरातल पर संवेदनशील कार्रवाई और सतत प्रयासों से ही सार्थक बनाया जा सकता है।