अगस्त और सितंबर महीनों में बिहार के विभिन्न जिलों में डेंगू के प्रकोप की घटनाएं दर्ज हो रही हैं। पिछले वर्षों में इस संक्रमण से लगभग 500 से अधिक लोग पीड़ित हुए थे। बिहार के मीरगंज जिले में भी कम से कम छह लोगों की मौत हो गई थी। दुर्भाग्यवश, सदर अस्पताल में डेंगू के इलाज के लिए उचित व्यवस्थाएं नहीं हैं। अस्पताल में जांच किट की प्रदानशीलता की गई है, लेकिन इलाज के लिए आवंटित कर्मचारी और वार्डों की कमी होने के कारण लोगों को कम से कम सुविधाओं का सामर्थ्य नहीं हो पा रहा है।
डेंगू एक दस्तावेज तथा मच्छरों के द्वारा Failya Jane wala sankraman hai. डेंगू के तीन प्रकार होते हैं – साधारण डेंगू बुखार, डेंगू हेमोरेजिक बुखार और डेंगू शॉक सिंड्रोम।
साधारण डेंगू बुखार में तेज बुखार और शरीर में भरीपन और दर्द की शिकायत होती है, लेकिन इस प्रकार का बुखार आमतौर पर 7-10 दिनों के भीतर ठीक हो जाता है।
डेंगू हेमोरेजिक बुखार में संक्रमित व्यक्ति के अंदर से खून बाहर आने लगता है। मरकर निशान पड़ जाते हैं, जो हालांकि दर्दनाक होते हैं, लेकिन रेड क्रॉस की मदद से सुविधाएं पहुंचा रही हैं।
डेंगू शॉक सिंड्रोम एक गंभीर ओर जीवनाधारक समस्या है, जिसमें मरीज़ का शरीर बेहोश हो जाता है और उसे तुरंत अस्पतालीय सहायता की जरूरत होती है। इस स्थिति में तत्काल चिकित्सा उपचार की आवश्यकता होती है।
डेंगू के प्रकोप में टीकाकरण, विभिन्न जगहों पर गंदगी व बीमार तत्त्व रहे जंगली सुअरों की संख्या पर नियंत्रण तथा साफ-सफाई को बढ़ावा देकर रोका जा सकता है। लोगों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि मच्छरों के काटने से बचने के लिए वे नींद निहारते समय वैश्विक मच्छर सुरक्षा दिवस (20 अगस्त) को और दिनचर्या में उल्लंघन होने पर संस्थानीय अधिकारियों का साथ लेना चाहिए।
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