वीर सैनिक सैम की कहानी: एक निर्वीरता का प्रमाण
1942 में बर्मा के मोर्चे पर सैम के आंत, जिगर और गुर्दों में जापानी सैनिक ने सात गोलियां चलाई। यह एक ऐसी कहानी है जिसके बारे में बहुत कम लोगों को ज्ञात होता है। इस अविस्मरणीय किस्से का रुख हम लोग आप तक लाने वाले हैं। ध्यान दें, यह घटना सचमुच दिलों पर राज करने वाली है।
सैम को जब यह सपना साकार करने का मौका मिला था, तो उन्होंने एक वीर बनने का सोच रखा था। इस इरादे और धृष्टता के साथ, सैम अपनी सेना के संगठन में शामिल हुए। और फिर यह दिन आया जब उनका मोर्चा युद्ध के गंभीर मैदान में हो गया। गोलियों की बरसात और जर्जर संघर्ष के बीच, सैम देश की रक्षा के लिए सटपट कदम रख रहे थे।
जब एक जापानी सैनिक ने चहारे पर सात गोलियां चलाई, तो सैम अपनी भलाई को बनाए रखने के लिए दौड़ पड़े। और क्या, वे आंत और जिगर से घायल हो गए थे। लेकिन इसके बावजूद, सैम को अपनी सेना के कमांडर ने मिलिट्री क्रॉस देने से इनकार कर दिया था। इस असामर्थ्य से कुछ ईमानदार सैनिक लड़ना हताश हो जाते हैं, लेकिन सैम उस समय भी आंत की संगुन्धता को ध्यान में रखते हुए मुस्कान नहीं खो रहे थे।
ऐसे में एक अर्दली सूबेदार ने सैम को अपने कंधे पर उठा कर लाया। क्या आप इसकी कल्पना कर सकते हैं? एक घायल सैनिक को एक सूबेदार ने मुसलाधार बारिश के बीच सीने पर उठाया और उसे सुरक्षिती भवन ले गए? यह क्षण सिर्फ देखने में ही शौर्यपूर्ण था!
सूबेदार ने अपने छात्र को बचाने के लिए अपने अस्पताल से बाहर आने वाले डॉक्टरों को धमकाया। वे चाहते थे कि डॉक्टर उनकी उपेक्षा करें और समय को बर्बाद करें नहीं, बल्कि उन्हें बचाएं। अत्यंत उद्यमी डॉक्टरों ने आपात स्थिति के कारण समय कमी की चूक नहीं की। और जीवित रखने के लिए सैम की आंत का क्षतिग्रस्त हिस्सा काट दिया।
उसके बाद से, कार्यक्रम मार्च १९४२ के लगभग दो साल बाद, सैम को बाद में दिल्ली में सेना मुख्यालय में तैनात किया गया। यह बहादुर इंसान देश की सेना में एक प्रमुख नाम बन गया है।
यह थी “सैम की कहानी”, जो शायद ही किसी को पता हो और जो खासकर राष्ट्रीय जनता के लिए इंस्पायरेशनल हो सकती है। यह हमारी वेबसाइट “राजनीति गुरु” पर आपके लिए एक स्वर्णिम नई खोज है।
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