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राजनीति की परतें: श्रम कानून बदलाव पर विवाद

In Politics
September 12, 2025
rajneetiguru.com - मोदी ने RSS प्रमुख भागवत को जन्मदिन की बधाई दी। Image Credit – The Indian Express

RSS के सरसंघचालक मोहन भागवत के 75वें जन्मदिन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा को राजनीतिक गलियारे में केवल अभिवादन नहीं बल्कि BJP-RSS रिश्तों में बदलते संतुलन की एक बड़ी झलक माना जा रहा है। मोदी ने भागवत को “वसुधैव कुटुम्बकम” के आदर्श से प्रेरित बताते हुए कहा कि उन्होंने पूरे जीवन सामाजिक परिवर्तन और सामंजस्य की भावना को मजबूत करने में समर्पित किया है।

मोदी की इस तारीफ की घोषणा ऐसे समय हुई है जब “75 वर्ष की सेवानिवृत्ति” की अनौपचारिक नीति को लेकर सियासी कयास चर्चा में है। RSS प्रमुख भागवत ने इस बारे में कहा कि उन्होंने कभी यह नहीं कहा कि कोई इस आयु के बाद सेवानिवृत्त हो जाना चाहिए। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह निर्णय संगठन की जिम्मेदारी है और उम्र अकेले किसी की भूमिका को निर्धारित नहीं करती।

यह स्थिति BJP-RSS की साझेदारी की बदलती तस्वीर को दर्शाती है, जो अटल बिहारी वाजपेयी के समय से बहुत अलग थी। वाजपेयी के दौर में RSS और BJP के शीर्ष नेतृत्व के बीच संतुलन अपेक्षाकृत स्पष्ट था—RSS की एक भूमिका थी, लेकिन राजनीतिक निर्णयों में BJP को सार्वजनिक नेतृत्व अधिक दिखता था। राजु भाईया जैसे RSS प्रमुख तथा वाजपेयी के बीच व्यक्तिगत सम्मान और क्षेत्रभेदित परस्पर सहयोग था, लेकिन सत्ता में रहने के बाद सीमाएँ और अपेक्षाएँ स्पष्ट थीं।

2019 और 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद यह अनुमान लगाया गया कि RSS ने सत्ता-प्रचार अभियानों में खुद को थोड़ा पीछे लिया है। चुनावों में BJP के वोटों में गिरावट को कुछ विशेषज्ञ RSS के कदम पीछे खिसकने के संकेत मानते हैं। इसके बाद 2025 की स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएँ और भागवत की स्वतंत्र सार्वजनिक गतिविधियाँ ये संकेत देती हैं कि RSS की भूमिका सिर्फ सहयोगी से अधिक पुनर्स्थापित हो रही है।

विपक्षी दलों ने प्रधानमंत्री की इस प्रशंसा को “सियासी संदेश” बताया है। कांग्रेस ने कहा है कि यदि “75 वर्ष की सेवानिवृत्ति की नीति” लागू होनी चाहिए, तो वह सभी के लिए समान रूप से होनी चाहिए—Advani, Joshi से लेकर भागवत और मोदी तक। उन्होंने कहा कि नीति जब सुविधाजनक हो, लागू होती है, और जब नहीं, चर्चा पर ही छोड़ दी जाती है।

RSS प्रमुख खुद कहते हैं, “मैंने कभी नहीं कहा कि मैं सेवानिवृत्त हो जाऊँगा या किसी और को होना चाहिए।” उन्होंने यह भी कहा कि संगठन के लिए स्वेयंसेवक को कोई भूमिका दी जाती है चाहे वह चाहें या नहीं, और संगठन की ज़रूरत एवं परिस्थिति देखी जाती है।

पृष्ठभूमि देखें तो RSS की स्थापना 1925 में हुई थी। अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री बनने तक RSS और BJP के बीच सार्वजनिक सामंजस्य और सहयोग अपेक्षाकृत अस्पष्ट रूप से चलता रहा। वाजपेयी खुद RSS के साथ संबंधों में संतुलन बनाने वाले नेता माने जाते थे, जिनका दृष्टिकोण संयमित रहता था। RSS के विभिन्न सरसंघचालक जैसे राजेंद्र सिंह (राजु भाईया) और के.एस. सुदर्शन ने कभी-कभी सार्वजनिक आलोचनाएँ भी कीं, लेकिन वाजपेयी ने कभी स्पष्ट टकराव नहीं किया।

आज मोदी की तारीफ और भागवत के पिछले बयानों से यह स्पष्ट है कि BJP-RSS की शक्ति रेखाएं नवीन संदर्भों में फिर तराश रही हैं। सत्ता में BJP और RSS के फै़ज़ौल संगठनात्मक तनावों, राजनीति में नेतृत्व परिवर्तन की चर्चाओं, और “75 की सीमा” की अफवाहों के बीच यह अभिवादन केवल सम्मान नहीं, रणनीतिक संतोष का हिस्सा भी दिखता है।

आगे यह देखना होगा कि आने वाले समय में ये बदलते संतुलन कैसे और खुलेंगे—क्या BJP अधिक स्वायत्त हो पाएगा, RSS कब तक सार्वजनिक-राजनीतिक मामलों के बीच अपनी भूमिका बनाए रखेगा, और क्या “सेवानिवृत्ति” की अनौपचारिक नीति पर कोई औपचारिक स्पष्टीकरण होगा।

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