मुंबई — 2024 की विधानसभा चुनाव हार के बाद से ही Maha Vikas Aghadi (MVA) का internal संतुलन लगातार कमजोर होता रहा है। अब राजनीतिक पटल पर सामने आए रुझानों से पता चलता है कि करीब 47 MVA के runner-up (दूसरे स्थान पर आए) प्रत्याशियों ने अपनी दोस्ती बदलते हुए Mahayuti गठबंधन के साथ क़दम मिला लिए हैं।
इनमें से अधिकांश ने सीधे Bharatiya Janata Party (BJP) का दामन थामा, जबकि कुछ ने Nationalist Congress Party (NCP) व Shiv Sena (शिंदे-गुट) को चुना। यह दलबदल विशेष रूप से उन इलाकों में हुआ है जहाँ MVA को अपनी पकड़ बनाने में मुश्किल हुई थी।
एक वरिष्ठ NCP नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “विपक्ष के नेताओं को शामिल करने से, जो दावेदार हारकर पीछे रह गए थे, विपक्ष की वापसी की संभावना खुद खत्म हो जाती है — इससे 2029 चुनावों की रणनीति मजबूत होती है।”
पिछले विधानसभा चुनाव में, Mahayuti ने स्पष्ट जीत दर्ज की थी। BJP, NCP (शिंदे-गुट) और शिवसेना (शिंदे) द्वारा गठित यह गठबंधन राज्य की सत्ता में आया था। वहीं MVA — जिसमें कांग्रेस, NCP (कुछ गुटों में बंटी), और शिवसेना (UBT) शामिल थे — को हार का सामना करना पड़ा।
हार के बाद runner-up बने कई उम्मीदवारों ने, अपनी राजनीतिक संभावनाओं को देखते हुए, महायुति की ओर रुख किया। यह प्रक्रिया वहीं से शुरू हुई जहाँ MVA की हार ने उनकी राजनीतिक स्थिति को अस्थिर बना दिया।
कई विश्लेषकों का मानना है कि यह दलबदल सिर्फ व्यक्तिगत बचाव की रणनीति नहीं, बल्कि महायुति द्वारा विपक्ष को कमजोर करने की सुनियोजित राजनीति का हिस्सा है।
-
कुल 47 उम्मीदवार: इनमें से अधिकांश ने BJP को चुना।
-
शेष ने NCP (शिंदे-गुट) व शिवसेना (शिंदे) को पसंद किया।
-
दलबदल विशेष रूप से उन क्षेत्रों में हुए जहाँ MVA के लिए जीत-गरीब रही — कई runner-ups ने अपनी बागडोर बचाने के लिए सत्ता पक्ष जॉइन की।
इस तरह की रणनीतिक पारीबदल — विश्लेषकों के अनुसार — 2029 विधानसभा चुनाव से पहले महायुति की जमीनी मजबूती के लिए किया जा रहा है।
इस प्रकार का दलबदल MVA गठबंधन के लिए गहरा झटका है। सिर्फ चुनावी हार नहीं, बल्कि हार के बाद नेताओं का पलायन — यह दर्शाता है कि MVA के भीतर भरोसा व स्थिरता अब संकट में है।
अगर यह सिलसिला जारी रहा, तो 2029 तक MVA के लिए पुनर्लाभ की सम्भावना और भी कठिन हो जाएगी। विपक्षी मोर्चा कमजोर होगा, और महायुति की पकड़ कड़ी।
इसके साथ ही, MVA में मौजूद जनता-आधारित दलों और उनके समर्थकों के बीच असंतोष और भरोसे की कमी बढ़ने की संभावना है।
महाराष्ट्र की राजनीति अब स्पष्ट रूप से दो-ध्रुवीय होती जा रही है — एक तरफ मजबूत सत्ता गठबंधन, दूसरी ओर बिखरता विपक्ष।
विश्लेषक मानते हैं कि Mahayuti की यह रणनीति — हार के बाद runner-up नेताओं को शामिल करना — कांग्रेस, NCP-UBT और शिवसेना (UBT) जैसे दलों के लिए “हीलिंग पर्चियों की तरह” है: दिखने में स्वागतयोग्य, लेकिन दीर्घकालिक विश्वास के लिहाज से अस्थिर।
यदि मंथन नहीं हुआ, तो 2029 विधानसभा चुनावों तक MVA “बहुत हल्का व कलही-छिला गठबंधन” बनकर रह सकता है।
