
पटना: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने सोमवार को 143 प्रत्याशियों की सूची जारी की, जिसमें बड़े पैमाने पर फेरबदल देखने को मिला है। पार्टी ने इस बार अपने पारंपरिक ‘मुस्लिम-यादव (एम-वाई)’ समीकरण पर फिर से भरोसा जताया है, साथ ही नए चेहरों और अनुभवी नेताओं का संतुलन बनाए रखा है।
आरजेडी की सूची में 36 मौजूदा विधायकों का टिकट काटा गया है, जबकि 41 विधायकों को दोबारा मौका मिला है। इसके अलावा, पार्टी ने 24 महिला उम्मीदवारों, 20 अनुसूचित जाति (एससी) और एक अनुसूचित जनजाति (एसटी) उम्मीदवार को टिकट दिया है।
पार्टी सूत्रों के अनुसार, यह सूची युवाओं और अनुभव दोनों को जोड़ने का प्रयास है। आरजेडी का मानना है कि यह संतुलन परंपरागत मतदाताओं और नए वोटरों दोनों को आकर्षित करेगा।
आरजेडी ने एक बार फिर अपने पुराने ‘मुस्लिम-यादव’ समीकरण को केंद्र में रखा है। पार्टी की सूची में यादव समुदाय के 35 से अधिक और मुस्लिम समुदाय के 18 उम्मीदवार शामिल किए गए हैं।
महागठबंधन का हिस्सा होने के बावजूद आरजेडी की सूची में छह ऐसी सीटें हैं, जहाँ कांग्रेस भी उम्मीदवार उतार चुकी है। दोनों दल इसे “दोस्ताना मुकाबला” बता रहे हैं, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह गठबंधन के भीतर दरार का संकेत है।
आरजेडी प्रवक्ता ने कहा, “हम गठबंधन धर्म का सम्मान करते हैं, लेकिन जिन सीटों पर हमारी संगठनात्मक पकड़ मजबूत है, वहाँ समझौता नहीं करेंगे। हमारा उद्देश्य बिहार में जीत हासिल करना है।”
विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव एक बार फिर वैशाली जिले की राघोपुर सीट से चुनाव लड़ेंगे। उनका नाम पार्टी की युवा और प्रगतिशील छवि को मजबूत करता है और बताता है कि आरजेडी अभी भी उनके नेतृत्व में चुनावी लड़ाई लड़ेगी।
राजनीतिक विश्लेषक डॉ. अंजलि सिंह का कहना है कि, “आरजेडी का कदम दोहरे संदेश देता है। एक तरफ पार्टी नयापन दिखाना चाहती है, वहीं कांग्रेस के साथ सीटों पर टकराव गठबंधन की एकजुटता पर सवाल उठाता है।”
बिहार विधानसभा चुनाव दो चरणों में — 6 और 11 नवंबर को — होंगे और मतगणना 14 नवंबर को की जाएगी। आरजेडी की सूची जारी होना चुनावी अभियान का अहम मोड़ माना जा रहा है।
विशेषज्ञों के अनुसार, यह फेरबदल पार्टी कार्यकर्ताओं को उत्साहित कर सकता है, लेकिन टिकट से वंचित पुराने नेताओं में असंतोष भी पैदा कर सकता है।
143 सीटों की सूची जारी कर आरजेडी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह बदलाव, समावेश और जातीय संतुलन की रणनीति के साथ मैदान में उतर रही है। हालांकि, महागठबंधन के भीतर दिख रही असहमति और कांग्रेस से ‘दोस्ताना मुकाबले’ चुनावी एकता की बड़ी परीक्षा साबित हो सकते हैं।