नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी ने मणिपुर में लंबे समय से चले आ रहे राजनीतिक और सामाजिक गतिरोध को सुलझाने की दिशा में एक अहम कदम उठाते हुए मेटेई और कुकी समुदाय से जुड़े अपने विधायकों की संयुक्त बैठक नई दिल्ली में आयोजित की। इस बैठक का उद्देश्य दोनों समुदायों के विधायकों के बीच संवाद स्थापित करना और राज्य में आगे की राजनीतिक प्रक्रिया को लेकर सहमति बनाने की संभावनाओं पर विचार करना रहा। पार्टी नेतृत्व का स्पष्ट मत है कि जब तक आंतरिक मतभेदों को दूर नहीं किया जाता, तब तक मणिपुर में किसी भी प्रकार की लोकप्रिय सरकार का गठन करना व्यावहारिक नहीं होगा।
बैठक में शामिल विधायकों ने राज्य में शांति बहाली, सामान्य जनजीवन की वापसी, विस्थापित लोगों के पुनर्वास और प्रशासनिक व्यवस्था को फिर से प्रभावी बनाने जैसे मुद्दों पर अपने विचार रखे। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने विधायकों से आग्रह किया कि वे समुदायगत मतभेदों से ऊपर उठकर मणिपुर के व्यापक हित को प्राथमिकता दें। बैठक का फोकस आपसी विश्वास बहाल करने और भविष्य की राजनीतिक दिशा तय करने पर रहा।
बीजेपी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने बैठक के बाद कहा कि मणिपुर की स्थिति केवल कानून व्यवस्था से जुड़ा विषय नहीं है, बल्कि यह सामाजिक विश्वास और राजनीतिक संतुलन की भी परीक्षा है। उन्होंने कहा, “जब तक सभी पक्ष एक-दूसरे की बात नहीं सुनेंगे और समाधान की साझा ज़मीन नहीं तलाशेंगे, तब तक स्थायी शांति और स्थिर शासन संभव नहीं है।”
मणिपुर पिछले एक वर्ष से अधिक समय से जातीय तनाव और हिंसा से प्रभावित रहा है। मई 2023 में मेटेई और कुकी समुदायों के बीच शुरू हुई झड़पों ने राज्य की सामाजिक संरचना को गहराई से प्रभावित किया। इस हिंसा के कारण कई लोगों की जान गई, बड़ी संख्या में परिवारों को अपने घर छोड़ने पड़े और आर्थिक गतिविधियां बुरी तरह प्रभावित हुईं। हालात की गंभीरता को देखते हुए राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया, जिससे प्रशासनिक जिम्मेदारी सीधे केंद्र सरकार के अधीन आ गई।
राजनीतिक दृष्टि से भी राज्य में स्थिति जटिल बनी हुई है। विभिन्न समुदायों की अलग-अलग मांगें और आशंकाएं समाधान की प्रक्रिया को कठिन बनाती रही हैं। कुछ विधायकों द्वारा वैकल्पिक प्रशासनिक व्यवस्थाओं की मांग और लगातार बनी अविश्वास की स्थिति ने राजनीतिक संवाद को सीमित कर दिया था। ऐसे माहौल में बीजेपी द्वारा अपने ही विधायकों को एक साथ बैठाना पार्टी के भीतर सामंजस्य स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास माना जा रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह बैठक मणिपुर में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को दोबारा सक्रिय करने की दिशा में एक प्रारंभिक कदम हो सकती है। हालांकि, विशेषज्ञ यह भी कहते हैं कि केवल राजनीतिक बैठकों से समाधान नहीं निकलेगा। ज़मीनी स्तर पर सुरक्षा, पुनर्वास और सामाजिक मेल-जोल को बढ़ावा देना उतना ही आवश्यक होगा।
दिल्ली में हुई इस बैठक में यह भी संकेत मिला कि पार्टी नेतृत्व मणिपुर में जल्दबाज़ी में कोई निर्णय लेने के पक्ष में नहीं है। पहले चरण में विधायकों के बीच आपसी मतभेद सुलझाने, फिर सामाजिक विश्वास बहाल करने और उसके बाद ही सरकार गठन जैसे कदमों पर विचार किया जाएगा। पार्टी का मानना है कि बिना ठोस सहमति के सरकार बनाना राज्य को फिर से अस्थिरता की ओर धकेल सकता है।
फिलहाल, मणिपुर की जनता इस राजनीतिक पहल को उम्मीद और सतर्कता दोनों के साथ देख रही है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि यह संवाद आगे कितनी निरंतरता के साथ चलता है और क्या यह राज्य में शांति, स्थिरता और लोकतांत्रिक शासन की वापसी का आधार बन पाता है।
