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मणिपुर में भाजपा के तीन नेता कांग्रेस में

In National
September 09, 2025
rajneetiguru.com - दिल्ली में कांग्रेस में शामिल होते भाजपा नेता। Image Credit – The Economic Times

एक बड़े राजनीतिक घटनाक्रम में मणिपुर के भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के तीन नेताओं ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (कांग्रेस) का दामन थाम लिया। यह औपचारिक शामिल होना नई दिल्ली में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति (एआईसीसी) के वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी में हुआ।

कांग्रेस में शामिल होने वालों में दो प्रमुख पूर्व विधायक — वाई. सुरचंद्र सिंह और एल. राधाकिशोर सिंह — शामिल हैं, जो मणिपुर की राजनीति में प्रभावशाली भूमिका निभा चुके हैं। इनके साथ एक अन्य स्थानीय भाजपा नेता ने भी पार्टी छोड़ी, जिन्होंने राज्य की मौजूदा राजनीतिक स्थिति से असंतोष जताया।

कांग्रेस, जो मणिपुर में अपनी ताकत फिर से हासिल करने की कोशिश कर रही है, ने इन नेताओं का स्वागत किया। एआईसीसी के वरिष्ठ नेताओं ने उन्हें औपचारिक रूप से पार्टी में शामिल कराया और पार्टी की मंशा साफ की कि वह प्रदेश में अपनी मौजूदगी फिर से मज़बूत करना चाहती है।

पिछले कुछ वर्षों में मणिपुर ने लगातार राजनीतिक उथल-पुथल देखी है। भाजपा, जिसने 2017 में राज्य की सत्ता संभाली थी, को जातीय तनाव और शासन से जुड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। हालांकि भाजपा सत्ता में बनी हुई है, लेकिन बीच-बीच में असंतोष और दलबदल की घटनाएँ सुर्खियों में रही हैं।

वहीं कांग्रेस, जो कभी मणिपुर की राजनीति में हावी थी, पिछले कुछ वर्षों में कमजोर हुई है। मगर ताज़ा राजनीतिक बदलाव को कांग्रेस के लिए मनोबल बढ़ाने वाला कदम माना जा रहा है।

शामिल होने के दौरान वरिष्ठ कांग्रेस नेता के.सी. वेणुगोपाल ने कहा, “इन नेताओं की वापसी यह दिखाती है कि मणिपुर की जनता अब भी कांग्रेस पर भरोसा करती है। हम शांति, स्थिरता और समावेशी विकास के लिए लड़ाई जारी रखेंगे।”

वहीं भाजपा ने इस कदम के महत्व को कमतर आँका। इम्फाल में भाजपा प्रवक्ता ने कहा, “भाजपा जमीनी स्तर पर मज़बूत है और इस तरह की घटनाएँ जनता के विश्वास को प्रभावित नहीं करेंगी।”

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि हालांकि इन दलबदल का तत्काल प्रभाव सीमित हो सकता है, लेकिन यह कांग्रेस के लिए प्रतीकात्मक मज़बूती ला सकता है। सुरचंद्र सिंह और राधाकिशोर सिंह जैसे अनुभवी नेताओं की मौजूदगी पार्टी को स्थानीय स्तर पर अपने संगठन को पुनर्गठित करने में मदद कर सकती है।

विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि इस तरह की घटनाएँ सत्ताधारी दलों के भीतर असंतोष को उजागर करती हैं, खासकर उन राज्यों में जहां राजनीतिक और सामाजिक चुनौतियाँ मौजूद हैं।

जैसे-जैसे मणिपुर अपनी जटिल राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों से गुजर रहा है, कांग्रेस में इन अनुभवी नेताओं का आना आने वाले चुनावों पर असर डाल सकता है। अभी के लिए यह कदम साफ करता है कि कांग्रेस खोई हुई ज़मीन वापस पाना चाहती है, जबकि भाजपा स्थिरता और निरंतरता दिखाने की कोशिश कर रही है।

आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनाव ही इस राजनीतिक फेरबदल की असली परीक्षा साबित होंगे।

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