
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने गुजरात में अपने नए प्रदेश अध्यक्ष के रूप में ओबीसी नेता और तीन बार के विधायक जगदीश विश्वकर्मा को चुना है। इस निर्णय को आगामी चुनावी चुनौतियों से पहले पार्टी के सामाजिक समीकरण को मज़बूत करने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है।
विश्वकर्मा अहमदाबाद शहर की एक पाटीदार-बहुल सीट से विधायक हैं और फिलहाल राज्य मंत्रिमंडल में कई महत्वपूर्ण विभागों का दायित्व संभाल रहे हैं। इनमें लघु उद्योग, सहकारिता, नमक उद्योग और मुद्रण एवं स्टेशनरी जैसे विभाग शामिल हैं। उनकी नियुक्ति भाजपा के जातीय संतुलन पर लगातार दिए जा रहे ज़ोर को दर्शाती है। गुजरात में जातिगत समीकरण अक्सर चुनावी परिणामों को प्रभावित करते हैं।
भाजपा का यह निर्णय ओबीसी मतदाताओं को साधने की दिशा में भी अहम माना जा रहा है। पाटीदार समुदाय ने लंबे समय तक गुजरात की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाई है, लेकिन हाल के चुनावों में ओबीसी वोट बैंक भी उतना ही असरदार साबित हुआ है। ऐसे में विश्वकर्मा जैसे नेता को आगे बढ़ाकर भाजपा शहरी और ग्रामीण दोनों स्तरों पर अपनी पकड़ बनाए रखने की कोशिश कर रही है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम प्रतीकात्मक और रणनीतिक दोनों है। प्रतीकात्मक इसलिए क्योंकि भाजपा पिछड़े वर्गों के नेताओं को आगे लाने का संदेश दे रही है, और रणनीतिक इसलिए क्योंकि गुजरात पार्टी का गढ़ रहा है और इसे मज़बूत बनाए रखना भाजपा के लिए अहम है।
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “जगदीश विश्वकर्मा समर्पित कार्यकर्ता और कुशल प्रशासक रहे हैं। उनके संगठनात्मक कौशल और जमीनी स्तर से जुड़ाव से पार्टी की स्थिति और सशक्त होगी।”
यह फैसला उस समय आया है जब भाजपा 2024 के आम चुनाव और उसके बाद होने वाले राज्य चुनावों की तैयारी में जुटी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के गृह राज्य के रूप में गुजरात भाजपा के लिए विशेष राजनीतिक महत्व रखता है।
वहीं कांग्रेस के लिए गुजरात में अपनी खोई पकड़ वापस पाना अभी भी चुनौतीपूर्ण बना हुआ है। विपक्षी दल के प्रयासों के बावजूद भाजपा का विजय क्रम लगातार जारी है। विश्लेषकों का कहना है कि विश्वकर्मा की नियुक्ति से भाजपा संगठनात्मक रूप से और मज़बूत होगी।
भाजपा की राष्ट्रीय रणनीति में भी पिछड़े वर्गों के नेताओं को प्रमुखता देना शामिल है। अन्य राज्यों में भी इसी तरह की नियुक्तियों से पार्टी ने अपने प्रभाव क्षेत्र को बढ़ाया है।
विश्वकर्मा की प्रशासनिक पृष्ठभूमि भी इस नियुक्ति को प्रासंगिक बनाती है। लघु उद्योग और सहकारिता के क्षेत्र में उनके काम को सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है। उनकी पहचान एक ऐसे नेता की है जो संगठन और प्रशासन दोनों को संतुलित रूप से संभाल सकते हैं।
इस कदम से भाजपा ने स्पष्ट संकेत दिया है कि वह समावेशिता, जातीय प्रतिनिधित्व और मज़बूत नेतृत्व को प्राथमिकता दे रही है। आने वाले चुनावों में यह कितना असर डालेगा, यह तो समय बताएगा, लेकिन फिलहाल इसने गुजरात की राजनीतिक चर्चा को नया मोड़ दे दिया है।