
2025 के बिहार विधानसभा चुनावों के लिए जारी उम्मीदवार सूची में भाजपा और जदयू ने पिछड़ी एवं अति पिछड़ी जातियों (EBC) की प्रतिनिधित्व को विशेष प्राथमिकता दी है, और लगभग 13% टिकट महिलाओं के लिए आरक्षित की गई है। साथ ही, भाजपा ने अपनी पहली सूची में 55 मौजूदा विधायक पुनर्निर्धारित किए, 16 को बाहर कर दिया, और कई महत्वपूर्ण मंत्री व संगठनात्मक दिग्गजों को उतारा है।
पृष्ठभूमि: बिहार में जाति-राजनीति का महत्व
बिहार की राजनीति में जाति समीकरण और पहचान आधारित राजनीति का लंबा इतिहास रहा है। राज्य की 2022 जाति-आधारित सर्वेक्षण रिर्पोट बताती है कि EBC की आबादी लगभग 36% है और OBC की लगभग 27%। ऐसी सामाजिक संरचना में राजनीतिक दल अक्सर इन वर्गों से प्रत्याशियों को आगे करके अपने वोट बैंक मजबूत करने की रणनीति अपनाते हैं। हाल के वर्षों में अधिक आरक्षण और समावेशी प्रतिनिधित्व की मांगें बढ़ी हैं।
भाजपा की रणजीति: संतुलन और बदलाव
भाजपा की सूची एक संतुलनपूर्ण रणनीति दर्शाती है। 55 मौजूदा विधायकों को पुनर्निर्धारित करना, और 16 को हटाना, यह संकेत है कि बदलाव के साथ क्षमता बनाए रखने की कोशिश हो रही है। पार्टी ने कई मंत्रियों और संगठनात्मक नेताओं को भी सूची में रखा है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि सूची में 30 से अधिक नए चेहरे शामिल किए गए हैं — पेशेवर, सार्वजनिक हस्तियाँ तथा युवा।
लगभग 13 महिलाओं को भाजपा की सूची में स्थान दिया गया है, जिसमें से 7 मौजूदा विधायक हैं। पार्टी ने OBC, EBC और उच्च जाति वर्गों के बीच टिकट देने का संतुलन बनाए रखा है। पहली सूची में भाजपा ने 11 टिकट EBCs, 20 OBCs, 5 SCs, 1 ST, और अन्य सामान्य वर्ग में दिए हैं।
जदयू की रणनीति: सामाजिक आधार गहरा करना
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई वाली जदयू अपनी सामाजिक रणनीति को और आगे बढ़ा रही है। अपनी 101 उम्मीदवारों की पूरी सूची में से 74 को पिछड़ी या अति पिछड़ी जातियों से लिया गया है। उनमें से 25 टिकट वरिष्ठ समर्थक समुदाय Lav-Kush (कुर्मी-कुशवाहा) को दिए गए हैं — जिनको पार्टी का महत्वपूर्ण आधार माना जाता है। सूची में इसके अलावा 22 सामान्य वर्ग, 15 SC, 1 ST और 4 मुस्लिम उम्मीदवार शामिल हैं — ये मुस्लिम नाम हैं: जमां खान, सबा ज़फ़र, मंज़र आलम और शगुफ़्ता अज़ीम।
जदयू ने अपने प्रत्याशियों में 13 महिलाएं भी शामिल की हैं, जिनमें से 9 दूसरी सूची में हैं। मौजूदा विधायक, नए चेहरे और पार्टी बदल चुके नेता सभी को स्थान दिया गया है। पार्टी ने तीन विधायकों को बाहर किया है, लेकिन नए नामों को अवसर दिए हैं और सामाजिक समीकरण को बनाए रखा है।
विश्लेषक उद्धरण व राजनीतिक दृष्टिकोण
राजनीतिक विश्लेषक डॉ. कविता सिंह कहती हैं,
“बिहार में जीत पाने के लिए जातिगत गणित उतना ही महत्वपूर्ण है जितना मुद्दों पर जवाबदेही। भाजपा और जदयू सामाजिक आधार को मजबूत करने के लिए कदम उठा रही हैं, लेकिन असली लड़ाई यह है कि प्रत्याशी जनता से कितनी गहराई से जुड़ पाते हैं।”
विश्लेषकों का मानना है कि पिछड़ी जातियों को आगे लाकर दोनों दल उन वोट क्षेत्रों को कमजोर करना चाहते हैं जिन्हें प्रतिद्वंद्वी संगठन पहले से प्रभुत्व में रखते रहे हैं। वहीं, महिलाओं को उम्मीद मिलना भारतीय राजनीति में लैंगिक समावेशिता की दिशा में एक सकारात्मक कदम है।
चुनौतियाँ, जोखिम व चुनावी गणित
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महिला प्रतिनिधित्व बनाम जीत क्षमता: महिलाओं को टिकट देना अलग बात है; उन्हें प्रभावी निर्वाचन क्षेत्रों में उतारना और संसाधन देना ज़रूरी है।
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आंतरिक असंतोष: भाजपा द्वारा 16 मौजूदा विधायकों का हटना और जदयू द्वारा कुछ की कटौती भीतर मतभेद पैदा कर सकता है, जिनसे विद्रोही प्रत्याशियों का खतरा हो सकता है।
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विभिन्न समुदाय संतुलन: जबकि Lav-Kush और EBC को प्राथमिकता दी जा रही है, ऊँची जाति, SC/ST व अल्पसंख्यक मतदाताओं को भी जोड़ना अनिवार्य है।
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प्रदर्शन बनाम पहचान: केवल प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं होगा। मतदाता स्थानीय जुड़ाव, विश्वसनीयता और कामकाज की उम्मीद भी रखेंगे।
जैसे-जैसे चुनाव अभियान आगे बढ़ेगा, भाजपा और जदयू की सफलता सिर्फ उनकी सामाजिक इंजीनियरिंग रणनीति पर नहीं, बल्कि जमीनी स्तर पर क्रियाशीलता और जनसंपर्क पर निर्भर करेगी। जाति समीकरण जहां बिहार की राजनीति की रीढ़ है, वहीं पिछड़ी जातियों और महिलाओं को महत्व देने की इस रणनीति से यह चुनाव और निर्णायक हो सकता है — लेकिन इसके लिए संवेदनशीलता और रणनीतिक दृष्टि की आवश्यकता होगी।