भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने झारखंड इकाई का कार्यकारी अध्यक्ष राज्यसभा सांसद आदित्य प्रसाद साहू को नियुक्त किया है। यह कदम पार्टी की राज्य में पकड़ मजबूत करने और ओबीसी वर्ग में पैठ बनाने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है। साहू, जो 1988 से पार्टी के साथ जुड़े हुए हैं, एक सधी हुई लेकिन कम प्रोफ़ाइल वाली राजनीतिक यात्रा के बाद इस पद तक पहुंचे हैं।
साहू 2022 से राज्यसभा सांसद हैं और उन्हें एक संगठनात्मक नेता माना जाता है, जिनके जमीनी कार्यकर्ताओं से गहरे संबंध हैं। उनकी नियुक्ति भाजपा के लिए जातीय समीकरण संतुलित करने और आगामी लोकसभा एवं विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखकर की गई एक महत्वपूर्ण रणनीति मानी जा रही है।
भाजपा के वरिष्ठ नेता बाबूलाल मरांडी ने कहा, “आदित्य साहू का व्यापक राजनीतिक और संसदीय अनुभव पार्टी को चुनौतियों से निपटने और झारखंड में अपनी पहुंच बढ़ाने में मदद करेगा।” पार्टी सूत्रों का मानना है कि साहू की शांत छवि और संगठनात्मक क्षमता उन्हें इस जिम्मेदारी के लिए उपयुक्त विकल्प बनाती है।
झारखंड की राजनीति हमेशा से आदिवासी और ओबीसी समीकरणों के इर्द-गिर्द घूमती रही है। जहां झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) का आदिवासी समर्थन मजबूत है, वहीं भाजपा ओबीसी चेहरे को आगे रखकर अपने सामाजिक आधार का विस्तार करना चाहती है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि साहू की नियुक्ति केवल सामाजिक प्रतिनिधित्व का ही सवाल नहीं है, बल्कि संगठनात्मक स्थिरता का भी प्रतीक है। जिला स्तर से शुरू हुई उनकी यात्रा ने उन्हें स्थानीय और राष्ट्रीय राजनीति का अनुभव प्रदान किया है। माना जा रहा है कि उनकी नेतृत्व शैली भाजपा को एंटी-इनकंबेंसी का मुकाबला करने और झारखंड इकाई को नई ऊर्जा देने में मदद कर सकती है।
यह नियुक्ति ऐसे समय हुई है जब भाजपा राज्य में सत्तारूढ़ झामुमो-कांग्रेस-राजद गठबंधन को चुनौती देने की तैयारी कर रही है। लोकसभा चुनाव नजदीक हैं और ऐसे में एक अनुभवी तथा सरल नेता को आगे लाना भाजपा की आंतरिक गुटबाजी को कम करने और चुनावी ताकत बढ़ाने का प्रयास माना जा रहा है।
आगामी महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि आदित्य प्रसाद साहू पार्टी को किस दिशा में लेकर जाते हैं और भाजपा के चुनावी प्रदर्शन को किस तरह प्रभावित करते हैं।
